Manali: पर्यटन का बढ़ता बोझ बिगाड़ रहा मनाली का पर्यावरणीय संतुलन, चौंका रहे अध्ययन के आंकड़े; जम रही काली बर्फ
Manali Tourism, मनाली में पर्यटन अब विकास नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संकट का कारण बनता जा रहा है। हर वर्ष लाखों पर्यटकों की आमद से अर्थव्यवस्था को मजबूती ...और पढ़ें

हिमाचल प्रदेश का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मनाली। जागरण आर्काइव
हंसराज सैनी, मंडी। हिमाचल के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में शामिल मनाली में पर्यटन अब विकास नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संकट का कारण बनता जा रहा है। हर वर्ष लाखों पर्यटकों की आमद से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल रही है तो वहीं प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव मनाली की सुंदरता व भविष्य दोनों के लिए खतरे की घंटी है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एक अध्ययन में मनाली में पर्यटन से जुड़े गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव सामने आए हैं। यह अध्ययन स्विटजरलैंड के इंटरनेशनल जर्नल आफ फ्रंटियर्स इन साइंस एंड टेक्नोलाजी में प्रकाशित हुआ था।
पहुंचते हैं 30 लाख से अधिक पर्यटक
नगर परिषद क्षेत्र मनाली में प्रतिवर्ष 30 लाख से अधिक पर्यटक पहुंचते हैं। विशेषकर मई से सितंबर के बीच यहां लोगों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। अध्ययन के अनुसार, सामान्य दिनों में जहां मनाली में प्रतिदिन 14 से 15 टन ठोस कचरा निकलता है तो पीक सीजन में यह बढ़कर 35 से 36 टन प्रतिदिन तक पहुंच जाता है।
खुले में फेंका जा रहा कचरा
कचरे के निस्तारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने से इसका बड़ा हिस्सा लैंडफिल साइट और खुले क्षेत्रों में फेंका जा रहा है। इससे मिट्टी और जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। पर्यटन के साथ बढ़ती वाहनों की संख्या ने वायु प्रदूषण को गंभीर स्तर पर पहुंचा दिया है।
आरएसपीएम का स्तर भी नहीं ठीक
पर्यटन सीजन में मनाली में श्वसनीय निलंबित कणिकीय पदार्थ (आरएसपीएम) का स्तर 108.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक दर्ज किया जा रहा है, जबकि राष्ट्रीय मानक 60 और विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानक 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।
रोहतांग में जम रही काली बर्फ
रोहतांग दर्रा क्षेत्र में अत्यधिक यातायात के कारण काली बर्फ (ब्लैक स्नो) जमा हो रही है जो प्रदूषण के भयावह रूप को दर्शाती है। जल प्रदूषण की स्थिति भी चिंताजनक बनी हुई है।
नदी के जल में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ रही
पर्यटन सीजन में मनाली में सीवेज उत्पादन 15 से 16 एमएलडी तक पहुंच जाता है, जबकि यहां मौजूद सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता केवल 1.82 एमएलडी है। नतीजतन, बड़ी मात्रा में बिना उपचारित गंदा पानी ब्यास नदी में मिल रहा है, जिससे नदी के जल में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ रही है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है। तेजी से बढ़ते पर्यटन ने भूमि उपयोग के स्वरूप को भी बदल दिया है।
हरित आवरण घट रहा
पर्यटकों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए होटल, रेस्तरां, काटेज और रेस्टोरेंट बनाए जा रहे हैं। इसके चलते कृषि भूमि, सेब के बाग और पारंपरिक मकान कंक्रीट के ढांचों में तब्दील हो रहे हैं। इससे हरित आवरण घट रहा है। जल व वन संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
सामाजिक स्तर पर दोहरा प्रभाव
सामाजिक स्तर पर पर्यटन के दोहरे प्रभाव सामने आए हैं। एक ओर होटल, टैक्सी, होम-स्टे, ट्रैवल एजेंसियों और साहसिक गतिविधियों से रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। वहीं नशे का कारोबार, सांस्कृतिक क्षरण, महंगाई और सामाजिक असंतुलन जैसी समस्याएं भी बढ़ी हैं।
पूरी तरह बिगड़ सकता है पर्यावरणीय संतुलन
स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन सीजन में रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे आम जनजीवन प्रभावित होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पर्यटन को नियंत्रित और योजनाबद्ध ढंग से नहीं बढ़ाया गया, तो मनाली का पर्यावरणीय संतुलन पूरी तरह बिगड़ सकता है।

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