कुल्लू के मातला गांव में डेढ़ किलोमीटर तक पड़ गई दरारें, लोगों में भय और बेबसी; ऐतिहासिक मंदिर भी खतरे में
Himachal Pradesh Kullu Landslide कुल्लू के मातला गांव में भूस्खलन से तबाही मची है जिससे 70 परिवार बेघर हो गए हैं। घरों में दरारें आने से लोग खेतों में तिरपाल लगाकर रहने को मजबूर हैं। गांव का ऐतिहासिक आदि ब्रह्मा मंदिर भी खतरे में है क्योंकि मंदिर के आसपास की जमीन धंस रही है। ग्रामीणों ने प्रशासन से पुनर्वास और मंदिर को बचाने की गुहार लगाई है।

हंसराज सैनी, मातला (कुल्लू)। Himachal Pradesh Kullu Landslide, जिला कुल्लू के मातला गांव में इस समय भय और बेबसी का माहौल है। सेब, अनार और जापानी फल की खुशबू से महकने वाला यह गांव आज भारी भू-स्खलन व दरारों से दहशत में है। यहां केवल ग्रामीण ही नहीं, बल्कि गांव का आदि ब्रह्मा मंदिर भी खतरे में है।
मंदिर के साथ-साथ आसपास की भूमि लगातार धंस रही है। ग्रामीण कह रहे हैं कि यहां अब भक्त और भगवान दोनों ही सुरक्षित नहीं बचे हैं।
एक झटके में उजड़ गया घर-परिवार
मातला गांव के करीब 70 परिवार एक झटके में अर्श से फर्श पर आ गए। 33 मकानों में से एक भी ऐसा नहीं बचा, जो रहने योग्य हो। जिन दीवारों पर कभी बच्चों की हंसी गूंजती थी, वहां अब दरारें और मलबा ही दिखाई देता है। ग्रामीणों को अपने घरों से निकलकर खुले में या तिरपालों के नीचे रहना पड़ रहा है।
मंदिर भी खतरे में
गांव के साथ-साथ आदि ब्रह्मा का ऐतिहासिक मंदिर भी धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। यह मंदिर वर्षों से यहां की आस्था का केंद्र रहा है। गांववालों का कहना है कि अगर समय रहते सुरक्षा के उपाय नहीं किए गए तो धार्मिक धरोहर भी मलबे में बदल जाएगी।
खेतों में तिरपाल और पशुशालाओं में लोग
मकानों के रहने लायक न बचने के कारण कई परिवार खेतों में तिरपाल लगाकर रह रहे हैं। कुछ लोग तो अपने मवेशियों की पशुशालाओं में शरण लेने को मजबूर हैं। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग ठंड और बरसात के बीच असुरक्षित हालात में जीवन गुजार रहे हैं।
डेढ़ किलोमीटर तक दरारें
मातला से जाखला तक लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबी दरारें पड़ चुकी हैं। ये दरारें हर दिन चौड़ी होती जा रही हैं, जिससे लोगों में डर और चिंता बढ़ रही है। ग्रामीणों का कहना है कि पहले यह सिर्फ कुछ घरों तक सीमित था, लेकिन अब खतरा पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले रहा है।
प्रशासन से गुहार
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और सरकार से तत्काल राहत व पुनर्वास की मांग की है। उनका कहना है कि अब केवल मुआवजा या अस्थायी मदद से काम नहीं चलेगा। उन्हें सुरक्षित जगह पर बसाने की आवश्यकता है। लोगों को डर है कि यदि जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले दिनों में यह त्रासदी और भी बड़ी हो सकती है।
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आंसुओं के बीच उम्मीद
हालांकि हालात बेहद भयावह हैं, फिर भी लोग उम्मीद नहीं छोड़ रहे। वे चाहते हैं कि सरकार और प्रशासन मिलकर गांव को बचाने और उन्हें सुरक्षित स्थान पर बसाने के उपाय करें। ग्रामीणों की यह भी मांग है कि मंदिर को भी तत्काल संरक्षण मिले ताकि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर दोनों बच सकें।
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