कांग्रेस विधायक मामन खान को हाईकोर्ट से झटका, नूंह हिंसा मामले में अलग ट्रायल को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधायक मामन खान की याचिका खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने नूंह हिंसा मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि सुनवाई को अलग करने से अभियोजन पक्ष का काम कठिन हो गया है लेकिन खान को इससे कोई पक्षपात नहीं झेलना पड़ेगा।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधायक मामन खान द्वारा ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। यह मामला जुलाई 2023 के नूंह हिंसा से जुड़ा है, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ सुनवाई को अन्य आरोपितों से अलग कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि यह कहना गलत नहीं होगा कि सुनवाई को अलग करने से अभियोजन पक्ष का काम कठिन हो गया है और खान को इस आधार पर कोई पक्षपात नहीं झेलना पड़ेगा।
मामन खान को हाईकोर्ट ने दिया झटका
जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु की बेंच ने कहा याचिकाकर्ता ने यह दावा नहीं किया है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया गलत हैं। इस परिस्थिति में सुनवाई को अलग करना याचिकाकर्ता के लिए हानिकारक नहीं होगा। इसके अलावा ट्रायल कोर्ट को इस प्रकार की कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है और यह प्रक्रिया कानून के तहत उचित है।
यह भी पढ़ें- हरियाणा में बनेंगे नए जिले और तहसील, गठन की प्रक्रिया शुरू; उपायुक्तों से मंगाई जाएगी रिपोर्ट
हाईकोर्ट ने मामन खान की आरोपों को खारिज करने की याचिका को भी खारिज करते हुए कहा प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि एक विधायक होते हुए भी याचिकाकर्ता ने कानून तोड़ा है। आम जनता का विश्वास बनाए रखने और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि चुने हुए प्रतिनिधियों को न्याय के कटघरे में लाने में कोई बुराई नहीं है।
मामन खान ने नीचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
मामन खान जो नूंह जिले के फिरोजपुर झिरका से विधायक हैं, ने नूंह के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा 28 अगस्त 2024 को दिए गए आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में अभियोजन पक्ष को उनके खिलाफ अलग चार्जशीट दाखिल करने और सुनवाई को अन्य आरोपितों से अलग करने का निर्देश दिया गया था।
खान ने उनके खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को भी चुनौती दी थी। उनके वकील का तर्क था कि यह मामला सामूहिक दंगे और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से जुड़ा है, जिसमें उन्हें धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत फंसाया गया है।
वकील ने यह भी कहा कि जो कृत्य एक ही अपराध से संबंधित हैं, उन्हें एक साथ सुना जाना चाहिए और इस मामले में ट्रायल को अलग करना अवैध है। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि ट्रायल कोर्ट का फैसला सुनवाई को अलग करने का अधिकारपूर्ण और न्यायसंगत था। साथ ही मामले को शीघ्र निपटाने का निर्देश दिया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।