कड़ाके की ठंड से घट गया गाय-भैंसों का दूध, तलाबों में ऑक्सीजन की कमी से मछलियों के मरने तक की नौबत
कड़ाके की ठंड से गोहाना और सोनीपत क्षेत्र में मछली पालन और पशुपालन प्रभावित हुआ है। गिरते तापमान के कारण तालाबों में मछलियों के मरने की आशंका बढ़ गई ह ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, गोहाना। कड़ाके की ठंड का असर मछली पालन और पशुपालन पर दिखाई देने लगा है। लगातार गिरते तापमान के कारण जहां तालाबों में मछलियों के मरने की आशंका बढ़ गई है, वहीं पशुपालकों को भी दूध उत्पादन में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। जिले में दिन का तापमान गिरकर करीब 15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में परेशानी और बढ़ गई है।
उपमंडल के गांवों में 200 से अधिक तालाबों में मछली पालन किया जाता है। अधिक ठंड में तापमान गिरने से तालाबों के पानी में आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। पिछले दो-तीन दिनों से दिन में भी कोहरा छाया रहता है जिससे तालाबों का पानी अधिक ठंंडा बना रहता है। इससे मछलियों का दम घुटने लगता है और उनके मरने की संभावना बढ़ जाती है।
कई तालाबों में सुबह के समय मछलियां पानी की सतह पर आकर सांस लेती दिखाई दे रही हैं, जो आक्सीजन की कमी का संकेत है। मत्स्य पालकों को तालाबों में मछलियों को बचाने के लिए काफी मेहनत करने के साथ अतिरिक्त खर्च भी उठाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ कड़ाके की ठंड का असर पशुपालन पर भी देखने को मिल रहा है।
अधिक ठंड के कारण मवेशियों का चलना-फिरना कम हो गया है। ठंड से बचाव के चलते पशुपालक मवेशियों को तालाबों या खुले स्थानों पर नहलाने से भी बच रहे हैं। अधिकतर समय मवेशी बाड़ों में ही बंधे रहते हैं, जिससे उनके पाचन तंत्र पर असर पड़ रहा है और दूध उत्पादन पर असर पड़ रहा है। पशुपालक विनोद, सुरेश, रोहतास, विकास ने कहा कि जो भैंसें कुछ दिन पहले तक रोजाना 14 लीटर तक दूध दे रही थी वह अब घटकर 11 लीटर पर आ गया है।
चार डिग्री तक गिरा दिन का तापमान
दो दिनों में दिन का तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक गिर गया है। 28 दिसंबर को गोहाना में दिन का तापमान 19.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था तो 29 दिसंबर को चार डिग्री से अधिक लुढक़ कर 15.1 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया। रात का तापमान 7.7 डिग्री सेल्सियस रहा।
दिनभर कोहरा छाया रहने से धूप बहुत कम निकल रही है। इससे दिन-रात के तापमान में अंतर घटकर लगभग आठ डिग्री सेल्सियस तक रह गया है। इससे ठिठुरन का सामना करना पड़ रहा है। यह मौसम मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर खतरनाक माना जाता है।
इस मौसम में पशुपालक सावधानी बरतते हुए उचित प्रबंधन पर ध्यान दें। मवेशियों को संतुलित आहार देना बेहद जरूरी है। पशुओं को पर्याप्त मात्रा में सूखा चारा, हरा चारा और मिनरल मिक्सचर दें। ठंड से बचाव के लिए बाड़ों में हवा से बचाने की व्यवस्था और सूखे बिछावन का प्रबंध करें। पशुओं को ताजा पानी पिलाएं। अगर दिन में धूप निकलती है तो ताजे ही पानी से नहलाएं। दिन के समय पशुओं को थोड़ा बहुत जरूर टहला कर लाएं।
- डाॅ. राममेहर, पशु चिकित्सक
तालाबों में ऑक्सीजन बनाए रखने के लिए एरेटर या बबलर का प्रयोग करें। समय-समय पर पानी की गुणवत्ता जांचें और अमोनिया-नाइट्रोजन की मात्रा सामान्य न मिलने पर पानी बदलें। तालाब में नहरी या ताजा पानी भरना उपयोगी रहेगा। अधिक ठंड में मछलियों का मेटाबाॅलिज्म धीमा हो जाता है, इसलिए हल्का, कम मात्रा में और आसानी से पचने वाला भोजन दें। फंगल इंफेक्शन से बचाने के लिए चूने और नमक का प्रयोग करें। तालाब के पास अगर पेड़ हैं तो उनकी टहनियां काट दें।
- राजेश हुड्डा, उपमंडल मत्स्य अधिकारी

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