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    हड्डियों में असहनीय दर्द हो सकता है कैंसर व टीबी समेत गंभीर रोगों की चेतावनी, विशेषज्ञ की महिलाओं के लिए खास सलाह

    Updated: Thu, 11 Sep 2025 06:28 PM (IST)

    Bones Pain Warning हड्डियों को मजबूत रखने के लिए व्यायाम करना और धूप में बैठना जरूरी है। हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. विपिन शर्मा ने बताया कि जवानी में सेहत का ध्यान रखने से बुढ़ापे में हड्डियों की बीमारियां परेशान नहीं करेंगी। हड्डियों में असहनीय दर्द कैंसर टीबी जैसे गंभीर रोगों का संकेत हो सकता है जिसे अनदेखा नहीं करना चाहिए।

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    हड्डियों में असहनीय दर्द गंभीर रोगों की चेतावनी हो सकता है। प्रतीकात्मक फोटो

    तरसेम सैनी, टांडा (कांगड़ा)। Bones Pain Warning, हमारी हड्डियां उसी तरह रखरखाव चाहती हैं जैसे हम अपने शरीर का रखते हैं। हड्डियों को मजबूत रखने के लिए सबसे जरूरी है व्यायाम करें। थोड़ी देर के लिए ही सही धूप में जरूर बैठें, ताकि विटामिन डी मिले और हड्डियों की मजबूती बनी रहे। डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा के हड्डी रोग विभाग के अध्यक्ष डा. विपिन शर्मा ने बताया कि जवानी में सेहत का ध्यान रखेंगे तो बुढ़ापे में हड्डियां परेशान नहीं करेंगी। 

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    हड्डियों में असहनीय दर्द हो रहा है तो यह कैंसर, टीबी समेत गंभीर रोगों की चेतावनी है, जिसे अनदेखा न करें। हड्डियां कमजोर तो नहीं हो रही यह जानने के लिए सीरम विटामिन डी जांच अवश्य करवानी चाहिए। 

    'दैनिक जागरण' से विशेष बातचीत में हड्डी रोग विशेषज्ञ एवं विभागाध्यक्ष डा. विपिन शर्मा ने बताया कि हड्डियों में तेज दर्द या यूं कहें ऐसा दर्द जिसे सहन न कर सकें तो जांच अवश्य करवाएं। यह दर्द हड्डी के कैंसर समेत गंभीर रोगों की खतरे की घंटी हो सकती है।

    हड्डी रोगों से संबंधित जांच किस आयु में करवा लेनी चाहिए?

    हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. विपिन शर्मा ने बताया कि जवानी में हम शरीर पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। खान-पान का ख्याल नहीं रखते। नौकरीपेशा लोग नौ से पांच बजे तक कार्यालय में रहते हैं। इस कारण सूर्य के साथ संपर्क नहीं हो पाता तो हमारे शरीर में विटामिन डी नहीं बनता है। जवानी में हम इन चीजों का पालन न भी करें तो शरीर दौड़ता रहता है, लेकिन जब 40-50 वर्ष के आसपास पहुंचते हैं तो हार्मोनस में कमी आने लगती है।

    कुदरती तौर पर शरीर कमजोर होने लगता है तो इन चीजों का प्रभाव होने लग जाता है। उस दौरान किसी तरह के दर्द, हड्डियों में चोट इत्यादि लगने पर हम चिकित्सक से परामर्श करते हैं। यदि हम जवानी में ही सेहत का ध्यान रखें तो हमारी हड्डियों की मजबूती पहले सही बनी रहेगी और हमें उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों की कमजोरी, जोड़ों के दर्द या बार-बार फ्रैक्चर इत्यादि समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।

    हड्डियों में संक्रमण क्यों होता है, कैसे बचें?

    डा. विपिन शर्मा के मुताबिक जब हड्डियों में किसी भी तरह की चोट लगती है तो हड्डियों में संक्रमण का खतरा रहता है। एक बार हड्डियों में संक्रमण फैल जाता है तो उसे निकालना मुश्किल होता है। इसके लिए बार-बार सर्जरी करनी पड़ती है। बच्चों में बार-बार जुकाम या शरीर में अन्य तरह के संक्रमण के कारण भी यह खून के रास्ते हड्डियों में चला जाता है। शरीर में किसी भी तरह का संक्रमण है तो वह हड्डियों में चला जाता है।

    सड़क हादसे के दौरान हड्डियों में फ्रैक्चर या गंभीर चोट में मिट्टी और धूल के कण चले जाते हैं तो उससे भी संक्रमण फैल जाता है। कुछ लोगों के शरीर में कुदरती तौर पर रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है या किसी को शुगर (डायबिटीज) है, एचआइवी ग्रसित हैं तो भी हड्डियों में संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।

    हड्डियां कमजोर न हों इसके लिए क्या उपाय करें?

    इसके लिए पहली शर्त है नशों का त्याग। युवाओं को इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। अच्छा बुढ़ापा तभी होगा जब जवानी अच्छी होगी। काफी व चाय का सेवन कम करें। हड्डियों की मजबूती के लिए कोई न कोई व्यायाम करें। कोई दौड़ना चाहता है तो दौड़े, कोई अन्य व्यायाम करना चाहता है तो करे। जितना हम शरीर को हरकत में रखेंगे उतना ही हड्डियां मजबूत होंगी।

    हड्डी रोगों से बचाव के लिए क्या आहार लें?

    संतुलित आहार लें। भोजन में प्रोटीन का होना बहुत जरूरी है। कार्बोहाइड्रेट्स कम हों। फैट कम होने चाहिए। प्रोटीन ही शरीर को बनाते हैं। जो शाकाहारी हैं वे टोफू पनीर, सोयाबीन और दूध से प्रोटीन ले सकते हैं। दूध और दही में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होते हैं। जो लोग मांसाहारी हैं वे अडों से प्रोटीन ले सकते हैं।

    कैसे चलता है हड्डियों के कैंसर या हड्डी रोग का पता?

    हड्डियों से संबंधित कोई भी रोग या हड्डियों के कैंसर का पहला लक्षण दर्द है। दर्द ऐसा कि बर्दाश्त से बाहर हो। इससे हमारे मन में शंका पैदा होती है कि कोई ऐसी बीमारी है जो सामान्य नहीं है। सामान्य दर्द के मामले तो रोज ओपीडी में आते हैं, लेकिन जब दर्द बर्दाश्त से बाहर हो तो दर्द कहां है, कितना है, कब होता है तो यह चीजें विशेषज्ञों को भी यह सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि संबंधित रोगी को कोई गंभीर बीमारी है और इसकी गहनता से जांच की जानी चाहिए।

    क्या घुटना बदलना ही एकमात्र उपाय है?

    घुटनों में दर्द या यूं कहें बीमारी की शुरुआत में घुटना बदलने की जरूरत नहीं होती है। इस संबंध में लोगों को जागरूक होना आवश्यक है। बीमारी के प्रथम व दूसरे चरण में घुटना बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। इसी स्थिति में भी अगर रोगी परहेज या करे तो बीमारी से उभर सकता है। हां, अगर बीमारी चौथे चरण में है तो रोगी को घुटने का आपरेशन करवा लेना चाहिए।

    कोई ऐसा टेस्ट जिससे हड्डी रोगों के बारे में पता चल सके?

    हालांकि बहुत सी ऐसी बीमारियां है जिनमें हड्डियां कमजोर होती हैं, लेकिन जब भी आप रूटीन जांच करवाएं तो सीरम विटामिन डी टेस्ट भी करवा लें। विटामिन डी के स्तर का अगर पता लग जाए और यह कम है तो आप इंजेक्शन लगवा सकते हैं। दवा खा सकते हैं।

    मौसम का भी हड्डी रोगों पर प्रभाव पड़ता है?

    सर्दियों में ठंड के कारण मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं तो उस वजह से भी कई बार दर्द शुरू हो जाता है। कई ऐसे लोग हैं जो पहले से कुछ बीमारियों से पीड़ित होते हैं जैसे गठिया का दर्द सर्दियों में बढ़ जाता है। कई बार स्वस्थ व्यक्ति को भी सर्दियों में दिक्कत हो जाती है। इससे बचाव के लिए सर्दियों में धूप में जरूर बैठें। सुबह की धूप का आनंद अवश्य लें।

    महिलाएं स्टूल या पटड़ी पर बैठकर करें घर के काम

    घुटनों के दर्द की शिकार पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा पीड़ित पाई जाती हैं। महिलाएं खेत का काम भी करती हैं। घर का काम भी करती हैं। पशु भी संभालती हैं। उन्हें बार-बार जमीन पर बैठना पड़ता है, उठना पड़ता है व चलना पड़ता है। इस कारण महिलाएं हड्डी रोगों की चपेट में ज्यादा आती हैं। अगर महिलाएं समय रहते ओपीडी में आती हैं तो उन्हें बचाव के उपाय बताए जाते हैं। खान-पान का ध्यान रखने के बारे में बताया जाता है।

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    ऐसे काम न करने की सलाह दी जाती है जिससे जोड़ों पर ज्यादा भार पड़ता है। खेत में काम करने या गाय-भैंस का दूध निकालने के दौरान महिलाएं स्टूल रखकर बैठ सकती हैं। अगर घुटनों के दर्द की शिकार महिलाएं देरी से अस्पताल पहुंचती हैं तब तक हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में दवाओं या फिजियोथैरेपी से उपचार संभव नहीं होता है तो आपरेशन या यूं कहें घुटना बदलना ही एकमात्र उपाय होता है।

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