स्वतंत्रता के सारथी: थियेटर से पढ़ाई की नई राह गढ़ रहे हैं आशीष शर्मा, कला को दे रहे संरक्षण
जम्मू के रंगकर्मी आशीष शर्मा नई शिक्षा नीति में थिएटर इन एजुकेशन को बढ़ावा दे रहे हैं। वे कालेजों में कार्यशालाओं और नाटकों के माध्यम से छात्रों को इतिहास साहित्य और विज्ञान जैसे विषयों को रोचक तरीके से पढ़ाते हैं। आशीष शर्मा पिछले तीन दशकों से रंगमंच की साधना कर रहे हैं और उनका मानना है कि रंगमंच के माध्यम से शिक्षा देने से संस्कृति का संरक्षण होता है।

जागरण संवाददाता, जागरण, जम्मू। कक्षा में किताबें और ब्लैकबोर्ड से आगे बढ़कर संवाद, अभिनय और कहानी कहने की कला जुड़ जाए, तो पढ़ाई एक रोमांचक अनुभव बन जाती है। नई शिक्षा नीति एनइपी में थिएटर इन एजुकेशन, की जिस सोच को बढ़ावा दिया गया है। उसे जमीनी स्तर पर आकार देने वालों में जम्मू के वरिष्ठ रंगकर्मी आशीष शर्मा का नाम सबसे आगे है।
आशीष कालेजों में कार्यशालाओं, नाटक प्रस्तुतियों और संवाद सत्रों के माध्यम से छात्रों को यह सिखाते हैं कि थिएटर से कैसे इतिहास, साहित्य, सामाजिक विज्ञान और यहां तक कि विज्ञान जैसे विषयों को भी रोचक और प्रभावी तरीके से पढ़ाया जा सकता है।उनका मानना है कि जब रंगमंच के माध्यम से शिक्षा देेने को महत्व दिया जाने लगेगा संस्कृति का संरक्षण अपने आप हाेने लगेगा।
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नई शिक्षा नीति के आर्ट इंटीग्रेटेड लर्निंग प्रावधान के अंतर्गत उन्होंने कई नाटकों और गतिविधियों का संचालन किया। जिनसे छात्रों में आत्मविश्वास, टीमवर्क, संवाद कौशल और आलोचनात्मक सोच विकसित हुई।यही हमारी सांस्कृतिक पहचान भी है।पिछले कुछ वर्षो से पंचवक्त्र मंदिर में आयोजित होन ेवाले सावन महोत्सव और नवरात्र महोत्सव में भी आशीष का विशेष योगदान रहता है।वह कहते हैं कि कला संस्कृति के सरंक्षण में कोई भी प्रयास हो वह उसमें अपना योगदान देने में में कभी पीछे नहीं हटते।
तीन दशकाें से कर रहे रंगमंच की साधना
करीब तीन दशकों से रंगमंच की साधना कर रहे आशीष ने न केवल मंच पर अपने अभिनय से पहचान बनाई, बल्कि कालेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों को यह भी सिखाया कि थिएटर को पढ़ाई के साथ किस तरह जोड़ा जा सकता है। उनके सत्रों में छात्र कभी इतिहास की घटनाओं को पात्रों के रूप में जीते हैं, तो कभी विज्ञान के सिद्धांतों को छोटे-छोटे नाटकों में बदलकर प्रस्तुत करते हैं।
किताबों से निकाल अनुभव की दुनिया में लाता है थियेटर
आशीष कहते हैं कि थिएटर बच्चों को किताब से बाहर निकालकर अनुभव की दुनिया में ले आता है। उनका मानना है कि इस पद्धति से बच्चे न केवल विषय को गहराई से समझते हैं, बल्कि संवाद कौशल, नेतृत्व क्षमता और रचनात्मक सोच भी विकसित करते हैं। नई शिक्षा नीति के तहत कला-आधारित शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों में कार्यशालाएं, नाटक और इंटरएक्टिव प्रोग्राम आयोजित किए हैं।
उनका प्रयास है कि आने वाली पीढ़ी पढ़ाई को बोझ नहीं, बल्कि एक उत्सव की तरह महसूस करे और इस सफर में थिएटर उनका सबसे भरोसेमंद साथी बने।इससे युवा पीढ़ी अपनी कला संस्कृति से जुड़ी रहेगी। उनके प्रयासों में रंगमंच की भूमिका लगातार बढ़ रही है। इस दिशा में जम्मू के वरिष्ठ रंगकर्मी और सांस्कृतिक संरक्षक आशीष शर्मा का योगदान उल्लेखनीय रहा है।
शिक्षण संस्थानों में सिखा रहे अभिनव की बारीकियां
1995 से रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय आशीष शर्मा न केवल मंच पर एक सशक्त कलाकार रहे हैं, बल्कि लंबे समय से कई कालेजों और शिक्षण संस्थानों में छात्रों को थिएटर प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। उनका मानना है कि रंगमंच केवल अभिनय नहीं, बल्कि सीखने और सिखाने का एक जीवंत माध्यम है।वह शुरू से ही रंगमंच का शिक्षा का माध्यम बनाने को महत्व देते रहे हैं। नई शिक्षा नीति में जिस तरह से रंगमंच को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया जाने लगा है। आशीष इसे अपनी सोच की जीत मानते हैं।
रचनात्मकता, समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना जरूरी
आशीष शर्मा का मानना है कि थिएटर आधारित शिक्षा से न केवल पाठ्यक्रम को जीवंत बनाया जा सकता है, बल्कि छात्रों में संवेदनशीलता, रचनात्मकता और समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी विकसित होती है। इसी कारण वे आज शिक्षा जगत में रंगमंच के सारथी के रूप में पहचाने जाते हैं।
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