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    हरियाणा और पंजाब के बीच बहुत पुराना है SYL विवाद

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Thu, 10 Nov 2016 10:14 AM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा के बीच एसवाइएल नहर विवाद बहुत पुराना है। इस पर दोनों राज्‍याें के बीच अक्‍सर सियासी विवाद खड़ा हाेता रहा है।

    जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा आैर पंजाब के बीच सतुलज यमुना संपर्क नहर का विवाद बहुत पुराना है। दोनों राज्यों के बीच इस मुद्दे पर अक्सर तलवारें खिंचती रही हैं। दोनों राज्याें के बीच हालात इस हद तक पहुंच गए कि उनकी विधानसभाआें में एक-दूसरे केखिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर चुके हैं। पंजाब ने तो नहर के लिए अधिग्रहीत की गई किसानों की जमीनें भी वापस करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। इसके बाद लोगों ने नहर को भरने तक शुरू कर दिया।

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    हरियाणा बना चुका अपने हिस्से की 91 किमी नहर

    पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत 1 नवंबर 1966 को हरियाणा अलग राज्य बना, किंतु उत्तराधिकारी राज्यों (पंजाब व हरियाणा) के बीच पानी का बंटवारा नहीं हुआ। विवाद खत्म करने के लिए केंद्र ने अधिसूचना जारी कर हरियाणा को 3.5 एमएएफ पानी आवंटित कर दिया। इसी पानी को लाने के लिए 212 किमी लंबी एसवाइएल नहर बनाने का निर्णय हुआ था। हरियाणा ने अपने हिस्से की 91 किमी नहर का निर्माण वर्षों पूर्व पूरा कर दिया था, लेकिन पंजाब ने अब तक विवाद चला आ रहा है।

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    प्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ

    19 सितंबर 1960

    भारत व पाकिस्तान के बीच विभाजन पूर्व रावी व ब्यास के अतिरिक्त पानी को १९५५ के अनुबंध द्वारा आवंटित किया गया। पंजाब को 7.20 एमएएफ (पेप्सू के लिए 1.30 एमएएफ सहित), राजस्थान को 8.00 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ पानी आवंटित किया गया था।

    24 मार्च 1976 :
    केंद्र ने अधिसूचना जारी कर पहली बार हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ पानी की मात्रा तय की।

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    13 दिसंबर 1981:

    नया अनुबंध हुआ। पंजाब को 4.22, हरियाणा को 3.50, राजस्थान को 8.60, दिल्ली को 0.20 एमएएफ व जम्मू-कश्मीर के लिए 0.65 एमएएफ पानी की मात्रा तय की गई।

    8 अप्रैल 1982 :

    इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई के काम का उद्घघाटन किया। विरोध के कारण पंजाब के हालात बिगड़ गए।

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    24 जुलाई 1985 :
    राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी।

    वर्ष 1996 :
    समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

    15 जनवरी 2002 :
    सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।

    4 जून 2004 :
    सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।

    2004
    पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए। संघीय ढांचे की अवधारण पर चोट पहुंचने का डर देखकर राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 वर्ष ठंडे बस्ते में रहा।

    20 अक्टूबर 2015 :
    हरियाणा की मनोहर लाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।

    26 फरवरी 2016 :
    इस अनुरोध पर गठित पांच जजों की पीठ ने पहली सुनवाई की। सभी पक्षों को बुलाया।

    8 मार्च 2016 :
    8 मार्च को दूसरी सुनवाई। लगातार सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मई 2016 में फैसला सुरक्षित रख लिया था। पंजाब सरकार बिना कानून के डर के जमीन लौटाने का एलान कर चुकी है। अब यह नया मामला भी सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है।⁠⁠⁠⁠