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    हिमाचल हाई कोर्ट की दुष्कर्म से जुड़े मामले में अहम टिप्पणी, आरोपित के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी, पढ़ें पूरा मामला

    By Rohit Nagpal Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Wed, 15 Oct 2025 06:25 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बलात्कार के एक मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आरोपी के अधिकारों की रक्षा करना भी जरूरी है। अदालत ने जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी क्योंकि उसके भागने का कोई खतरा नहीं था और वह जांच में सहयोग करने के लिए तैयार था।

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    हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का शिमला स्थित परिसर। जागरण आर्काइव

    विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने दुष्कर्म से जुड़े मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुष्कर्म पीड़िता को बहुत कष्ट और अपमान का सामना करना पड़ता है, लेकिन साथ ही दुष्कर्म करने का झूठा आरोप भी आरोपित को अपमानित और क्षति पहुंचाता है। 

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    कोर्ट ने कहा कि आरोपित के भी अधिकार होते हैं, जिनकी रक्षा की जानी चाहिए और झूठे आरोप की संभावना को खारिज किया जाना चाहिए।

    पीड़िता का कौन सा बयान विश्वसनीय तय करना मुश्किल

    न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कथित पीड़िता द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि यहां एक ऐसा मामला है, जहां पीड़ित महिला ने अपने बयान में धीरे-धीरे सुधार किया है, इसलिए यह तय करना मुश्किल है कि उसका कौन सा बयान विश्वसनीय और भरोसेमंद है। 

    ऐसा लगता है कि पीड़िता ने केवल बातों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की और इस प्रक्रिया में वह सच्चाई से भटक गई। 

    बयान में विरोधाभास व विसंगतियां

    पीड़िता की गवाही का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने पर, हमें उसके बयान में बड़े विरोधाभास, विसंगतियां और अलंकरण दिखाई देते हैं। कोर्ट ने अन्य गवाहों की गवाही और प्रमुख अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही को विरोधाभासों, सुधारों और अलंकरणों से भरी हुई पाते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया। 

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध की है अपील

    अपीलकर्ता पीड़िता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (1), ऊना द्वारा पारित दिनांक 25.04.2014 के निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की थी, जिसके तहत दो अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 506 के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया था।

    बंगाणा थाना में 2013 में दर्ज हुआ था मामला

    तथ्यों के अनुसार, 24.04.2013 को, पुलिस स्टेशन बंगाणा की पुलिस को, पुलिस अधीक्षक, ऊना के कार्यालय के माध्यम से, एक महिला के साथ दुष्कर्म की शिकायत प्राप्त हुई। अपीलकर्ता पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा कि नवंबर, 2012 के महीने में, करवा चौथ की पूर्व संध्या पर, अभियुक्त सीमा देवी ने उसे अपने घर बुलाया। पीड़िता अपने बच्चों के साथ सीमा देवी के घर गई और शाम को, उसके आग्रह पर वहीं रुकी और आरोपित सीमा देवी और उसके दो बच्चों के साथ रसोई में सो गई। 

    पीड़िता ने शिकायत में बताया कि रात करीब 10 बजे आरोपी ज्ञान चंद रसोई में घुस आया और सीमा देवी बाहर चली गई और उसने बाहर से दरवाजा भी बंद कर दिया। पीड़िता के अनुसार, आरोपी ज्ञान चंद ने उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा कि सीमा देवी और ज्ञान चंद ने मिलकर उसका यौन शोषण करने की साजिश रची। 

    वह डर और अपनी मानसिक स्थिति के कारण ज्ञान चंद के कृत्यों के बारे में किसी को नहीं बता सकी, लेकिन अत्यधिक विवशता के कारण, अंततः 18.04.2013 को उसने अपने पति और बहन को पूरी कहानी सुनाई। 

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    19.04.2013 को अभियोक्ता अपने पति के साथ पुलिस स्टेशन गई और एसएचओ, बंगाणा को एक आवेदन दिया। 24.04.2013 को वह अपने पति के साथ ऊना आई और पुलिस अधीक्षक, ऊना को शिकायत दर्ज कराई। 24.04.2013 को आरोपित ज्ञान चंद और 23.06.2023 को सीमा देवी को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच पूरी होने के बाद, पुलिस ने निचली अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत किया। 

    ट्रायल कोर्ट ने कर दिया था आरोपितों को बरी

    निचली अदालत ने आरोपियों के खिलाफ संज्ञान लिया और उनके खिलाफ धारा 376 और 506 आईपीसी के तहत आरोप तय किए गए। अभियोजन पक्ष ने अपना मामला साबित करने के लिए पंद्रह गवाह पेश किए। 25.04.2014 के निर्णय के तहत ट्रायल कोर्ट ने आरोपितों को बरी कर दिया, इसलिए अपीलकर्ता पीड़िता ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी।

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