Himachal High Court ने सरकारी भूमि पर कब्जे रेगुलर करने की नीति रद की, धारा 163-ए असंवैधानिक, ...अधिकारियों पर कार्रवाई
Himachal Pradesh High Court हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने की नीति को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को अतिक्रमण हटाने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार का कर्तव्य सुशासन करना है और अतिक्रमण को बढ़ावा देने वाली नीतियां कानून का उल्लंघन हैं।

विधि संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh High Court, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने की नीति को रद कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए हैं कि वह सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को कानून के अनुसार हटाना सुनिश्चित करें। अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध उपयुक्त कार्रवाई शुरू करने के बाद इसे यथासंभव शीघ्रता से 28 फरवरी, 2026 को या उससे पहले, उसके तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाएं।
न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंदर नेगी की खंडपीठ ने पूनम गुप्ता की ओर से दायर जनहित याचिका को स्वीकारते हुए यह आदेश जारी किए। कोर्ट ने फैसले में कहा कि राज्य सरकार का कर्तव्य सुशासन करना है।
सुशासन में अतिक्रमण से निपटने वाले मौजूदा क़ानूनों का कार्यान्वयन शामिल है। ऐसे क़ानून के प्रविधानों को लागू कराने में सरकार की विफलता, शासन में विफलता के समान है। कोर्ट ने अवैध को वैध करने के लिए बनाई जाने वाली नीतियों पर कहा कि यह बेईमानी और कानून के उल्लंघन को बढ़ावा देती है।
अतिक्रमण पर माफ करने की नीति मनमानी, अनुच्छेद 14 का उल्लंघन
कोर्ट ने सरकार की ओर से अतिक्रमण कर कानून का उल्लंघन करने वालों को माफ करने की नीति को मनमाना ठहराते हुए कहा कि असमान लोगों के साथ समान व्यवहार करके, राज्य सरकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर रही है।
न्यायालय मूकदर्शक नहीं बन सकता
हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसे में न्यायालय मूकदर्शक नहीं बन सकता और यह सुनिश्चित करने के लिए अपने संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने के लिए बाध्य है कि सत्ता के गलियारों में बेईमान तत्वों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति का दुरुपयोग न हो और सार्वजनिक भूमि हड़पने के कृत्यों की उचित जांच की जाए और उचित उपचारात्मक कार्रवाई की जाए।
भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए असंवैधानिक, नियम किए रद
हाई कोर्ट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए स्पष्ट रूप से मनमानी और असंवैधानिक है और इसके परिणामस्वरूप, हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए और उसके अंतर्गत बनाए गए नियम (धारा 163-ए) रद्द किए जाते हैं। इस धारा के तहत सरकार ने अपने पास अतिक्रमणों को नियमित करने की शक्तियां प्राप्त कर ली थी जबकि मूल रूप से बनाए गए कानून के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता था।
"आपराधिक अतिक्रमण" कानून में संशोधन पर विचार करे सरकार
कोर्ट ने आदेश दिए कि हिमाचल प्रदेश में सरकारी भूमि पर किए गए अतिक्रमणों की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार को "आपराधिक अतिक्रमण" से संबंधित कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए और इसे उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और ओडिशा राज्यों में किए गए राज्य संशोधनों के अनुरूप लाना चाहिए।
अतिक्रमण के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई का निर्देश
कोर्ट ने महाधिवक्ता को निर्देश दिया कि वे इस निर्णय की प्रति हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और सभी संबंधितों को तत्काल अनुपालन हेतु प्रेषित करें और उन राजस्व अधिकारियों के विरुद्ध कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने के निर्देश दें, जिनके अधिकार क्षेत्र में भूमि पर अतिक्रमण की अनुमति दी गई है। कोर्ट ने पाया कि उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जिन्होंने मिलीभगत से पूरे राज्य में इस तरह के अतिक्रमण होने दिए। ऐसा नहीं है कि हजारों अतिक्रमण रातोंरात हो गए। अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहे।
2002 में नियमितीकरण नीति के तहत मांगे थे आवेदन
उल्लेखनीय है कि राज्य की वर्ष 2002 में जारी नियमितीकरण नीति के तहत सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों लोगों से आवेदन मांगे गए थे। इसके तहत 15 अगस्त 2002 तक 1,67,339 आवेदनों में 24,198 एकड़ (1 एकड़ में लगभग 12 बीघा) सरकारी भूमि पर कब्जों के नियमितीकरण की मांग की गई थी।
5 बीघा तक की सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नियमित करने का ड्राफ्ट हुआ था प्रकाशित
इसके बाद सरकार वर्ष 2017 में भी 5 बीघा तक की सरकारी भूमि पर अतिक्रमणों को नियमित करने के लिए ड्राफ्ट नियम राजपत्र में प्रकाशित कर लाए थे। इन ड्राफ्ट नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सरकार सरकार ने स्पष्ट किया था कि सरकार के समक्ष ऐसे अवैध कब्जों को नियमित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
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