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    हिमाचल हाई कोर्ट ने वित्त सचिव को दंडित करने का लिया निर्णय, ...अदालत को घुमा-फिराकर गुमराह किया जा रहा

    By Chaitanya Thakur Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Wed, 17 Dec 2025 06:43 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने वित्त सचिव को गुमराह करने पर दंडित करने का निर्णय लिया है। कोर्ट ने पाया कि अधिकारी जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवह ...और पढ़ें

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    हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का शिमला स्थित परिसर। जागरण आर्काइव

    विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीशों को दी जाने वाली घरेलू सहायता राशि और टेलीफोन खर्च के भुगतान को लेकर गुमराह करने पर वित्त सचिव को दंडित करने का निर्णय लिया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने कहा कि उक्त राशि का भुगतान करने से बचने के लिए अधिकारी द्वारा अदालत को घुमा-फिराकर गुमराह किया जा रहा है।

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    सजा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं

    खंडपीठ ने कहा कि अब हमारे पास उक्त अधिकारी को सजा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना की है। 

    अगली तारीख तक आदेश रोकने का निवेदन

    अदालत के इस कड़े रुख को देखते हुए महाधिवक्ता ने निवेदन किया कि सजा देने के उक्त आदेश को अगली तारीख तक रोक दिया जाए। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ सेवानिवृत्त जजों की विधवाओं को भी एरियर से वंचित किया जा रहा है, फिर भी अदालत महाधिवक्ता के निवेदन को इस शर्त के साथ स्वीकार करती है कि अगर अगली तारीख तक आश्वासन पूरा नहीं किया जाता है, तो वित्त सचिव को दंडित करने का आदेश लागू हो जाएगा।

    वित्त सचिव ने दी दलील

    मामले की सुनवाई के दौरान देवेश कुमार, प्रधान सचिव (वित्त) व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे। उन्होंने सरकार को सही ठहराने की कोशिश की और दलील दी कि बकाया के मुद्दे के संबंध में, प्रस्ताव 02.12.2025 को भेजा गया था, जिसकी जांच की गई और 05.12.2025 को सैद्धांतिक रूप से सहमति दी गई। हालांकि, यह मामला हिमाचल प्रदेश राज्य के कार्यवाही नियमों से जुड़ी अनुसूची और हिमाचल प्रदेश कार्यालय मैनुअल, 2011 के नियम 2.4 (3) के अनुसार आगे के फैसले के लिए मंत्रिपरिषद के सामने रखा गया है। 

    इसमें यह निवेदन किया गया है कि यदि प्रशासनिक विभाग वित्त विभाग की सलाह/राय से सहमत नहीं होता है, तो वह प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने रख सकता है, जो नियमों के अनुसार वित्त विभाग की राय को खारिज कर सकता है और प्रस्ताव को आगे बढ़ने की अनुमति दे सकता है। 

    कोर्ट ने दलील को बयानों के विपरीत पाया

    कोर्ट ने इस दलील को हिमाचल प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) द्वारा दायर हलफनामे में दिए गए बयानों के विपरीत पाया, जिसमें कहा गया था कि मंत्रिपरिषद ने पहले ही मुख्यमंत्री को विभागीय फाइल पर फैसला लेने के लिए अधिकृत कर दिया है। इसलिए कोर्ट कोई वैध कारण नहीं समझ पा रही है कि बकाया का भुगतान क्यों नहीं किया गया है। 

    वित्त विभाग ने 154 प्रस्तावों को मंजूरी और सहमति दी

    जनहित याचिका में न्यायपालिका से जुड़े अन्य मुद्दों को लेकर हिमाचल प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव (वित्त) के हलफनामे से यह भी पता चला कि हलफनामे के अनुसार, हाईकोर्ट और अधीनस्थ न्यायपालिका से प्राप्त 224 प्रस्तावों में से, वित्त विभाग ने 154 प्रस्तावों को मंजूरी और सहमति दी है और शेष 29 प्रस्तावों को मंजूरी के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया। इसमें आगे यह भी बताया गया है कि 39 प्रस्तावों को अतिरिक्त जानकारी/बेहतर औचित्य के लिए वापस कर दिया गया था और इन स्थगित प्रस्तावों के संबंध में मामला बंद नहीं किया गया है। इसमें आगे यह भी बताया गया है कि वित्त विभाग की भूमिका अन्यथा सलाहकार प्रकृति की है। 

    108 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि को मंजूरी दी 

    वित्त विभाग ने विभिन्न मदों के तहत 108.70 लाख रुपये की अतिरिक्त राशि को मंजूरी दी है। इसमें आगे यह भी बताया गया है कि गृह विभाग के 02.12.2025 के प्रस्ताव को 37 नए न्यायालयों (03 अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायालय और 34 सिविल न्यायाधीश न्यायालय) को खोलने की मंजूरी देने के साथ-साथ नियमित आधार पर सभी सहायक पदों के सृजन के लिए वित्त विभाग में जांच की गई और वित्त विभाग ने उक्त प्रस्ताव पर सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की है। 

    क्यों की जा रही है कार्रवाई

    खंडपीठ ने कहा कि यह कार्रवाई अब इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए की जा रही है कि हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को 13.11.2025 के आदेश द्वारा निर्देश दिया था कि राज्य उच्च न्यायालय के अनुरोध पर उक्त स्थानों पर एक सप्ताह के भीतर न्यायालयों का गठन करेगा। इस संदर्भ में आवश्यक संचार 20.11.2025 को भेजा गया था और हमीरपुर, जोगिंद्रनगर और नालागढ़ में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के तीन न्यायालयों से तदनुसार अनुरोध किया गया है। 

    बाकी 34 सिविल जजों की अदालतों में से तीन सब-डिवीजन, ऊना में, दो-दो बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी, कुल्लू, चंबा, धर्मशाला, कांगड़ा, डेहरा, सोलन और नालागढ़ में और एक-एक रोहड़ू, रिकांगपीओ, घुमारवीं, अंब, सुंदरनगर, जोगिंदरनगर, मनाली, डलहौजी, पालमपुर, अर्की और पांवटा साहिब में हैं, जिनके लिए 20.09.2023 को पारित पिछली सिफारिश में बदलाव का अनुरोध किया गया है। यह उसी डेटा के आधार पर है जो हाईकोर्ट के पास है। 

    समय सीमा पर कुछ नहीं कहा

    कोर्ट ने कहा कि दोनों हलफनामों में उस समय-सीमा के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है जिसमें 13 वाहनों की मंजूरी जिला स्तर पर प्राप्त की जानी थी। कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि इस पहलू पर भी आवश्यक मंजूरी ली जाए। इसी तरह की परिस्थितियों में, लॉ क्लर्क-कम-रिसर्च असिस्टेंट के 20 पदों के सृजन के मामले में, वित्त विभाग द्वारा आवश्यक मंजूरी दे दी गई है और लॉ क्लर्क-कम-रिसर्च असिस्टेंट के पारिश्रमिक में वृद्धि के संबंध में मामला आगे के निर्णय के लिए मंत्रिपरिषद के समक्ष रखा जाएगा। 

    यह भी बताया गया कि वित्त विभाग में हाईकोर्ट की ओर से कोई अन्य प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से अनुरोध किया कि वे अपनी टिप्पणियां प्रस्तुत करें और उन प्रस्तावों के संबंध में अपना जवाबी हलफनामा दें जो हाईकोर्ट से नहीं भेजे गए हैं, जिन प्रस्तावों पर सहमति व्यक्त की गई है और जिन प्रस्तावों पर सहमति व्यक्त नहीं की गई है ताकि वित्त सचिव की ओर से दायर हलफनामे में किए गए कथनों का उचित सत्यापन किया जा सके।

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