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    ढींगरा अायोग की रिपोर्ट : अफसर बन गए थे कठपुतली, जमकर हुई कानून की अनदेखी

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Wed, 07 Sep 2016 12:00 PM (IST)

    गुड़गांव के जमीन सौदों को लेकर जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग ने अफसरशाही पर गंभीर टिप्‍पणी की है। उन्‍होंने कहा कि अफसर उस समय सत्‍ताधारी दल और सरकार की कठपुतली बन गए थे।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। राबर्ट वाड्रा की कपनियों जमीन सौदे सहित ऐसे अन्य मामलाें की जांच करने वाले जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग की रिपोर्ट की खुलासा होने लगा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले में अफसर उस समय के सत्ताधारी दल व सरकार की कठपुतली बन गए थे।

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    सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि विवादित कंपनी को कामर्शियल लाइसेंस प्रदान करने, उसके नवीनीकरण और हस्तांतरण की प्रक्रिया में नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग के तत्कालीन निदेशक ने अपने विवेक से निर्णय नहीं लिया। निदेशक ने तत्कालीन सत्तारूढ़ दल और सरकार के निर्देश पर उसकी पसंद के अनुसार कठपुतली की तरह काम किया।

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    यह टिप्पणी जस्टिस एसएन ढींगरा ने अपनी 182 पेज की रिपोर्ट में कई बिंदुओं व तथ्यों का खुलासा किया है। आयोग का गठन विभिन्न कंपनियों को दिए गए कामर्शियल लाइसेंस की जांच के लिए गठन किया गया था। आयोग ने 31 अगस्त को राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट दी थी। जस्टिस ढींगरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गांव शिकोहपुर में खसरा नंबर-730 का 2008 का आशय-पत्र एवं वाणिज्य कॉलोनी का लाइसेंस नंबर-203 प्रदान करने में खामियां बरती गई हैं।

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    जस्टिस ढींगरा ने कैग की रिपोर्ट पर मुहर लगाते हुए यहां तक कहा कि कोई संपर्क सड़क नहीं होने के बावजूद कंपनी को लाइसेंस दे दिया गया, जबकि ऐसे किसी भी स्थान तक पहुंचने के लिए एक आंतरिक सड़क का होना अनिवार्य है। नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग ने कंपनी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया कि दूसरी कॉलोनी के माध्यम से रास्ता ले लिया जाएगा।

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    जस्टिस ढींगरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी की कोई पिछली तकनीकी या वित्तीय क्षमता नहीं थी। फिर भी कंपनी को लाइसेंस दे दिया गया। कंपनी की चुकता पूंजी मात्र एक लाख रुपये थी। पीएजी (लेखा परीक्षा हरियाणा) ने अपने ड्रॉफ्ट पैरा दिनांक 7 जून, 2013 में इस बात का उल्लेख किया है कि एसवी हाउसिंग जैसे अन्य मामले में कॉलोनाइजर को अपनी चुकता पूंजी कम से कम 16 करोड़ रुपये तक बढ़ाने के निर्देश दिए गए थे।

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    जस्टिस ढींगरा की रिपोर्ट के अनुसार 'पहले आओ पहले पाओ' की नीति को लाइसेंस देने में लागू नहीं किया गया। आवेदन की तारीख 4 जनवरी 2008 मानकर कंपनी को वाणिज्यिक लाइसेंस के लिए गुडग़ांव के सेक्टर-83 की वरीयता सूची में गलत तरीके से सबसे ऊपर रखा गया।