Himachal Apple: हिमाचल में पहले की तरह आसान नहीं रहा सेब उत्पादन, जलवायु परिवर्तन सहित इन 5 वजह से खतरे में बागबान
Himachal Pradesh Apple हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन अब आसान नहीं रहा। बढ़ती लागत और विदेशी सेब के आयात ने बागबानों की परेशानी बढ़ा दी है। जलवायु परिवर्तन से पारंपरिक किस्मों का उत्पादन घट रहा है जिससे नई किस्मों की ओर रुझान बढ़ रहा है। नई किस्मों के बगीचे तैयार करने की लागत अधिक है।

जागरण संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh Apple, हिमाचल में सेब उत्पादन अब पहले की तरह आसान नहीं रहा है। बढ़ती लागत और विदेशी सेब से हिमाचली बागबान खतरे में हैं। बदलती तकनीक से सेब का बगीचा तैयार करना महंगा हो गया है। सेब आयात ने भी परेशानी बढ़ाई है। जलवायु परिवर्तन के कारण सेब की पारंपरिक किस्मों का उत्पादन हर वर्ष घट रहा है।
ऐसे में नई किस्मों की तरफ बागबान बढ़ रहे हैं। नई किस्मों को तैयार करने के तरीके भी नए हैं। सीडलिंग के बजाय रूट स्टाक पर ये किस्में तैयार होती हैं। पुराने बगीचों की तुलना में हाई और मीडियम डेंसिटी के बगीचों का चलन बढ़ रहा है, लेकिन इन बगीचों को तैयार करने की लागत काफी ज्यादा है।
हाई एवं मीडियम डेंसिटी बगीचा तैयार करने के लिए पहले बागबानों को लाखों रुपये का निवेश करना पड़ता है। करीब 10 बीघा जमीन पर हाई डेंसिटी बगीचा तैयार करने के लिए कम से कम पांच लाख रुपये की लागत है। सेब के रूट स्टाक एवं नई किस्मों की कलमों के लिए लाखों खर्च करने पड़ते हैं। एक पौधे की कीमत 100 से 200 रुपये के बीच रहती है। इसके बाद पौधों को सीधा रखने के लिए ट्रेलिस पर काफी खर्च आता है।
राज्य सरकार ने बंद कर दी है कीटनाशकों पर सबसिडी
बगीचा तैयार होने के बाद फसल लेने के लिए कीटनाशकों का खर्च हर वर्ष बढ़ रहा है। कीटनाशकों पर राज्य सरकार की ओर से प्रदान की जाने वाली सब्सिडी भी बंद कर दी गई है। वहीं कृषि उपकरणों पर 12 प्रतिशत जीएसटी का प्रविधान है। हालांकि पहले यह 18 प्रतिशत था, पूर्व सरकार में इसे घटाकर 12 प्रतिशत किया था।
सेब आयात व कम हिमपात भी बढ़ा रहे परेशानी
ईरानी, न्यूजीलैंड, अफगानिस्तान और अमेरिका से सेब का आयात भारत में बढ़ा है। कम हिमपात व वर्षा भी नुकसान के कारण हैं।
मजदूर मांगते हैं मुंह मांगी दिहाड़ी
प्रोग्रेसिव ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है कि सेब बहुल क्षेत्र में सेब की प्रूनिंग से लेकर तुड़ान, ग्रेडिंग एवं पैकिंग के लिए मजदूर मुंह मांगी दिहाड़ी मांगते हैं। सेब की ग्रेडिंग एवं पैकिंग के लिए 700 से 800 रुपये की दिहाड़ी है। सेब की प्रूनिंग की दिहाड़ी एक हजार रुपये के आसपास है। इससे छोटे बागबानों पर काफी ज्यादा मार पड़ती है। कई बार दाम कम मिलने से उत्पादन लागत आय से भी ज्यादा रहती है।
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44 देशों के सेब से पड़ रही गहरी मार
संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि भारत में 44 देशों से आयात होने वाले सेब से हिमाचल के सेब को काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। हिमाचली बागबान इन देशों से आने वाले सेब पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क की मांग कर रहे हैं, लेकिन इन देशों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क ही है। विदेशी सेब पर न्यूनतम आयात मूल्य भी 50 रुपये है, जबकि इसे भी बढ़ाया जाना चाहिए।
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हिमाचली सेब पर विदेशी सेब के प्रभाव
- ईरानी सेब की कीमत हिमाचली सेब की तुलना में काफी कम है, जिससे उपभोक्ता विदेशी सेब की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
- केंद्र सरकार द्वारा वाशिंगटन सेब पर आयात शुल्क घटाने से हिमाचली सेब की मांग कम हो गई है।
- हिमाचल में सेब खेती की लागत बढ़ रही है, जिससे उत्पादकों को फसल के लिए उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
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