कश्मीर में झेलम के उफान पर आते ही अटकने लगती हैं लोगों की सांसे, ताजा हो जाता है 2014 का विनाशकारी मंजर
कश्मीर घाटी में बारिश के बाद झेलम नदी के उफान से लोग चिंतित हैं क्योंकि उन्हें 2014 की विनाशकारी बाढ़ की याद आ रही है। बीते पाँच वर्षों में नदी की ड्रेजिंग नहीं हुई है जिससे बाढ़ प्रबंधन की तैयारी अधूरी है। प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत स्वीकृत बाढ़ प्रबंधन योजना का काम अभी भी अधूरा है

जागरण संवाददाता, श्रीनगर। बारिश के बाद कश्मीर घाटी के दरिया झेलम व उसके सहायक नदियों के उफान पर आते ही शहर व उसके साथ लगते इलाकों में रहने वाले लोगों की सांसे अटकना शुरू हो जाती हैं। लोगों की आंखों के सामने वर्ष 2014 की विनाशकारी बाढ़ का मंजर आने लगता है, जिसे लोग इतने सालों में भी भूला नहीं पाए हैं।
इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार बीते पांच वर्षों से झेलम नदी या उसके चैनलों में कोई भी ड्रेजिंग (जल मार्गों को साफ करने की प्रक्रिया) करने में विफल रहे हैं। यही वजह है कि अब मानसून का मौसम चल रहा है और 2014 की बाढ़ के आघात से त्रस्त हजारों लोग, विशेषज्ञ और नागरिक समान रूप से चिंतित हैं। घाटी का प्रमुख बाढ़ प्रबंधन ढांचा अभी भी अधूरी तैयारी के साथ है, जिससे यह एक और आपदा का कारण बन सकता है।
यह चौंकाने वाला खुलासा सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण (आईएंडएफसी) विभाग द्वारा हाल ही में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिए गए जवाब से हुआ है।जवाब से पता चलता है कि प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी) के तहत 2015 में स्वीकृत व्यापक बाढ़ प्रबंधन योजना (सीएफएमपी) अभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है।
घाटी को भविष्य में आने वाली बाढ़ से बचाने के लिए बनाई गई इस परियोजना का उद्देश्य नदी की जल निकासी क्षमता को बढ़ाना था। एक दशक बाद, अभी तक केवल लगभग 80% ही काम पूरा हुआ है।
झेलम नदी के प्रवाह और बाढ़ प्रबंधन क्षमता में सुधार के लिए 399 करोड़ के आवंटन के साथ सीएफएमपी का पहला चरण शुरू किया गया था। इस चरण के तहत निविदा में शामिल 31 परियोजनाओं में से केवल 16 ही पूरी हुई हैं, बाकी अभी भी लंबित हैं। विभाग ने पुष्टि की है कि केंद्रीय सहायता के 114.29 करोड़ रुपये पहले ही पूरी तरह से खर्च किए जा चुके हैं।
हालांकि, पिछले पाँच वर्षों में कोई नया पूंजीगत ड्रेजिंग कार्य नहीं हुआ है। जबकि विभाग ने 2023-24 में 670 किलोमीटर सिंचाई नहरों की सफाई का उल्लेख किया है - जिसमें लगभग 2.9 लाख घन मीटर गाद हटाई जाएगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह झेलम की पूर्ण पैमाने पर ड्रेजिंग का विकल्प नहीं हो सकता है। इसके अलावा आरटीआई के जवाब में नदी और उसके बाढ़ मार्गों पर अवैध अतिक्रमणों के चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। श्रीनगर, बारामूला, अनंतनाग और कुपवाड़ा सहित विभिन्न संभागों में 1,884 अतिक्रमणों की पहचान की गई है जिनमें 283 अर्ध-स्थायी ढाँचे और 1,233 अवैध चारदीवारी से लेकर तटबंधों पर लगाए गए 215 पेड़ शामिल हैं ।
बार-बार आधिकारिक आदेशों के बावजूद, अब तक केवल दो चारदीवारी और 200 पेड़ ही हटाए गए है। सोपोर, पुलवामा, बांडीपोरा और शोपियां जैसे बाढ़-प्रवण ज़िलों में अतिक्रमण प्राकृतिक जल प्रवाह को अवरुद्ध कर रहे हैं, जिससे आपदा तैयारियों पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
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विभाग ने स्वीकार किया कि हाल के वर्षों में कोई नई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) प्रस्तुत नहीं की गई है, हालाँकि झेलम तवी बाढ़ पुनर्प्राप्ति परियोजना (जेटीएफआरपी) ने एक नया बाढ़ अध्ययन किया है। बताया जा रहा है कि एक नई डीपीआर तैयार की जा रही है, लेकिन उसे अभी सरकार के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, बाढ़ के खतरे की गंभीरता और आधिकारिक कार्रवाई की गति के बीच एक स्पष्ट अंतर है। मेसर्स रीच ड्रेजर्स, कोलकाता द्वारा किया गया पिछला बड़ा ड्रेजिंग प्रयास पूरा हो गया था, लेकिन उसके बाद से कोई नई निविदा जारी नहीं की गई है।
यह केंद्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान केंद्र (सीडब्ल्यूपीआरएस) की 2018 की सिफारिशों के बावजूद है, जिसमें गंभीर खतरों की चेतावनी दी गई थी और नदी के संगम-आशाम खंड पर तत्काल ड्रेजिंग का आह्वान किया गया था।
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