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    रिटायरमेंट के बाद भी बेहतर जीवन बिता रही है मधुआशा, माता-पिता ने किया प्रेरित, आज लोगों के लिए बनी मिसाल

    हिमाचल के बिलासपुर की मधुआशा रिटायरमेंट के बाद भी बेहतर जीवन जी रही हैं। उनकी सफलता के पीछे माता-पिता का प्रेरणादायी समर्थन है। उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपने बच्चों को भी उच्च शिक्षा दिलाई। इतना ही नहीं मधुआशा के भाई वकील हैं और उनकी बहन जेबीटी टीचर और एक दूसरी बहन भी वकील हैं। आज मधुआशा कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। जानिए उनकी कहानी।

    By Rajneesh Kumar Edited By: Suprabha Saxena Updated: Thu, 06 Mar 2025 01:55 PM (IST)
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    रिटायर होने के बाद भी बेहतर जीवन गुजार रही हैं मधुआशा

    रजनीश महाजन, बिलासपुर। वो कहते हैं न अगर मन में ठान लिया है तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। कुछ इसी तरह कि कहानी है मधुआशा की जो आज रिटायर होने के बाद भी बेहतर जीवन जी रही हैं। उनके माता-पिता ने हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। आज वह कई लोगों के लिए मिसाल कायम कर रही हैं। आइए सुनते हैं मधुआशा की कहानी।

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    मधुआशा कहती हैं कि गांव में स्कूल की दहलीज लांघना इतना आसान नहीं था। मगर मां के हौंसले ने इतना काबिल बनाया कि आज अधिकारी के रूप में सेवानिवृत होने के बाद बेहतर जीवन गुजार रहीं हूं।

    पिता जी शिक्षा विभाग में थे तो माता जी ने मिडल क्लास के पास ससुराल में गृहिणी के रूप में जीवन व्यतीत किया। मगर पढ़ाई का महत्व समझने के कारण आज मधुआशा एक अधिकारी के रूप में सेवानिवृत हुई हैं। लढयाणी में पिता दीनानाथ और माता कुसुमलता के घर में पहली संतान के रूप में जन्मी मधुआशा को उनकी मां ने शुरू से ही शिक्षा देना शुरू कर दिया था।

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    भाई वकील तो बहन टीजीटी हैं

    इसके बाद उसकी दो बहनें और एक भाई है। बहनों को शिक्षा से वंचित नहीं रखा। परिणाम स्वरूप उनकी बहन एक टीजीटी तथा दूसरी अधिवक्ता है जबकि भाई भी अधिवक्ता है। उस दौरान स्कूल की दहलीज लांघना मुश्किल था तो उस दौर में दूसरे राज्य में जाकर ट्रेनिंग करना टेढ़ी खीर था।

    विशेष रूप से जब स्कूल में साथ पढ़ने वाली लड़कियां पांचवीं,आठवीं या फिर दसवीं के बाद घर की चारदीवारी में कैद हो जाती थी। ऐसे में मंसूरी में जाकर जेबीटी करना मुश्किल था, लेकिन माता-पिता ने उन्हें जेबीटी के लिए मंसूरी भेजा। इसके बाद 1984 में मात्र 936 रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर स्कूल में बतौर जेबीटी प्रवेश किया।

    40 साल के बाद हुई रिटायर

    करीब 40 वर्ष सेवाएं देने के बाद अक्टूबर 2024 में बतौर प्रारंभिक खंड शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत हुई। उस समय हायर सेकेंडरी होती थी। कॉलेज में माहौल अच्छा न होने के कारण पिता जी ने कॉलेज जाने से मना कर दिया और ट्रेनिंग करवाई।

    अगर माता जी पढ़ी लिखी न होती तो शायद आज परिस्थितियां कुछ और होती। ससुराल में भी पढ़ाई को महत्व दिया जाता। अब जमाना बदल गया है। पहले जहां बहुत कम लड़कियां स्कूल की दहलीज लांघ पाती थी वहीं अब बेटियां हर क्षेत्र में आगे हैं।

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