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    Kullu News: पहाड़ की अनूठी परंपरा, त्योहार के एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली; पढ़िए क्यों है ऐसा रिवाज

    By davinder thakurEdited By: Preeti Gupta
    Updated: Wed, 06 Dec 2023 03:25 PM (IST)

    देशभर में जहां दिवाली पर्व धूमधाम से संपन्न हो चुका है तो वहीं अब हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में दिवाली के ठीक एक माह बाद बूढ़ी दिवाली (Budhi Diwali in Kullu) के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। कुल्लू जिले के निरमंड में अनोखे रूप से यह पर्व मनाया जाता है। । इस बार निरमंड की बूढ़ी दीवाली 12 से 15 दिसंबर तक मनाई जाएगी

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    पहाड़ की अनूठी परंपरा, त्योहार के एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली

    दविंद्र ठाकुर, कुल्लू। Kullu News: देशभर में जहां दिवाली पर्व धूमधाम से संपन्न हो चुका है तो वहीं, अब हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में दिवाली के ठीक एक माह बाद बूढ़ी दिवाली (Budhi Diwali in Kullu) के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। यहां पर वैदिक काल से आज भी पुरातन परंपरा का निर्वाह किया जाता है।

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    कुल्लू के निरमंड में मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली 

    ऐसी ही परंपरा हिमाचल के अन्य जिलों सिरमौर, शिमला, जनजातीय जिला लाहुल स्पीति, आदि में भी है। कुल्लू जिले के निरमंड में अनोखे रूप से यह पर्व मनाया जाता है। इस बार निरमंड की बूढ़ी दीवाली 12 से 15 दिसंबर तक मनाई जाएगी। तीन दिनों तक लोग रात को मशालें जलाकर बूढ़ी दीवाली मनाते हैं।

    पुरातन संस्कृति की दिखती है झलक

    इस पर्व में लोगों को पुरातन संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। प्रकाशोत्सव के प्रतीक के तौर पर यहां पर मशालें जलाई जाती हैं, पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग झूम उठते हैं। निरमंड में माता अंबिका और भगवान परशुराम के कारदार पुष्पेंद्र शर्मा बताते हैं कि यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है। इसका बर्णय ऋग्वेद में भी मिलता है।

    रामायण और महाभारत से है बूढ़ी दिवाली का जुड़ाव

    इस बूढ़ी दीवाली को रामायण और महाभारत से जुड़ाव है। पहले दिन निरमंड में रात भर इस पर्व को मनाते हैं। दूसरे दिन कौरव और पांडव के प्रतीक के तौर पर दो दल रस्साकशी करेंगे। विशेष तौर से बनाई गई मूंजी घास के रस्से से दोनों दल एक-दूसरे के साथ शक्ति प्रदर्शन करेंगे।

    बूढ़ी दिवाली में ये कार्यक्रम होंगे शामिल

    इसके अलावा रात को एक दल गांव में मशालों के साथ प्रवेश करता है। रात को राज कवि काव्य,रामायण , महाभारत के वीर रस का पान करवाते हैं। बाड़ नृत्य व माला नृत्य के साथ तीन दिनों के बाद निरमंड की बूढ़ी दीवाली का समापन होता है। यही नहीं इसके बाद लगातार फरवरी माह तक लगातार दीपावली यानि दियाली मनाने का सिलसिला जारी रहता है।

    भगवान परशुराम से जुड़ी मान्यता

    जिला कुल्लू का निरमंड ''पहाड़ी काशी'' के नाम से प्रसिद्ध है। यह जगह भगवान परशुराम ने बसाई थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार जब वह अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। उसी दौरान एक दैत्य ने सर्पवेश में भगवान परशुराम और उनके शिष्यों पर आक्रमण कर दिया था।

    क्या है बूढ़ी दिवाली मनाने की कहानी? 

    जिस पर भगवान परशुराम ने अपने परसे से उस दैत्य का बध किया था। दैत्य का वध होने पर वहां के लोगों ने जमकर खुशियां मनाई। जिसे आज भी यहां पर बूढ़ी दिवाली वाले दिन मनाया जाता है। इस अवसर पर यहां महाभारत युद्ध के प्रतीक के रूप में युद्ध के दृश्य अभिनीत किए जाते हैं।

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    लोकगीत और नृत्य कर मनाते हैं जश्न

    इस दौरान लोग परोकड़िया गीत, विरह गीत भयूरी, रासा, नाटियां, स्वांग के साथ हुड़क नृत्य करके जश्न मनाते हैं। कुछ गांवों में बूढ़ी दिवाली के त्योहार पर बढ़ेचू नृत्य करने की परंपरा भी है। कई जगहों पर आधी रात को बुड़ियात नृत्य भी किया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली, अखरोट बांटकर बधाई देते हैं।

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