राजनीति के नए चूल्हे में आग फूंक रहे ओमप्रकाश चौटाला, नई खिचड़ी पकाने में जुटे
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलाे नेता ओमप्रकाश चौटाला आजकल नया सियासी चूल्हे फूंकने में लगे हैं। चौटाला राज्य में नई सियासी खिचडी पकाने की कोशिश में हैं।
चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में लॉकडाउन और शराब घोटाले की लपटों के बीच कुछ अलग ही तरह की राजनीतिक खिचड़ी पक रही है। इस खिचड़ी को पकाने वाले इनेलो प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला हैं, जो कोरोना महामारी की वजह से तिहाड़ जेल से फरलो पर बाहर आए हैं। चौटाला आजकल अपने सिरसा स्थित तेजाखेड़ा फार्म हाउस पर हैं और वहीं से राजनीति के नए चूल्हे में आग फूंंक रहे हैं। चौटाला की निगाह सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट पर है, जो हाल ही में कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा के देहावसान की वजह से खाली हुई है। बरौदा हलका कभी इनेलो का मजबूत गढ़ हुआ करता था।
लॉकडाउन और शराब घोटाले की लपटों के बीच पक रही अलग खिचड़ी
देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के 83 वर्षीय बेटे ओमप्रकाश चौटाला अपने फार्म हाउस पर बैठे-बैठे विभिन्न हिस्सों में बंटे जाट और दलित वर्ग को एकजुट करने की उधेड़बुन में लगे हैं। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के दौरान न केवल जाट बल्कि दलित मतदाताओं में भी बंटवारा हुआ था। इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला जननायक जनता पार्टी बनाकर दस सीटें जीतने में कामयाब हो गए और भाजपा के साथ सरकार में साझीदार बन गए, जबकि उनके बेटे अभय सिंह चौटाला तमाम कोशिशों के बावजूद अपनी ही सीट जीत पाए। इसके बावजूद अभय चौटाला ने अकेला होते हुए भी विधानसभा के भीतर और बाहर अपनी आवाज उठाई।
जाट और दलित गठजोड़ को मजबूती देने की कोशिश में जुटे इनेलो प्रमुख
कांग्रेस की अगर बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी पिछले चुनाव में अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ का अहसास कराते हुए कई जाट और दलित विधायकों को जिताने में सफलता हासिल की थी। अब जबकि सरकार का गठन हुए सात माह बीत गए और प्रदेश को कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन का सामना करना पड़ा तो नए राजनीतिक हालात बनते जा रहे हैं।
विपक्ष के पास लॉकडाउन में अवैध तरीके से बिकी अवैध शराब का बड़ा मुद्दा बैठे-बिठाए हाथ लग गया है। हालांकि अब हालात सामान्य होने की ओर हैं, लेकिन अन्य कामकाज के साथ-साथ सभी दल बरौदा विधानसभा उपचुनाव की तैयारी में भी जुट गए हैं। यहां अक्टूबर या नवंबर में उपचुनाव होने की संभावना है।
तंवर को अपनी पार्टी में शामिल कराने के लिए नफे सिंह राठी को दूत बनाकर भेजा
भाजपा, जजपा और कांग्रेस की तैयारियों से ज्यादा निगाह इनेलो की राजनीतिक गतिविधियों पर टिकी हुई है। सूत्रों के अनुसार कुछ दिन पहले ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नफे सिंह राठी को हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डा. अशोक तंवर से मिलने के लिए उनके दिल्ली आवास पर भेजा। राठी ने तंवर को चौटाला और अभय का इनेलो में शामिल होने का संदेश दिया, जिसके बाद तंवर ने इसका सम्मान करते हुए फिलहाल यह कह दिया कि एकदम किसी दल में शामिल होने के बजाय पहले वह क्षेत्रीय दल का गठन करेंगे। इसके बाद की परिस्थितियां क्या होंगी, यह हालात पर निर्भर करेगा।
चौटाला की उम्र भले ही ज्यादा मगर जज्बे में कोई कमी नहीं
चौटाला की उम्र भले ही ज्यादा हो गई, लेकिन जज्बे में कमी नहीं आई है। उनकी कोशिश है कि इनेलो के पुराने दिन फिर से वापस लाए जाएं। इसके लिए मेहनत अभय सिंह चौटाला कर रहे हैं और रणनीति ओमप्रकाश चौटाला बना रहे हैं। चौटाला जब भी सत्ता में आए, तभी उन्होंने जाटों के साथ-साथ दूसरे खासकर पिछड़े, दलित और कमेरे वर्ग को सरकार में भागीदार बनाकर उनका सम्मान बढ़ाया।
अभी भी उनकी यही रणनीति है। जाट मतदाता चूंकि कांग्रेस और जजपा में काफी हद तक बंट चुका है, इसलिए चौटाला चाहते हैं कि इस बंटे हुए जाट मतदाता को अपनेपन का भरोसा दिलाया जाए। इसके लिए चौटाला हर रोज फोन से खास और काम कार्यकर्ताओं से निरंतर बात करते हैं। साथ ही दलित वर्ग को भी सम्मान देने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है।
अभय चौटाला ने भी किया अपने राजनीतिक स्टाइल में बदलाव
अभय सिंह चौटाला की अगर बात करें तो उनके राजनीतिक स्टाइल में काफी अंतर आया है। वह अब न केवल सधी हुई बात करते हैं, बल्कि विधानसभा में अकेले ही गठबंधन की सरकार के साथ-साथ कभी-कभी कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। चौटाला को अहसास है कि 1977 से 2005 तक बरौदा इनेलो का गढ़ रहा है। इसके बाद इस गढ़ में हुड्डा ने सेंधमारी की। अब चौटाला अपनी रणनीति और अभय अपनी मजबूत विपक्षी नेता की छवि के आधार पर कोई नया करिश्मा करने की तैयारी में हैं।
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