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Organic Farming: आर्गेंनिक खेती की मिसाल बने जसबीर सिंह, इस तकनीक का इस्तेमाल कर हुए मालामाल

अंबाला के फोक्सा गांव में किसान जसबीर सिंह आर्गेनिक खेती करते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ी ही साथ ही उनकी फसल खरीदने के लिए पहले ही लोग आर्डर दे जाते हैं। फसल आते ही लोग खेत से ही खरीदकर ले जाते हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 02 Oct 2021 08:05 AM (IST)Updated: Sat, 02 Oct 2021 08:29 AM (IST)
अंबाला के फोक्सा गांव में किसान जसबीर सिंह करते हैं आर्गेनिक खेती।

बराड़ा (अंबाला), संवाद सहयोगी। जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती दिखी, तो यमुनानगर के गांव मंगोली के किसान जसबीर सिंह ने अंबाला के फोक्सा गांव स्थित अपनी दस एकड़ जमीन में आर्गेनिक खेती शुरू कर दी। इसका फायदा यह हुआ कि जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ी साथ ही उनकी फसल खरीदने के लिए पहले ही लोग आर्डर दे जाते हैं। फसल आते ही लोग खेत से ही खरीदकर ले जाते हैं। मल्टीक्रोप खेती करते हैं और इससे अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं। खास है कि जैविक खाद का इस्तेमाल करने से सिंचाई के लिए पानी की खपत कम हो गई है, जबकि स्वजनों की दवाइयां तक छूट चुकी हैं। उनका कहना है कि एक न एक दिन तो लोगों को आर्गेनिक खेती की ओर आना ही होगा।

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रासायनिक खाद ने बर्बाद कर दी थी जमीन

जसबीर बताते हैं कि जब वे खेत में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते थे, तो उस दौरान जमीन की उर्वरा शक्ति काफी कम हो गई थी। यदि इसी तरह से रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते रहते, तो पता नहीं जमीन का क्या होता। इसके साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते रहे। छह साल पहले रासायनिक खाद छाेड़कर जैविक खाद का प्रयोग शुरू करने की ठान ली। दस एकड़ में धान, गेहूं, गन्ना, दलहन आदि फसले ले रहे हैं। जैविक खेती के लिए विशेषज्ञों से जानकारी जुटानी शुरू कर दी।

घर पर ही तैयार करते हैं जैविक खाद

जसबीर ने बताया कि जैविक खाद के लिए वे कभी बाहर नहीं जाते, जबकि घर पर ही इसे तैयार करते हैं। घर में छह देसी गाय रखी हैं। उन्होंने बताया कि इन गायों के गोबर और मूत्र से जैविक खाद तैयार करते हैं, जबकि दही, दूध औ देसी घी का इस्तेमाल भी करते हैं। इसमें हालांकि सात से दस दिनों का समय लग जाता है। इसी का प्रयोग अपने खेतों में करते हैं। इसके साथ ही कीटनाशक बनाने के लिए वे नीम की पत्तियों व इसके फल का प्रयोग करते हैं। यह काफी कारगर है और लागत भी बहुत ही कम है। धीरे-धीरे इसका परिणाम भी उनको देखने को मिला। उन्हाेंने जैविक खेती के लिए मध्य प्रदेश के विशेषज्ञ ताराचंद से जींद में पांच दिन की ट्रेनिंग भी ली थी।

छूट गई परिवार की दवाइयां

जसबीर ने बताया कि जब से उन्होंने जैविक खाद से खेती शुरू की, तो फसल का इस्तेमाल घर पर भी करते हैं। घर पर परिवार के सदस्य कभी न कभी किसी न किसी रूप में दवाओं का इस्तेमाल करते थे। जैसे-जैसे जैविक खाद से उगी फसल का इस्तेमाल शुरु किया, तो दवाइयों से भी छुटकारा मिलता गया। उन्होंने कहा कि रासायनिक खादों का इस्तेमाल खेती में ज्यादा करते हैं, तो इसका असर जमीन और फसलों पर तो पड़ेगा, लोगों की सेहत पर भी यह असर दिखेगा।


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