Mandi Disaster: प्रशासन पता नहीं कब पहुंचेंगा, गैंती-बेलचा उठा राह जोड़ने लगे सराजवासी, महिला ने की दिल छू लेने वाली बात
Mandi Disaster हिमाचल प्रदेश के सराज घाटी में आपदा के बाद सरकार की मदद न पहुंचने पर ग्रामीणों ने खुद ही सड़क बनाने का काम शुरू कर दिया है। रुशाड़ देजी और थुनाड़ी जैसे गांवों में लोग एकजुट होकर लकड़ियां ला रहे हैं अस्थायी पुलिया बना रहे हैं और मिट्टी-पत्थर जोड़कर रास्ते ठीक कर रहे हैं।

जागरण संवाददाता, मंडी। Mandi Disaster, प्राकृतिक आपदाग्रस्त सराज घाटी में जहां सरकार की मदद अब तक नहीं पहुंची है, वहां लोगों ने अपनी हिम्मत व एकता को हथियार बनाकर आपदा से जूझने की ठान ली है। रुशाड़,देजी,थुनाड़ी आदि दूरदराज के गांवों में भारी वर्षा व भूस्खलन ने सड़कों को निगल लिया है। पुल बह गए। नालों ने रौद्र रूप ले रखा है।
गांवों के लोगों ने प्रशासनिक उदासीनता के बीच खुद गैंती-बेलचा उठा लिया है। इन गांवों में हर सुबह अब किसी राहत दल का इंतजार नहीं होता है, बल्कि लोग खुद राहत बनकर मैदान में उतर रहे हैं। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं सभी अपने-अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। कोई लकड़ियां ला रहा है, कोई खड्ड पर अस्थायी पुलिया बना रहा है, तो कोई मिट्टी व पत्थर जोड़कर टूटी पगडंडियों को रास्ता देने में जुटा है।
झुंडी पंचायत के जूड़ गांव की हिमा देवी बताती हैं कि बच्चों को स्कूल भेजना है, बीमारों को अस्पताल ले जाना है। खेतों तक पहुंचना है। कोई सरकार तो दिख नहीं रही। इसलिए हमने सोचा कि अब अपने बलबूते ही रास्ता बनाना होगा। इसी भावना से गांव की महिलाएं भी लकड़ी ढोने व रास्तों पर पत्थर बिछाने में पीछे नहीं हैं।
अस्थायी पुल आत्मसम्मान व सामूहिक चेतना के प्रतीक
सराज की खड्डों पर जो अस्थायी पुल बनाए जा रहे हैं, वह न सिर्फ राह का साधन हैं, बल्कि ग्रामीणों के आत्मसम्मान व सामूहिक चेतना के प्रतीक भी हैं। यह पुल यह बताते हैं कि जब व्यवस्था ठप हो जाए, तब समाज खुद को संभालना जानता है।
अस्थायी पुलियों से डरते-डरते गुजरते हैं बच्चे
सबसे भावुक दृश्य तब देखने को मिलता है, जब बच्चे स्कूल यूनिफार्म पहनकर इन लकड़ी की अस्थायी पुलियों पर डरते-डरते कदम रखते हैं। उनकी आंखों में भय है, पर उम्मीद भी कि शायद किसी दिन पक्की सड़क व सुरक्षित पुल बनेंगे।
तीन दिन पहले अस्थायी पुलिया से गिर गए थे दो लोग
तीन दिन पहले ही अस्थायी पुलिया पार करते समय संतुलन बिगड़ने से एक महिला व युवक खड्ड में गिर गए थे। लोगों ने कड़ी मशक्कत के बाद दोनों की जान बचाई थी। सराज के इन साहसी व स्वाभिमानी लोगों ने साबित कर दिया है कि आपदा में भी आशा की किरण बची रहती है। अगर दिल में हौसला हो व हाथ में गैंती-बेलचा। यहां हर पगडंडी सिर्फ रास्ता नहीं, बल्कि एक उम्मीद है, बेहतर कल की, सुरक्षित भविष्य की।
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