YS Parmar: हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री ने ठुकरा दिया था बेटे का खनन प्रस्ताव, पूर्व अधिकारियों ने बताए परमार के दिलचस्प किस्से
Dr Yashwant Singh Parmar हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार की जयंती पर उनके सहयोगियों ने उनके प्रदेश के प्रति समर्पण को याद किया। उन्होंने परिवारवाद को नहीं बल्कि प्रदेश के हित को प्राथमिकता दी। उन्होंने कृषि बागवानी और सड़कों के विकास पर जोर दिया जिससे हिमाचल आत्मनिर्भर बन सके।

प्रकाश भारद्वाज, शिमला। Dr Yashwant Singh Parmar, वर्तमान दौर की राजनीति में नेता परिवारवाद को बढ़ावा देते हैं, लेकिन प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री एवं हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार इससे अलग सोच रखते थे। मुख्यमंत्री रहते हुए उनके पास बड़े बेटे को खनन लीज देने का प्रस्ताव आया था।
डा. परमार ने बिना कुछ विचार किए उस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया था। डा. परमार की आज चार अगस्त को जयंती है। उनके कई किस्सों को साझा किया प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारका, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव डा. दीपक सानन व पूर्व सचिव डा. अरुण कुमार शर्मा ने।
उनका कहना था कि पहाड़ी राज्य हिमाचल की विकास गाथा गढ़ने के लिए डा. परमार कृषि-बागबानी, गांव-गांव तक सड़क पहुंचाना, पर्यटन और जल विद्युत से प्रदेश के लोगों को आत्मनिर्भर करना चाहते थे। यूं तो हमने उस राह को छोड़ा नहीं है, लेकिन बिना किसी दूरदृष्टि के उसका अनुसरण भी नहीं किया है। यही वजह है कि देश के पहाड़ी राज्यों के लिए आदर्श रहा हिमाचल आज कई क्षेत्रों में पिछड़कर रह गया है।
परमार साहब के लिए पहले हिमाचली थे
मैंने परमार साहब की पत्नी सत्यावती जी से पूछने का साहस किया कि डा. परमार बेटों या फिर परिवार को लाभ पहुंचाते थे। इस पर उनका जवाब था अरे क्या कहते हो तुम, एक बार बड़े बेटे की खनन लीज की फाइल सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उनके पास पहुंची थी। फाइल तो साइन नहीं हुई, लेकिन डा. परमार ने गुस्से में रात को खाने के टेबल पर खूब नाराजगी जताई थी। कुछ मिनट के बाद गुस्सा कुछ कम होने पर बोले कि बेटे फाइल को मैं साइन कर दूं, ऐसा करके मैं प्रदेश के लोगों को क्या जवाब दूंगा। सत्यावती का कहना था कि परमार साहब के लिए हिमाचल सर्वोपरि था। मैं हमीरपुर के भरेड़ी स्कूल में आठवीं में पढ़ता था और डा. परमार वहां आए हुए थे। मेरे नंबर इतने थे कि मुझे छात्रवृत्ति मिलनी थी, लेकिन लिपिकीय गलती से छात्रवृत्ति नहीं मिली थी। मैंने परमार साहब से यह बात कही और मुश्किल से 10 दिन के भीतर छात्रवृत्ति शुरू हो गई थी। मैं सरकारी सेवा में आने के बाद नाहन में एसडीएम नियुक्त हुआ और राजगढ़ मेरा कार्यक्षेत्र नहीं था। फिर भी मैं बागथन स्थित उनके घर जिसे मैं तीर्थ मानकर गया, देखा वहां पर सड़क सुविधा नहीं थी। डा. परमार के निधन के बाद उनके गांव व घर तक सड़क का निर्माण हुआ था।
-डा. अरुण कुमार शर्मा, पूर्व सचिव।
हिमाचल का फल देश-विदेश तक पहुंचाने की सोचते थे
मैं तो सरकारी नौकरी में बाद में आया था, लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि डा. परमार की दूरदृष्टि से हिमाचल कई दशक तक देश के पहाड़ी राज्यों के लिए रोल माडल हुआ करता था। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि नगालैंड, सिक्किम, उत्तराखंड जैसे राज्य हमसे आगे निकल गए हैं। डा. परमार हिमाचल की प्राथमिकता को समझते थे, इसलिए बागबानी को केंद्र में रखते हुए प्रदेश को फल राज्य के तौर पर विकसित करना चाहते थे। इतना ही नहीं, देश और विदेशों में प्रदेश के फल किस तरह से पहुंचाने और सही मूल्य प्राप्त हों, इसकी भी चिंता करते थे। इसलिए परमार साहब सड़क को यातायात का साधन भर नहीं मानते थे, कहते थे सड़क आत्मनिर्भरता की राह दिखाती है।
- डा. दीपक सानन, पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
मौसमी परिस्थितियों को देख कृषि-बागबानी को दी प्राथमिकता
जब डा. परमार मुख्यमंत्री थे तो मैं उस समय किन्नौर जिले में अपने गांव के स्कूल में दसवीं की पढ़ाई कर रहा था। उनकी सोच और राज्य के लोगों के प्रति दर्द को मैं भी समझता था। यदि परमार साहब चाहते तो कृषि-बागबानी के बजाय कुछ और भी चुन सकते थे। लेकिन उन्हें मालूम था कि पहाड़ी राज्य होने के कारण हमारी चुनौतियां अलग हैं और हम मैदानी राज्यों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए हिमाचल की मौसमी परिस्थितियों को देखते हुए कृषि-बागबानी को केंद्र बिंदु में रखा। उन्हें यह भी पता था कि यहां के ठंडे मौसम की तरह हमारे लोग भोले-भाले और शांत संतुष्ट रहने वाले हैं, इस तरह का आकलन करने के बाद भू-राजस्व अधिनियम की धारा-118 की शर्त लागू की।
-वीसी फारका, पूर्व मुख्य सचिव।
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