Mandi Cloudburst: फिर से उठ खड़ा हो रहा थुनाग, आपदा के 14 दिन बाद कैसे हैं सराज के हालात, क्या बदला
Mandi Cloudburst मंडी जिले के थुनाग में बादल फटने से भारी तबाही हुई। चारों तरफ मलबा और तबाही का मंजर था लेकिन अब धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं। बाजार फिर से खुल रहे हैं और लोग अपनी दुकानें साफ कर रहे हैं। राहत सामग्री पहुंच रही है और मेडिकल कैंप लगाए जा रहे हैं। हिमाचल मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव यूनियन भी मदद कर रही है।

हंसराज सैनी, थुनाग (मंडी)। Mandi Cloudburst, थुनाग… वो शांत, सुंदर व पहाड़ी सुंदरता से सजा एक कस्बा… जिसने कुछ ही दिनों पहले एक ऐसा मंजर देखा, जिसे शब्दों में पिरोना आसान नहीं। आसमान से बरसी आफत ने इस छोटे से पहाड़ी बाजार की रग-रग को झकझोर दिया। हर ओर मलबा था, टूटी छतें थीं, और बेबस आंखों में थी सिर्फ एक आस—अब क्या होगा? लेकिन अब, जब मलबा हटने लगा है, तो उस मलबे से धीरे-धीरे उम्मीदें भी सिर उठाने लगी हैं।
बाजार फिर से जागने लगा
वो दुकानदार जो कुछ दिन पहले तक अपने टूटे गल्ले व बह गए सामान को देख कर रो रहा था, अब फिर से अपनी दुकान की सफाई कर रहा है। कुछ नहीं बचा था, पर हिम्मत बची थी, कहते हैं 58 वर्षीय दुकानदार ठाकुर दास। सड़क पर जेसीबी मशीनों की गूंज अब डर की नहीं, उम्मीद की आवाज बन गई है।
दूध, राशन, सब्जियां… अब फिर से मिलने लगीं
आपदा के शुरुआती दिनों में भूख व प्यास ने हर चेहरे को बुझा दिया था। महिलाएं लाइन में खड़ी होकर कहती थीं, बस थोड़ा सा आटा मिल जाए। अब हालात कुछ बेहतर हैं। राहत सामग्री की गाड़ियां आ रही हैं, स्थानीय प्रशासन व स्वयं सेवीर कंधे से कंधा मिलाकर जरूरतमंदों तक सामान पहुंचा रहे हैं। बच्चा हो या बुजुर्ग, हर कोई कहता है, अब कम से कम पेट भरने की चिंता नहीं।
अब चिंता है, बचपन और बुजुर्गों की सेहत की
कीचड़, बदबू और गंदा पानी, बीमारी को न्योता दे रहे हैं। मायाधार गांव की सात साल की माही को तेज बुखार है। उसकी मां सुमन कहती हैं, डाक्टर होते तो दिखा लाते… पर अस्पताल तो दूर, सड़क भी टूटी है। इसी चिंता को समझते हुए थुनाग में पहला मेडिकल कैंप लगाया गया। डाक्टरों ने माही को दवाएं दी, उसकी मां को दिलासा दिया। अब बगस्याड व जंजैहली में भी ऐसे कैंप लगाए जाएंगे। यह सिर्फ इलाज नहीं, इंसानियत का मरहम है।
हिमाचल मेडिकल रिप्रजेंटेटिव यूनियन दे रही नई संजीवनी
इस दर्द की घड़ी में जब कई लोग चुपचाप तमाशा देख रहे थे, तब हिमाचल मेडिकल रिप्रजेंटेटिव यूनियन (एचएमआरयू) सामने आई। अपने निजी संसाधनों से दवाएं, किट्स व जरूरी सामग्री हर प्रभावित तक पहुंचा रहे हैं। इनकी टीमों ने वो काम किया, जो किसी देवदूत से कम नहीं।
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थुनाग का हौसला जिंदा है
यह कहानी सिर्फ एक कस्बे की नहीं, बल्कि उसके लोगों के जज्बे की है। जिसने सबकुछ खोकर भी हार नहीं मानी। जिसने आंसुओं को ताकत में बदला। जिसने अपने टूटे घरों के बीच खड़े होकर कहा, हम फिर बनाएंगे… और पहले से बेहतर बनाएंगे।
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