हिमाचल में दरकते पहाड़ व बादल फटने से बिजली परियोजनाएं खतरे में, ...तो विद्युत उत्पादन पर पड़ेगा असर
Himachal Hydro power Projects हिमाचल प्रदेश में बादल फटने और पहाड़ दरकने की घटनाओं ने बिजली परियोजनाओं के लिए खतरा पैदा कर दिया है। पार्वती और ब्यास नदी पर बनी पनविद्युत परियोजनाओं को गाद से नुकसान हो रहा है जिससे बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इन परियोजनाओं से पंजाब हरियाणा और राजस्थान को भी आपूर्ति होती है।

हंसराज सैनी, सैंज (कुल्लू)। हिमाचल प्रदेश में बादल फटने व पहाड़ दरकने की घटनाएं बिजली परियोजनाओं के लिए खतरा बन गई हैं। भूमि कटाव नहीं रोका व नदियों-बांधों की ड्रेजिंग न की तो बिजली उत्पादन प्रभावित होगा। गाद से नदियों की गहराई व प्रवाह प्रभावित हुआ है।
कुछ वर्ष में कुल्लू व मंडी जिला में बादल फटने व पहाड़ दरकने की घटनाएं बढ़ी हैं। इससे भारी मात्रा में मलबा व चट्टानें नदियों में पहुंच रही हैं।
इससे पार्वती व ब्यास नदी पर बनी पनविद्युत परियोजनाओं सैंज में 800 मेगावाट की पार्वती द्वितीय व 100 मेगावाट की सैंज परियोजना, 520 मेगावाट की पार्वती तृतीय परियोजना, 126 मेगावाट वाली लारजी परियोजना व 990 मेगावाट वाले डैहर पावर हाउस को खतरा हो गया है। इन बिजली परियोजनाओं से पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान को भी बिजली आपूर्ति होती है।
पार्वती नदी का स्तर ऊंचा हुआ, परियोजना सहित सैंज बाजार को भी खतरा
25 जून को जीवा नाला में बादल फटने के बाद पार्वती नदी का स्तर कई जगह 10 मीटर तक ऊंचा हो गया है। यह परियोजनाओं के साथ सैंज बाजार के लिए भी खतरे की घंटी है। सैंज में राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) का 800 मेगावाट क्षमता वाला पार्वती द्वितीय चरण पनविद्युत प्रोजेक्ट व कुछ दूरी पर हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीपीसीएल) का 100 मेगावाट का सैंज प्रोजेक्ट मलबे के बुरी तरह प्रभावित हुए। मलबे ने एचपीपीसीएल प्रोजेक्ट के टेल रेस को बंद कर दिया, जिससे पावर हाउस का आउटलेट बंद हो गया है।
एनएचपीसी के पावर हाउस के बाहर भी चट्टानें आ गई हैं। इससे विद्युत उत्पादन कई दिन तक बाधित रहा। 520 मेगावाट क्षमता वाले पार्वती तृतीय चरण के बांध में भी मलबा भरने लगा है। बिजली बोर्ड का 126 मेगावाट का लारजी प्रोजेक्ट ब्यास व पार्वती नदी की दोहरी मार झेल रहा है।
बीबीएमबी और अन्य परियोजनाएं भी संकट में
भाखड़ा ब्यास प्रबंध बोर्ड (बीबीएमबी) का पंडोह बांध संकट से जूझ रहा है। ब्यास नदी के अलावा सराज क्षेत्र की बाखली खड्ड से बड़ी मात्रा में मलबा यहां पहुंच रहा है। इसका असर सुंदरनगर के संतुलन जलाशय और 990 मेगावाट वाले डैहर पावर हाउस पर पड़ रहा है। गाद से संतुलन जलाशय का स्तर 13 फीट तक ऊंचा हो चुका है।
बरसात में डैहर पावर हाउस में कई दिन तक बिजली उत्पादन बाधित रहा। पौंग बांध जलाशय की भंडारण क्षमता पर भी ब्यास व ऊहल नदी से आने वाली गाद का असर पड़ रहा है।
सबसे बड़ी चुनौती ड्रेजिंग की
परियोजना प्रबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ड्रेजिंग की है। वन विभाग की स्वीकृति के बिना ड्रेजिंग संभव नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते कैचमेंट क्षेत्रों को स्थिर करने, भू-कटाव रोकने व नियमित ड्रेजिंग जैसे कदम नहीं उठाए गए तो बिजली उत्पादन व सिंचाई प्रभावित होगी। इससे पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान तक को पानी की कमी झेलनी पड़ सकती है।
बादल फटने और पहाड़ दरकने की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक हैं। समय रहते अगर ड्रेजिंग नहीं हुई तो भविष्य में प्रोजेक्टों के लिए खतरा हो सकता है। इस संदर्भ में प्रदेश सरकार को पत्र लिखा है।
-रंजीत सिंह, महाप्रबंधक, एनएचपीसी पार्वती द्वितीय चरण पनविद्युत प्रोजेक्ट।
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