पिता चलाते थे गाड़ी बेटी दौड़ाएगी रेलगाड़ी, पहली बार हिमाचल की बेटी बनी ट्रेन चालक
बचपन से पिता को गाड़ी चलाते देख बेटी के मन में ऐसा ख्वाब पलने लग गया जो आज साकार होने वाला है।
भवारना (पालमपुर), शिवालिक/कुलदीप। पहाड़ी प्रदेश में बेशक साइकिल चलाना भी किसी खतरे से कम नहीं है। यहां की सर्पीली सड़कों और पहाड़ों को देखकर हर किसी का मन ठहर सा जाता है, लेकिन यहां की बेटियां फौलाद की तरह मजबूत हौसला रखती हैं। ऐसा ही हौसला कांगड़ा क्षेत्र की पालमपुर की बेटी का भी है, जिसने पिता को गाड़ी चलाते क्या देखा तो खुद ट्रेन चलाने का ख्वाब पाल लिया। बेटी किरण का ऐसा ही ख्वाब पलने भी लगा है और जल्द ही साकार होने वाला है।
उपमंडल पालमपुर के छोटे से गांव मसेरना की बेटी किरण पिता की तरह गाड़ी चलाएगी लेकिन यह छोटी-मोटी न होकर कई डिब्बों वाली रेलगाड़ी होगी। किरण इन दिनों कानपुर में रेलगाड़ी चलाने का प्रशिक्षण ले रही हैं। 25 मार्च को प्रशिक्षण की अवधि समाप्त होने के बाद किरण रेलगाड़ी को चलाने वाली हिमाचल की पहली युवती होगी। वह असिस्टेंट लोको पायलट के रूप में रेलवे विभाग में सेवाएं देंगी।
ग्राम पंचायत पुन्नर के मसेरना गांव के राजेंद्र ने लंबे समय तक एसडीएम पालमपुर के चालक के रूप में सेवाएं दी हैं और अब रिटायर हो गए हैं। किरण राजेंद्र कुमार के तीन बच्चों में से दूसरे नंबर पर है। बड़ी बेटी की राजेंद्र शादी कर चुके हैं तो छोटी पढ़ाई में होशियार थी। पढ़ाई में लगन को देखते हुए शिक्षकों ने उसे इलेक्ट्रॉनिक में डिप्लोमा करने की सलाह दी।
कुछ अलग करने की जिद
कुछ अलग करने की जिद रखने वाली किरण ने कांगड़ा में तीन वर्ष का डिप्लोमा करने के बाद स्वजनों से आगे पढ़ने की इच्छा जताई। घर की ऐसी स्थिति नहीं थी कि बेटी को आगे पढ़ाते पर उसकी ललक और दृढ़इच्छा को देखते हुए राजेंद्र ने उसे बीटेक करने के लिए पंजाब के लोंगोवाल भेजा। बीटेक के बाद किरण ने रेलवे में नौकरी के लिए आवेदन किया और लिखित परीक्षा पास की। इसके बाद उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और चयन हो गया। चयन के बाद किरण का प्रशिक्षण आरंभ हो गया। राजेंद्र कुमार बताते हैं कि बेटी 25 मार्च को प्रशिक्षण पूरा कर लेंगी। बेटी की सफलता से स्वजन प्रसन्न हैं और गांव में खुशी की लहर है। किरण बतौर रेलगाड़ी चालक अब सेवाएं प्रदान करेंगी। राजेंद्र कुमार के अनुसार, उनका छोटा बेटा कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है।
1988 में सुरेखा बनीं थी पहली रेलगाड़ी चालक
सुरेखा यादव भारतीय रेलवे में पहली महिला रेलगाड़ी चालक बनी थीं। उन्होंने यह उपलब्धि 1988 में हासिल की थी। उनकी पहली तैनाती महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में हुई थी। जबकि उत्तर पूर्व रेलवे में सहायक लोको पायलट के रूप में पहली बार यह उपलब्धि समता कुमारी के नाम रही है। उत्तर प्रदेश निवासी समता ने 13 जुलाई 2010 को लखनऊ-गोंडा पैसेंजर ट्रेन को सहायक लोको पायलट के तौर पर चलाया था। समता कुमारी को उस समय देश की की पाचवीं महिला रेल चालक बनी थीं।
13 लाख से अधिक रेलवे कर्मचारी
भारतीय रेल एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह 161 साल से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, जिसके 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। देश में पहली बार 22 दिसंबर, 1851 को रेल पटरी पर दौड़ी थी।