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    दादा ने कहा था-कोई भी काम करो, हार नहीं होनी चाहिए; प्रीति ने नाप लिया आसमान

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Mon, 12 Mar 2018 08:59 PM (IST)

    सेना की ऑफिसर ट्रेनिंंग एकेडेमी की पासिंग आउट परेड में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर अवार्ड प्राप्त करने वाली प्रीति चौधरी ने दादा के मंत्र की बदौलत अासमान छुआ है।

    दादा ने कहा था-कोई भी काम करो, हार नहीं होनी चाहिए; प्रीति ने नाप लिया आसमान

    पानीपत, [विजय गाहल्याण]। सेना की चेन्नई में हुए पासिंग आउट परेड में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर अवार्ड प्राप्त करने वाली पानीपत की बेटी प्रीति चौधरी के जीवन का मूल मंत्र है कि कभी हार नहीं हो। यह मंत्र उसे अपने दादा से मिला था। दादा ने कहा था- कुछ भी काम करो, हार नहीं होनी चाहिए। हालात कुछ भी हो उससे हार नहीं मानो। प्रीति ने इसे आत्‍मसात किया आैर आज आसमान छू लिया है।

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    प्रीति ने ऑफिसर ट्रेनिंंग एकेडेमी में पहला स्‍थान प्राप्‍त कर हरियाणा और पानीपत का सिर ऊंचा किया है। प्रीति ने बचपान में दादा से मिली प्रेरणा को हमेशा याद रखा। उसे हार और नाकामयाबी से सख्‍त चिढ़ थी। कोई भी परिस्थिति हो वह कामयाबी मिले बिना दम नहीं लेती थी। उसने जो भी लक्ष्य तय किया उसे हर हाल में हासिल किया।

    पासिंग आउट परेड में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर अवार्ड प्राप्त करतीं प्रीति चौधरी।

    पानीपत के बिंझौल गांव की प्रीति चौधरी को बधाई देनेे वालों का तांता लगा हुआ है। पूरा परिवार खुशी से झूम रहा है। मां सुनीता देवी का कहना है कि बेटी प्रीति ने कड़ा संघर्ष किया है। इसकी नतीजा भी सुखद है। कई साल से बेटी के साथ घूमने का प्लान बना रहे थे, लेकिन व्यस्तता के कारण बात नहीं बनी। अब उसे एक सप्ताह की छुट्टी मिली है। इसलिए घूमने के लिए केरल गए हैं।

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    हारना है स्‍वीकार

    परिजनों का कहना है कि प्रीति को कभी हारना पसंद नहीं है। चाहे वह खेल का मैदान हो या फिर एनसीसी की परेड। जब भी वह पिछड़ती तो मायूस होने की बजाय और ज्यादा मेहनत करती। इसी खूबी ने विजेता बना दिया। जीत का यह मंत्र प्रीति ने अपने दादा धर्म सिंह ढौंचक से सीखा।

    चेन्‍नई में पासिंग आउट परेड के बाद प्रीति चौधरी।

    प्रीति ने खास बातचीत में कहा कि वह जब भी दादा जी से मिलने गांव जाती, वह कहते थे कि बेटा कभी हारना नहीं। ऐसा काम करके दिखाना कि उसी गर्व से छाती चौड़ी हो जाए। कोई भी काम करो, हार नहीं होनी चाहिए। कुछ शिक्षा, खेल व अन्य जिस भे क्षेत्र में जाओ मेहनत और लगन से काम करना। अनमने ढंग से किया काम सफलता नहीं दिला सकता। अब उसने अपना व परिवार का सपना पूरा कर लिया, लेकिन मलाल है कि दादा इस दुनिया में नहीं हैं। दादा जीवित होते से उन्‍हें आज बेहद गर्व होता। ताउम्र वह दादा की बताई बातें याद रखेंगी।

    लाडली के लौटने का है इंतजार

    प्रीति के पिता इंद्र के छह भाई हैं। इनमें से कई बिंझौल गांव में रहते हैं। उनके ताऊ रणधीर सिंह का कहना है कि प्रीति बेटी ने गांव, जिले का ही नहीं बल्कि प्रदेश का नाम रोशन किया है। उन्हें बेटी पर नाज है। वे गांव में प्रीति के लौटने का इंतजार कर रहे हैं। बेटी आएगी तो सम्मानित किया जाएगा।

    परिवार के साथ प्रीति चौधरी।

    पिता की तरह अफसर बनना चाहती थी

    बिंझौल गांव की प्रीति चौधरी ने बचपन से सपना देखा था कि पिता कैप्टन इंद्र सिंह की तरह सेना में जाकर देश की सेवा करेगी। इसके लिए उसने पढ़ाई के दौरान एनसीसी में भाग लिया और 2016 में दिल्ली में राजपथ पर परेड में बेस्ट कैडेट चुनी गई। यहीं से उसके सपने की उड़ान को पंखे लगे और उनका सैन्य अधिकारी के तौर पर चयन हुआ। अब प्रीति भी पिता की तरह अफसर बन गई है। 

    30 किलोमीटर दौड़ बनी थी बाधा, फुटबॉल भी खेलना सीखा

    प्रीति ने बताया कि उसके बैच में 40 लड़की और 209 लड़के थे। 30 किलोमीटर की दौड़ में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं था। इसके लिए कड़ा अभ्यास किया। उसने फुटबॉल भी कभी नहीं खेली। सुबह 9:30 से रात 10:30 बजे तक ट्रेनिंग के दौरान उसने फुटबॉल खेलना भी सीखा। वह शरीर को मजबूत बनाने के लिए पुशअप व दौड़ ज्यादा लगाती थी। वह खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम व अन्य शैक्षणिक गतिविधि में खूब दिलचस्पी लेती थी। इन्हीं खूबियों ने उसे सफल बना दिया है।

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    लड़कियां मेहनत करें तो लक्ष्य कठिन नहीं है

    प्रीति का मानना है कि हरियाणा की छोरियां शरीर से ताकतवर हैं। वे खेल के साथ-साथ शिक्षा में भी ध्यान दें तो सेना में आसानी से जा सकती हैं। अब हरियाणा बदल रहा है। परिजन भी बेटियों को हर शिक्षा व खेल के क्षेत्र में भेज रहे हैं। ये भविष्य के लिए अच्छा है। लड़कियां मेहनत करें तो उनके लिए किसी भी लक्ष्य को पाना कठिन नहीं है।

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    बेटी ने जो कहा कर दिखाया: सुनीता

    प्रीति की मां सुनीता देवी एक एनजीओ की संचालिका है। सुनीता का कहना है कि छोटी बेटी प्रीति को सेना में जाने का जुनून था। इसके लिए उसने कड़ा अभ्यास किया। उन्‍हें पूरा विश्वास था कि बेटी सफल होगा। अब प्रीति ने वह कर दिखाया।