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    चैत्र नवरात्र के पहले दिन तारा देवी मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, भक्तिमय माहौल में डूबे लोग

    Updated: Sun, 30 Mar 2025 03:52 PM (IST)

    चैत्र नवरात्र के पहले दिन तारा देवी माता मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी। शिमला से 18 किलोमीटर दूर स्थित तारादेवी मंदिर अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए जाना जाता है। समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर तक पहुंचने के लिए शिमला के पुराना बस स्टैंड से सीधी बस सुविधा है।

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    शिमला से 18 किलोमीटर की दूरी पर बना है तारादेवी माता का मंदिर

    जागरण संवाददाता, शिमला। चैत्र नवरात्रों पर राजधानी शिमला से 18 किलोमीटर की दूरी पर बने तारादेवी माता के मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है। मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर बना है। शोघी से कुछ दूरी पर स्थित ऊंची पहाड़ी पर माता तारादेवी का मंदिर है। दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध यह मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का भी केंद्र है।

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    तारादेवी मंदिर तक पहुंचने के लिए शिमला के पुराना बस स्टैंड से सीधी बस सुविधा है। इसके अलावा यहां वक्त अपनी निजी गाड़ी या टैक्सी से भी पहुंच सकते हैं। तारादेवी मंदिर तक पहुंचने के लिए रास्ता नेशनल हाईवे पर शोघी के नजदीक से जाता है। मंदिर के नजदीक ही पार्किंग की बेहतरीन सुविधा है। स्थानीय लोगों के साथ सैलानियों के लिए भी यह मंदिर आस्था का केंद्र है। माता तारा भक्तों की सभी मुरादें पूरी करती है।

    ढाई सौ साल पुराना है इतिहास

    तारादेवी मंदिर का इतिहास आज से करीब 250 साल पुराना है। कहा जाता है कि एक बार बंगाल के सेन राजवंश के राजा भूपेंद्र सेन शिमला आए थे। एक दिन घने जंगलों के बीच शिकार खेलने से पैदा हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई। सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रूप से अक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा।

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    सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेंद्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया। तारादेवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर शिव कुटिया बनी हुई है। घने जंगल में स्थित भगवान शिव का यह छोटा-सा मंदिर है। मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया था।

    यह मूर्ति लकड़ी से तैयार की गई थी। कुछ समय बाद राजा भूपेंद्र सेन के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में तारा माता के दर्शन हुए। इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया।

    राष्टपति द्रौपदी मुर्मू भी पहुंची थी मंदिर

    तारादेवी माता मंदिर में हर वर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते है। वर्ष 2024 में देश की राष्ट्रपित द्रौपदी मुर्मू ने भी मंदिर में माता के दर्शन किए थे।

    सभी भक्तों के कष्ट हरती है मां

    मंदिर के पुजारी कमलेश गर्ग ने बताया कि तारा माता मंदिर में आने वाले सभी भक्तों के कष्ट हरती है। नवरात्र में विशेष तौर से श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस व होमगार्ड के जवान तैनात किए गए हैं। मां के दर्शनों के लिए आने व जाने के लिए अलग-अलग व्यवस्था गई है ताकि श्रद्धालु आसानी से मंदिर में दर्शन कर सकें और भगदड़ सा माहौल न बने। यह मंदिर सरकार के अधिग्रहण में है और यहां का प्रबंध सरकार की ओर से स्थापित ट्रस्ट की परंपराओं एवं रस्मों के अनुकूल किया जाता है।

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