ओम प्रकाश चौटाला ने जिंदगी में नहीं खाई कभी लाल मिर्च, खाने में लौकी की सब्जी और कढ़ी थी फेवरेट
Haryana Former CM Om Prakash Chautala Passes Away हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला हमारे बीच नहीं रहे। अपने राजनीतिक करियर में कई उपलब्धियां हासिल कीं। वह हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उन्होंने इस पद पर पांच बार कार्य किया है। ओम प्रकाश चौटाला हजारों लोगों के बीच भी अपने कार्यकर्ताओं का चेहरा और नाम नहीं भूलते थे।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। OP Chautala ओमप्रकाश चौटाला को राजनीति का बब्बर शेर कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। वे एक कुशल संगठनकर्ता थे। राजनीति को बहुत गहरे से समझते थे। उनकी याददाश्त बहुत ही गजब की थी।
गाड़ी में जाते हुए अपने चालक से पूछते थे कि कहां पहुंच गए। चालक उन्हें जगह का नाम बताता था। फिर चौटाला याद करते थे कि इस गांव में हमारा इस नाम का पुराना वर्कर रहता है। उसे फोन मिलाओ। फोन मिलाकर सुख-दुख की खबर लेते थे।
चेहरा नहीं भूलते थे चौटाला
चौटाला हजारों लोगों के बीच अपने कार्यकर्ता का चेहरा और नाम नहीं भूलते थे। मुख्यमंत्री रहते जब उन्होंने खुले दरबार लगाने की परंपरा शुरू की तो भीड़ में अपने कार्यकर्ता को पहचानकर उसको नाम से बुलाते थे। उस समय कार्यकर्ता का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था।
उन्होंने राजनीति में ऐसे-ऐसे लोगों को टिकट देकर विधायक, सांसद, मंत्री और राज्यसभा सदस्य बनाया, जो सपने में भी सोच नहीं सकते थे कि उनको राजनीति में ब्रेक मिलेगा। भागीराम दर्जी का काम करते थे। दरियाव साइकिलों के पेंचर लगाते थे। उनका कोई साथी चुनाव हार गया तो उसे फिर मौका देते थे।
120 ज्यादा देशों का भ्रमण किया
चौटाला यारों के यार थे। जुबान के धनी थे। उन्होंने 120 से ज्यादा देशों का भ्रमण किया। सादा भोजन खाते थे। दाल, सब्जी, रोटी, घिया, खिचड़ी और कढ़ी उन्हें बहुत पसंद थी। कभी जिंदगी में लाल मिर्च नहीं खाई। हमेशा उनके खाने में हरी मिर्च होती थी।
विदेश में भी अपने रसोइये मोहन को साथ लेकर जाते थे। मोहन उनके साथ करीब 60 देशों की यात्रा कर चुका है। उसे घर बनवाकर दिया। परिवार के बच्चों की शादियां करवाई। गरीब कार्यकर्ताओं को ढूंढ-ढूंढकर राजनीति में ऐसे-ऐसे पद दिए कि कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कांग्रेस और भाजपा समेत दूसरे अधिकतर दलों में करीब 70 प्रतिशत नेता ऐसे हैं, जो ताऊ देवीलाल और ओमप्रकाश चौटाला की राजनीति के विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहे हैं।
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सुबह सात बजे से ही शुरू कर देते थे कार्यक्रम
तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के न चाहते हुए उनका बार-बार मुख्यमंत्री बनना चौटाला को अनथक योद्धा बनाता है। उन्होंने अपनी पार्टी का विस्तार करने के लिए उत्तर प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में एंट्री की और चुनाव लड़ा।
चौटाला का हाजिर जवाबी में कोई मुकाबला नहीं था। वे समय के बहुत ही पाबंद थे। जब गांवों का दौरा करते थे तो सुबह सात बजे ही तैयार होकर कार्यक्रम शुरू कर देते थे।
एक बार 1999 में जींद जिले के अलेवा गांव में "सरकार आपके द्वार कार्यक्रम" के तहत लोगों की समस्या सुन रहे थे। एक बुजुर्ग ने अलेवा से नजदीकी गांव तक सड़क बनवाने की मांग रखी।
बुजुर्ग ने अपने लहजे में कहा कि चौधरी साहब या सड़क बणवादो तो लोग आपके गीत गावैगें और नहीं बणवाई तो लोग आपसे करड़े नाराज होंवैगे। उनकी यह बात सुनकर चौटाला ने लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता से कहा कि एक्सन साहब इस सड़क को जल्दी बनवाओ।
चौटाला की जनसंवाद शैली गजब की थी। उनका भाषण विरोधी पार्टियों के लोग भी दूर-दूर से सुनने के लिए आते थे। उनकी पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी यही प्रयास रहता था कि वे उन्हीं की भाषा, बोली और लहजे में लोगों से अपने आप को कनेक्ट करें। जीवन के अंतिम दौर, में वे अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपने आप को एक योद्धा के रूप में प्रस्तुत करते थे।
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