मसालों के दम पर कोरोना को मात, आपकी रसाेई में है COVID-19 से निपटने का फार्मूला
मसालों की ताकत से हम कोरोना को मात दे सकते हैं और ऐसा कर भी रहे हैं। मसाले के इस्तेमाल में कोरोना से निपटने का फार्मूला छिपा है। आयुष मंत्रालय ने भी ऐसी ही सलाह दी है।
हिसार, [जगदीश त्रिपाठी]। त्रिपुरा, गोवा, लद्दाख कोरोना से मुक्त हो चुके हैं। हिमाचल भी उस दिशा में बढ़ रहा है। हरियाणा में मरीजों के ठीक होने की दर 67 फीसद है। कुछ ऐसे शहरों को छोड़ दें जहां लापरवाहियां ज्यादा हुईं तो कोरोना का प्रकोप यदि भारत में विश्व की अपेक्षा बहुत कम है। चिकित्सकों के अनुसार इसका कारण हमारे भोजन में उपयोग किए जाने वाले मसाले हैं। हमारी रसोई में जितने भी मसाले उपयोग में आते हैं, वे औषधीय गुणों से युक्त होते हैं। भोजन में उनका उपयोग ही शताब्दियों से हमें स्वस्थ रख रहा है। हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहा है।
चिकित्सकों का दावा, भारतीय भोजन में उपयोग किए जाने वाले मसालों मे प्रचुर मात्रा में औषधीय गुण
इसे आयुर्वेदिक ही नहीं एलोपैथिक चिकित्सक भी स्वीकार करते हैं। हिसार की जानी मानी आयुर्वेदिक चिकित्सक और बाला जी हास्पटिल हिसार की निदेशक डॉ सीमा गोयल दावा करती हैं कि कोरोना के आक्रमण से मुकाबला हम इन्हीं मसालों से मिलने वाली शक्ति के कारण कर पा रहे हैं। वह इस बात को प्रमुखता से रेखांकित करती हैं कि आयुष विभाग जिन चीजों के सेवन के उपयोग पर जोर दे रहा है, उनमें से अधिकांश हम अपने भोजन में ग्रहण करते हैं। जैसे हल्दी, दालचीनी, काली मिर्च, आदि। गरम मसालों में आऩे वाली वस्तुएं जायफल, जावित्री लौंग, इलाइची हों या सामान्य मसाले में आने वाली वस्तुएं मसलन हल्दी-धनिया आदि सब स्वास्थ्य के लिए गुणकारी हैं।
इनके सेवन से मिलती है रोगों से लडऩे की शक्ति, प्रतिरोधक क्षमता होती है मजबूत
अपनी बात को बल देने के लिए डॉ. सीमा उदाहरण देती हैं। वह कहती हैं, गांवों में और छोटे शहरों में, जिनका स्वभाव आज भी गांवों जैसा है, वहां आप कोरोना का दुष्प्रभाव और बहुत कम पाएंगे। गांवों में छोटे शहरों में मसाले पारंपरिक ढंग से पानी मिलाकर भूने जाते हैं। कुछ व्यंजनों में उन्हें हल्का सा रोस्ट करने के बाद पीसकर उपयोग किया जाता है। इससे उनकी गुणकारी तत्व नष्ट नहीं होते।
डॉ. सीमा के पति डॉ अनिल गोयल उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं- चूंकि हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है, इसलिए एक तरफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस पर प्रहार करती है तो दूसरी तरफ एलोपैथी दवाएं सीधे उसपर हमला बोलती हैं। देश भर में मशहूर हिसार के जिंदल अस्पताल में बतौर फिजीशियन कार्यरत डॉ अनिल गोयल कहते हैं कि यह मसालों का उपयोग ही है, जिसके कारण हमारे देश का रिकवरी रेट अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक है। जो मरीज नहीं बचाए जा सके, उनमें से अधिकतर बुजुर्ग थे और वे कोराना संक्रमण के अतिरिक्त अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे। भारत में कोरोना से किए जा रहे प्रभावी मुकाबले का श्रेय वह भारत के चिकित्सकों के साथ ही प्राचीन काल के ऋ षियों को भी देते हैं।
डॉ अनिल कहते हैं कि ये हमारे ऋषि ही थे जिन्होंने औषधीय पौधों के गुणों पर शोध किया। वास्तव में प्राचीन काल के हमारे ऋ षि विज्ञानी थे। वे संन्यासी नहीं थे। सबका परिवार था। हां, वनस्पतियों पर शोध करने के लिए वे पहाड़ों में, वनों में रहते थे। उनके योग पर और गुणों पर सूत्र रचते थे। सूत्र यानी फार्मूला। आजकल के विज्ञानी आधुनिक ऋ षि हैं, वे भी समाज के हित में शोध में लगे रहते हैं। नए नए फार्मूले ईजाद करते हैं।
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