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Shimla News: सुप्रीम कोर्ट से भी ओबेराय समूह को झटका, हिमाचल सरकार को वाइल्ड फ्लॉवर हॉल होटल सौंपने के दिए आदेश

ओबेराय समूह के स्वामित्व वाले ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हिमाचल हाई कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल हाईकोर्ट ने फैसले को सही ठहराया है। बता दें कि हाईकोर्ट ने ओबेराय समूह के होटल मार्च 2024 तक खाली करने के निर्देश दिए थे।

By Parkash Bhardwaj Edited By: Deepak Saxena Published: Wed, 21 Feb 2024 02:30 PM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2024 02:30 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट से भी ओबेराय समूह को झटका।

राज्य ब्यूरो, शिमला। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली ओबेराय समूह के स्वामित्व वाले ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड (ईआईएच) की अपील खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने ईआईएच को शिमला के मशोबरा स्थित होटल वाइल्ड फ्लावर हाल को सरकार को मार्च, 2024 तक सौंपने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया है।

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हिमाचल हाई कोर्ट ने पांच जनवरी को होटल सरकार को सौंपने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए वित्तीय मामले निपटाने के लिए दोनों पक्षों को नामी चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) नियुक्त करने का आदेश भी दिया था।

हिमाचल सरकार और ओबेराय समूह के बीच दो दशक से चल रहा विवाद

सरकार के आवेदन का निपटारा करते हुए कोर्ट ने कहा था कि ओबेराय ग्रुप मध्यस्थता के निर्देश का पालन तीन माह की तय समयसीमा के भीतर करने में असफल रहा, इसलिए प्रदेश सरकार होटल का कब्जा और प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए पात्र हो गई। मामले की अनुपालन रिपोर्ट 15 मार्च को पेश करने का आदेश दिया था। हिमाचल सरकार और ओबेराय समूह के बीच इस संपत्ति को लेकर दो दशक से विवाद चल रहा है।

यह था मामला

1993 में वाइल्ड फ्लॉवर हॉल होटल में आग लग गई थी। इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए थे। निविदा के तहत ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया और प्रदेश सरकार ने उसके साथ साझेदारी में कार्य करने का निर्णय लिया। संयुक्त उपक्रम के तहत ज्वाइंट कंपनी मशोबरा रिजोर्ट लिमिटेड के नाम से बनाई गई।

करार के अनुसार, कंपनी को चार वर्ष के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था। ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रतिवर्ष प्रदेश सरकार को अदा करना था। 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम भूमि को ट्रांसफर किया। छह वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को उपयोग लायक नहीं बना पाई। 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया।

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सरकार के इस निर्णय को कंपनी ला बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई। कंपनी लॉ बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। हिमाचल सरकार ने इस निर्णय को हाई कोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी। हाई कोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर (मध्यस्थ) के पास भेजा।

एकल पीठ के निर्णय को दी गई थी चुनौती

आर्बिट्रेटर ने 2005 में कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया। इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी। 17 नवंबर, 2023 को हाई कोर्ट ने सरकार को होटल पर तत्काल कब्जा करने की अनुमति दी थी। जैसे ही पर्यटन विभाग संपत्ति पर कब्जा लेने के लिए पहुंचा, अदालत ने स्थगन आदेश जारी कर दिया।

ईआईएच ने आदेश की समीक्षा करने की मांग करते हुए याचिका दायर की। सरकार ने तर्क दिया था कि ईआइएच 23 जुलाई, 2005 के मध्यस्थता के निर्देशों का पालन करने में विफल रहा था, इसलिए राज्य सरकार ने वाइल्ड फ्लावर हाल संपत्ति को फिर से शुरू करने के संदर्भ में इसका कब्जा लेने का फैसला किया था।

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