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    Mandi Cloudburst: कल तक दूसरों को खिलाने वाले आज खुद सड़क पर खाने को मजबूर; मलबे का ढेर बन गए कई गांव

    Updated: Tue, 08 Jul 2025 06:01 PM (IST)

    मंडी के सराज क्षेत्र में 30 जून को आई आपदा ने भारी तबाही मचाई। कभी रोटियों की खुशबू से भरे रहने वाले गांव आज राहत शिविरों में बदल गए हैं। लोगों ने अपने घर खेत और सब कुछ खो दिया है। बुजुर्ग तुलसी जैसे कई लोग जिन्होंने हमेशा दूसरों को खिलाया आज खुद मदद के लिए मजबूर हैं।

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    सराज हलके के थुनाग में सड़क पर बैठ खाना खाते आपदा प्रभावित

    हंसराज सैनी, मंडी। सराज हलके की घाटियों से जब रोटियों की सौंधी खुशबू उठती थी, तब हर व्यक्ति का मन यहीं रुक जाने को करता था। ये वो धरती थी जहां भूखा सोना पाप माना जाता था। हर घर का चूल्हा हर किसी के लिए जलता था। यहां न कोई होटल था न रेस्टोरेंट। लेकिन आज… वही लोग जिनके आंगन में कभी दूसरों के लिए थाल सजती थी, अब खुद राहत शिविरों में पत्तल लिए थरथराते हाथों से बैठें हैं।

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    खाना सामने है, पर गले से नहीं उतरता क्योंकि स्वाद की जगह अब सिर्फ गम और खालीपन है। 30 जून की रात, करीब साढ़े 10 बजे, सराज की जमीन थरथरा उठी। नालों और खड्डों का पानी उफनने लगा। लोगों को आभास हो गया था कि यह कोई आम वर्षा नहीं, एक बड़ी आपदा की आहट है। कुछ घरों से रोते बच्चों की आवाजें, कुछ जगहों से भागते कदमों की गूंज जैसे पूरी घाटी सांस रोककर सुन रही थी।

    देखते-देखते मलबा बन गए गांव-कस्बा

    अधिकतर परिवारों ने हिम्मत दिखाई, समय रहते सुरक्षित जगहों की ओर भाग निकले। लेकिन जिन्हें देर लगी, उनका सब कुछ,घर, बिस्तर, अनाज, मवेशी सब बह गया। देजी, पखरैर, थुनाग, लंबाथाच,पांडवशिला जैसे गांव कस्बे देखते ही देखते मलबे में बदल गए। सेब के हरे-भरे बागानों की जगह अब सिर्फ टूटी शाखाएं और कीचड़ हैं। जिन पेड़ों को बच्चों की तरह पाला गया था, वे जड़ से उखड़ चुके हैं। किसानों की सालभर की मेहनत पल भर में तबाह हो गई।

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    राहत शिविरों में कट रही जिंदगी

    बुजुर्ग तुलसी की आंखें राहत शिविर की पत्तल पर टिकी थी। थाली में दाल और चावल है, पर दिल भरा हुआ है। बेटा, जिसने उम्रभर लोगों को खिलाया हो, वो अब हाथ फैलाकर कैसे खा सकता है? कहते हुए उनका गला भर आता है।

    वो नाले, जो इस तबाही की जड़ बने, अब उसी के पानी से लोग अपने बचे-खुचे सामान को धो रहे हैं। हर बाल्टी पानी के साथ वो यादें भी धोने की कोशिश कर रहे हैं जो इस मिट्टी से जुड़ी थीं। बच्चों की आंखों में सवाल हैं- हमारा बैग कब मिलेगा? पापा कब खेत में काम करेंगे? माताओं की आंखों में इन सवालों के लिए अब कोई जवाब नहीं बचा है।

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