Save Aravalli: ऊंचाई की नई परिभाषा से 95% पहाड़ी क्षेत्र पर संकट, अरावली खतरे में तो दिल्ली-NCR की सांस भी खतरे में
Save Aravalli: अरावली को बचाने की जरूरत है। ऊंचाई की नई परिभाषा के कारण 95 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र खतरे में है। इससे दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की ...और पढ़ें

अरावली पहाड़ी क्षेत्र के कई इलाकों में इस तरह है घनी हरियाली। जागरण
आदित्य राज, गुरुग्राम। दिल्ली सहित पूरे एनसीआर के लिए जीवनदायिनी अरावली के ऊपर संकट के बादल छा गए हैं। यह संकट केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई अरावली की नई परिभाषा से छाया है। नई परिभाषा के अनुसार, स्थानीय धरातल से 100 मीटर से अधिक की ऊंचाई वाले पहाड़ ही अरावली के पहाड़ माने जाएंगे। ऐसे में 100 मीटर से नीचे की पहाड़ियों पर संकट गहरा गया है।
दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जीवन पर संकट
पहाड़ की ऊंचाई का मापदंड समुद्र तल से तय होता है। गुरुग्राम एवं दिल्ली के धरातल की ऊंचाई समुद्र तल से 240 से 260 मीटर के आस-पास है जबकि क्षेत्र में फैली अरावली के अधिकतर पहाड़ों की ऊंचाई 300 मीटर के आस-पास है। ऐसे में नई परिभाषा के मुताबिक, अरावली के पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से कम यानी 40 से 60 मीटर हो जाती है। इस वजह से लगभग 90 से 95 प्रतिशत वानिकी क्षेत्र अरावली के दायरे से बाहर हो जाएगा। अरावली की बर्बादी का मतलब है दिल्ली सहित पूरे एनसीआर में जीवन पर संकट।
अरावली के महत्व को दर्शाएगा 'दैनिक जागरण'
अरावली के पहाड़ ही राजस्थान से चलने वाली धूल भरी हवाओं को काफी हद तक रोकते हैं। यही नहीं भूकंप के हिसाब से दिल्ली सहित पूरा एनसीआर संवेदनशील जोन-चार के दायरे में आता है। अरावली पहाड़ी की वजह से ही भूकंप का असर नहीं होता। ऐसे में अरावली को बचाना जीवन को बचाना है। इसे ध्यान में रखकर 'दैनिक जागरण' ने कैसे बचे अरावली नाम से अभियान शुरू किया है। अभियान के माध्यम से यह बताया जाएगा अरावली की बर्बादी से जीवन कैसे संकट में पड़ जाएगा, भूमाफिया एवं खनन माफिया की नजर किस कदर इलाके के ऊपर है, वन्य जीवों के ऊपर संकट कैसे पैदा हो जाएगा। अगले सात दिनों तक अलग-अलग विषयों के माध्यम से लोगों के जीवन में अरावली के महत्व को दर्शाया जाएगा।
गुरुग्राम एवं फरीदाबाद के इलाके में बड़ा नुकसान
अरावली पर्वत श्रृखंला दिल्ली से लेकर गुजरात तक है। जानकार बताते हैं कि 1970 के आस-पास तक अरावली पहाड़ी क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित था। शहरीकरण की आंधी ने सबसे अधिक नुकसान अरावली पहाड़ी क्षेत्र को किया। 1980 के बाद इसके ऊपर भूमाफिया व खनन माफिया की नजर पड़नी शुरू हुई। धीरे-धीरे गैर वानिकी कार्य शुरू हुए। 1990 के बाद गैर वानिकी कार्य की ऐसी आंधी चली कि गुरुग्राम एवं फरीदाबाद के इलाके में ही सैकड़ों हाउस बन गए।

कागजों में ही दिखते हैं प्रतिबंध
धन कुबेरों ने औने-पाैने कीमत पर लोगों से जमीन खरीद ली। धीरे-धीरे खनन कार्य शुरू हो गए। खनन कार्यों ने अरावली का सीना छलनी कर दिया। न केवल हजारों गहरी खाई क्षेत्र में बन गईं बल्कि जहां 20 से 25 मीटर पर ही अधिकतर जगह पानी मिल जाता था, वहां अब भूजल का नाम-ओ-निशान ही नहीं है। अरावली के इलाकों में रहने वाले वन्यजीवों के लिए कृत्रिम तालाब बनाने पड़ रहे हैं। हर साल गर्मी के मौसम में उसमें पानी डालना पड़ता है। गुरुग्राम एवं फरीदाबाद सहित कई इलाकों में खनन के ऊपर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन यह कागजों में ही है।
खनन ने कर दिया छलनी
खासकर, नूंह जिले के कई इलाकों में धड़ल्ले से खनन किए जा रहे हैं। इन सब स्थितियों से अरावली के ऊपर उतना अधिक संकट नहीं छाया, जितना संकट एक ही झटके में इसकी नई परिभाषा से छा गया है। नई परिभाषा के लागू होते ही भूमाफिया एवं खनन माफिया की लॉटरी लग जाएगी। अंत में कुछ नहीं बचेगा। अरावली इतिहास बनकर रह जाएगी। ऐसे में अरावली को ही नहीं बल्कि जीवन को बचाने के लिए सभी को आगे आना होगा। यदि आज अरावली के संरक्षण के लिए आवाज बुलंद नहीं की गई तो फिर आने वाली पीढ़ियाें का सांस लेना ही मुश्कल हो जाएगा। अरावली पहाड़ी क्षेत्र में सही मायने में हरियाली बची है।
सात जनवरी को होगी मामले में सुनवाई
अरावली की नई परिभाषा के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका पर सात जनवरी को सुनवाई होगी। याचिका पर्यावरणविद् व सेवानिवृत वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान द्वारा डाली गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ ही दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा एवं गुजरात सरकार को नोटिस भेजकर अपना पक्ष रखने को कहा है। पर्यावरण प्रेमियों से लेकर आम लोगों की नजर सात जनवरी की सुनवाई पर है। पर्यावरणविदों का कहना है कि वे अरावली को बचाने के लिए अंतिम दम तक संघर्ष करेंगे। इसे बचाने के लिए आम लोगों को आगे आना चाहिए।
'परिभाषा ऊंचाई से तय करना गलत'
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अरावली की नई परिभाषा से जीवन संकट में पड़ जाएगा। दैनिक जागरण ने जीवन को बचाने के लिए अभियान शुरू किया है। अरावली पर्वत श्रृंखला है न कि एक पहाड़। ऐसे में इसकी परिभाषा ऊंचाई से तय करना गलत है। दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है। यह जितना ऊपर है उससे कहीं अधिक नीचे है। भूमाफिया एवं खनन माफिया के इशारे पर नई परिभाषा बनाई गई है। परिभाषा बनाने वालों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। अरावली के रहने पर धूल भरी हवाएं काफी आ रही हैं, न रहने पर क्या होगा। राजस्थान का मरुस्थल दिल्ली तक पहुंच जाएगा। एक तरफ अरावली ग्रीन वाल प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की बात की जा रही है और दूसरी तरफ अरावली को ही खत्म करने की तैयारी है।
-डाॅ. आरपी बालवान, पर्यावरणविद् व सेवानिवृत वन संरक्षक
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