Guler Paintings: 31 करोड़ रुपये में बिकी गुलेर चित्रकला की दो पेंटिंग, 18वीं सदी में नैनसुख ने बनाई थी कलाकृति
Guler Miniature Painting गुलेर चित्रकला की दो पेटिंग्स को मुंबई में प्रमुख कला नीलामघर पंडोल में आयोजित नीलामी में 31 करोड़ रुपये में खरीदा गया है। ये अबतक की सबसे अधिक दाम पर बिकीं पेंटिग्स हैं। बता दें कि 18वीं सदी में राजा गोवर्धन चंद (Raja Govardhan Chand) के कार्यकाल में गुलेर लघु चित्रकला को प्रोत्साहन मिलना आरंभ हुआ था।

जागरण संवाददाता, धर्मशाला। गुलेर लघु चित्रकला (मिनिएचर पेंटिंग) को मुंबई में कद्रदान मिले हैं। गुलेर रियासत के चितेरे रहे नैनसुख की चित्रकला को सम्मान मिला है। उनकी महाराजा बलवंत सिंह की गीत-संगीत महफिल की पेंटिंग पिछले दिनों मुंबई में प्रमुख कला नीलामघर पंडोल में आयोजित नीलामी में 15 करोड़ रुपये में बिकी है। उनकी अगली पीढ़ी की ओर से बनाई गीत गोविंद पर आधारित पेंटिंग 16 करोड़ रुपये में बिकी।
6 करोड़ में बिकी थी श्रीकृष्ण की पेंटिंग
दावा किया जा रहा है कि अब तक सबसे अधिक दाम पर ये पेंटिंग बिकी हैं। इससे पहले भगवान श्रीकृष्ण जी की कालिया नाग पर नृत्य की मंडी चित्रकला की पेंटिंग छह करोड़ रुपये में बिक चुकी है।
वाशिंगटन में स्थापित देवी की बसोहली शैली में बनी पेंटिंग एक करोड़ व इसी शैली में ही बनी पहाड़ी पेंटिंग 74 लाख रुपये में लंदन में नीलाम हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि 18वीं सदी में राजा गोवर्धन चंद के कार्यकाल में गुलेर लघु चित्रकला को प्रोत्साहन मिलना आरंभ हुआ था।
कौन थे चित्रकार नैनसुख नैनसुख
जम्मू के रहने वाले थे। वह पिता पंडित सेऊ सहित गुलेर आए थे। पंडित सेऊ के दो बेटे मनकू और नैनसुख थे। ये दोनों ही चितेरे थे। कांगड़ा व गुलेर के महाराजाओं की चित्रकला के क्षेत्र में कई उपलब्धियां रही हैं। उन्होंने कांगड़ा व गुलेर चित्रकला को प्रोत्साहित किया।
आज देश-विदेश में कला संग्रहालयों में कांगड़ा व गुलेर लघु चित्रकला की पेंटिंग शोभा बढ़ा रही हैं। इनमें लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय, स्विट्जरलैंड के रीटबर्ग संग्रहालय ज्यूरिख, राष्ट्रीय कला संग्रहालय चंडीगढ़ व लाहौर में कांगड़ा व गुलेर लघु चित्रकला की पेंटिंग सुशोभित है।
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कांगड़ा व गुलेर चित्रकला में अंतर
कांगड़ा व गुलेर लघु चित्रकला में ज्यादा अंतर नहीं है। गुलेर लघु चित्रकला में प्राकृतिक चित्रण है और इसमें चेहरे गोलाकार बनाए जाते हैं जबकि कांगड़ा लघु चित्रकला में भी चेहरे लंबे होते हैं। चित्रकारों के अनुसार पेंटिंग बनाने में धैर्य व संयम की जरूरत है।
विषय के हिसाब से एक पेंटिंग को बनाने में चार से पांच माह का समय लगता है। इनमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है। प्राकृतिक रंग बनाने के लिए पत्थर व वनस्पति रंगों का प्रयोग किया जाता है।
गुलेर लघु चित्रकला की पेंटिंग को अच्छे दाम मिलना सुखद है। स्थानीय स्तर पर चितेरे कांगड़ा लघु चित्रकला को जीवित रखने के लिए काम कर रहे हैं। हाल ही में ललित कला अकादमी की ओर से राष्ट्रपति भवन में कांगड़ा लघु चित्रकला को सुशोभित किया है। चित्रकला को बनाने में मैंने, मुकेश कुमार, सुरेश चौधरी, मोनू कुमार व दीपक भंडारी ने योगदान दिया है।
-धनीराम खुशदिल, कांगड़ा लघु चित्रकला चित्रकार
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