हिमाचल: लोक अदालतें आपसी सहमति से तलाक का आदेश पारित करने की शक्तियां नहीं रखती, हाई कोर्ट की 2023 के मामले में टिप्पणी
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि लोक अदालतें आपसी सहमति से तलाक का आदेश पारित नहीं कर सकतीं। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने एक याचिका स्वीकार करते हुए यह व्यवस्था दी। कोर्ट ने सोलन की लोक अदालत के एक फैसले को रद्द कर दिया, क्योंकि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के नियमों के अनुसार, लोक अदालत को आपसी सहमति से तलाक देने का अधिकार नहीं है।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का शिमला स्थित परिसर। जागरण आर्काइव
विधि संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि लोक अदालतें आपसी सहमति से तलाक का आदेश पारित करने की शक्तियां नहीं रखती। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने याचिकाकर्ता पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए यह व्यवस्था दी।
कोर्ट ने कहा कि लोक अदालत का अवार्ड, जिसके तहत पार्टियों के पक्ष में आपसी तलाक दिया गया था, कानून की नजर में टिकने लायक नहीं है क्योंकि यह नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथारिटी (लोक अदालत) रेगुलेशंस 2009 के रेगुलेशन 17(7) के तहत आता है।
जब रेगुलेशन 17(7) आपसी तलाक देने पर रोक लगाता है तो लोक अदालत ऐसा कोई अवार्ड पास नहीं कर सकती। इस मामले में जिस अवार्ड को चुनौती दी गई है वह कानून की नजर में गलत है।
कोर्ट ने इस व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया। जिला सोलन के लोक अदालत के चेयरमैन का नौ सितंबर का अवार्ड रद किया।
लोक अदालत का अवार्ड अमान्य
याचिकाकर्ता का कहना था कि लोक अदालत का पास किया गया अवार्ड आरंभ से ही अमान्य है, क्योंकि लोक अदालत ने उस शक्ति का इस्तेमाल किया जो उसे नहीं दी गई थी।
आपसी सहमति से जमानत या तलाक नहीं दे सकते
नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथारिटी (लोक अदालत) रेगुलेशन 2009 का हवाला देते हुए कहा कि लोक अदालत इस रेगुलेशन के हिसाब से आपसी सहमति से कोई जमानत या तलाक नहीं दे सकती।
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तर्क दिया कि इस रेगुलेशन के बावजूद जो लोक अदालत को आपसी सहमति से कोई जमानत या तलाक देने से रोकता है, विवादित अवार्ड लोक अदालत ने पास किया था, जो अमान्य है और इसे रद किया जा सकता है।

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