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    Himachal Pradesh: क्या है कड़छम-वांगतू परियोजना विवाद, हिमाचल के पक्ष में फैसले से होगी कितने करोड़ रुपये कमाई

    Updated: Thu, 17 Jul 2025 01:03 PM (IST)

    Karcham Wangtoo Project सुप्रीम कोर्ट ने जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड के कड़छम-वांगतू बिजली प्रोजेक्ट मामले में राज्य सरकार को राहत दी है। कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सरकार को 18 प्रतिशत मुफ्त बिजली का हकदार बताया है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने कहा कि इस फैसले से प्रदेश सरकार को लगभग 250 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी।

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    जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड का कड़छम-वांगतू बिजली प्रोजेक्ट

    विधि संवाददाता, शिमला। Karcham Wangtoo Project, जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड के कड़छम-वांगतू बिजली प्रोजेक्ट से सरकार को 18 प्रतिशत निश्शुल्क बिजली मिल सकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश हाई कोर्ट के निर्णय को रद करते हुए राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है। इससे पहले हाई कोर्ट ने कंपनी के हक में निर्णय सुनाया था। इसे राज्य सरकार ने सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी। सरकार ने तर्क दिया था कि प्रोजेक्ट लगाने का राज्य होने के नाते नीति के तहत निश्शुल्क बिजली देने का प्रविधान है। हालांकि कंपनी की ओर से केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग के आदेशों के तहत ही निश्शुल्क बिजली देने की बात कही जा रही थी।

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    हाई कोर्ट से सरकार को लगा था झटका

    पहले हाई कोर्ट से राज्य सरकार को इस प्रोजेक्ट से मिलने वाली निश्शुल्क बिजली से जुड़े मामले में झटका लगा था। इसमें प्रोजेक्ट से प्रदेश सरकार को 18 के बजाय 13 प्रतिशत निश्शुल्क बिजली मिलनी थी। हाई कोर्ट ने किन्नौर में स्थित करछम वांगतू बिजली प्रोजेक्ट की याचिका को स्वीकार करते हुए प्रदेश सरकार को इस प्रोजेक्ट द्वारा दी जा रही 18 प्रतिशत निश्शुल्क बिजली को घटाकर केंद्रीय इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन के आदेशानुसार वसूलने के आदेश दिए थे। साथ ही कोर्ट ने ऊर्जा सचिव व ऊर्जा निदेशालय को आदेश दिए थे कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा राज्य सरकार को दी 18 प्रतिशत निश्शुल्क बिजली को एडजस्ट करें।

    सुप्रीम कोर्ट ने दी सरकार को राहत

    कंपनी का कहना था कि वह 18 प्रतिशत निश्शुल्क बिजली अपनी आपत्ति के साथ हिमाचल को दे रही थी। इसलिए याचिकाकर्ता प्रोजेक्ट के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न हो, इसलिए निश्शुल्क बिजली 18 प्रतिशत की दर दी गई। कंपनी ने कोर्ट में तर्क दिया था कि राज्य सरकार को आदेश दिए जाएं कि वह 18 नवंबर 1999 के अनुबंध को केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग विनियमन अधिनियम 2019 के अनुसार लागू करे, न कि करार में दर्शाई गई शर्तों के अनुसार। प्रार्थी ने निश्शुल्क बिजली देने के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग के नियमों का पालन करने के आदेशों की गुहार भी लगाई थी। सुप्रीमकोर्ट ने इस पूरे मामले में सरकार को राहत दी है।

    रायल्टी पर था विवाद

    हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर में स्थित जेएसडब्ल्यू एनर्जी कंपनी की 1045 मेगावाट क्षमता की विद्युत परियोजना है। इस परियोजना से प्रदेश सरकार को 12 प्रतिशत ही रायल्टी देने का विवाद था। सुप्रीम कोर्ट ने अब 12 के बजाय 18 प्रतिशत रायल्टी यानी निश्शुल्क बिजली देने का फैसला दिया है।

    सरकार को होगी 250 करोड़ रुपये की आय

    मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के दिशानिर्देश में प्रदेश सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में कड़छम-वांगतू जलविद्युत परियोजना से रायल्टी को लेकर मजबूती से पक्ष रखा। इसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया है। सरकारी प्रवक्ता ने दावा किया कि इस निर्णय से प्रदेश सरकार को लगभग 250 करोड़ रुपये की वार्षिक अतिरिक्त आय होगी। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे को व्यक्तिगत प्राथमिकता पर लिया और प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों पर राज्य के अधिकार सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ प्रयास किए। यह निर्णय न केवल प्रदेश की आय में वृद्धि करेगा, बल्कि हिमाचल की जनता को उनके संसाधनों का वास्तविक लाभ भी दिलाएगा।

    इन अधिवक्ताओं ने रखा सुप्रीम कोर्ट में पक्ष

    मुख्यमंत्री सुक्खू के निर्देश पर सरकार ने देश के अग्रणी विधि विशेषज्ञों की मदद से यह मामला सशक्त रूप से रखा और न्यायालय ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। इस मामले में राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, प्राग त्रिपाठी, महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन तथा अतिरिक्त महाधिवक्ता बैभव श्रीवास्तव सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। प्रवक्ता ने कहा, मुख्यमंत्री सुक्खू के नेतृत्व में सरकार लगातार राज्य हित की पैरवी कर रही है और यह निर्णय उसी दिशा में एक मजबूत कदम है।

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    पहले होटल वाइल्ड फ्लावर हाल का जीता है केस

    प्रवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार ने वर्ष 2002 से कानूनी विवाद में उलझे होटल वाइल्ड फ्लावर हाल केस का फैसला भी कोर्ट से अपने हक में करवाया। इसमें हिमाचल प्रदेश सरकार और एक निजी होटल समूह के बीच स्वामित्व व प्रबंधन अधिकारों को लेकर लड़ाई चल रही थी। कोर्ट के निर्णय के बाद यह संपत्ति अब फिर से राज्य सरकार के नियंत्रण में आ गई है।

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