Save Aravalli: खनन और गलत पौधरोपण ने अरावली को किया बर्बाद, राजस्थान का मरुस्थल पहुंचने लगेगा दिल्ली
अरावली में कम होती हरियाली के कारण राजस्थान से धूल भरी हवाएं दिल्ली तक पहुंच रही हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। अरावली के जंगलों का घटना दिल्ल ...और पढ़ें

अरावली पर्वतमाला।
आदित्य राज, गुरुग्राम। वैध और अवैध रूप से खनन के साथ ही हरियाली बढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति किए जाने से अरावली के काफी इलाके उजाड़ नजर आते हैं। यही वजह है कि राजस्थान से धूल भरी हवाएं अधिक आने लगी हैं। अरावली प्रोजेक्ट के नाम पर लगाए गए विलायती बबूल न केवल स्थानीय वनस्पतियों के दुश्मन बन चुके हैं बल्कि धूल भरी हवाओं को रोक पाने में अक्षम हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि विलायती बबूल की जगह चरणवद्ध तरीके से स्थानीय वनस्पतियां लगाने के ऊपर जोर देना होगा, अन्यथा राजस्थान के मरुस्थल को दिल्ली पहुंचने में देर नहीं लगेगी। इसे ध्यान में रखकर अरावली ग्रीन वाल प्रोजेक्ट के ऊपर गंभीरता से काम करना होगा।
हेलीकाप्टर से विलायती बबूल के बीज छिड़के गए
अरावली पहाड़ी क्षेत्र में हरियाली बढ़ाने के नाम पर वर्ष 1990 से 1999 के दौरान वन विभाग द्वारा हेलीकाप्टर से विलायती बबूल के बीज छिड़के गए। बीज पहाड़ के ऊपर छिड़के गए थे। इसकी खासियत यह है कि इसे पानी की अधिक आवश्कयता नहीं पड़ती। कहीं भी यह उग जाता है और तेजी से चारों तरफ फैलता है। नतीजा यह हुआ कि पहाड़ों के ऊपर से फैलते हुए यह नीचे तक पहुंच गया और स्थानीय वनस्पतियों को समाप्त करना शुरू कर दिया। कुछ सालों के दौरान ही 90 प्रतिशत से अधिक स्थानीय वनस्पतियां खत्म हो चुकी हैं।
अवैध रूप से खनन की आती हैं शिकायतें
वर्ष 2000 से 2004 के दौरान अवैध रूप से अंधाधुंध खनन किए गए। इससे न केवल देखते ही देखते कई पहाड़ गायब हो गए बल्कि आसपास की हरियाली नष्ट हो गई। भूमिगत जल स्तर जो अधिकतर इलाकों में 15 से 20 मीटर तक था उसका अब नामोनिशान नहीं। गुरुग्राम, फरीदाबाद, नूंह एवं पलवल में खनन पर रोक लगाए जाने के बाद भी माफिया सक्रिय हैं। खासकर नूंह के तावड़ू एवं राजस्थान से सटे इलाके में अवैध रूप से खनन की शिकायतें समय-समय पर आती रहती हैं।
गैर वानिकी गतिविधियों पर रोक लगानी होगी
इन कारणों से हरियाली का दायरा कम होता जा रहा है। खनन से पहले इलाके में बने प्राकृतिक तालाबों में हमेशा पानी रहता था। जगह-जगह झरने दिखाई देते थे। अब मानसून के दौरान ही प्राकृतिक तालाबों में पानी रहता है। इस वजह से हरियाली नहीं बढ़ रही। पर्यावरण कार्यकर्ता वैशाली राणा का कहना है कि हरियाली बढ़ाने के लिए अरावली पहाड़ी क्षेत्र में पीपल, नीम, बरगद, रोंज, धौंक, पापड़ी, ढाक एवं पीलखन आदि स्थानीय वनस्पतियों को लगाने पर जोर देना होगा। साथ ही अवैध खनन सहित अन्य गैर वानिकी गतिविधियों पर रोक लगानी होगी।
हर साल हरियाली के नाम पर खानापूर्ति
वन विभाग हर साल मानसून के दौरान लाखों पौधे लगाने की योजना बनाता है। यह योजना कागजों में ही रह जाती है। जो पौधे लगाए भी जाते हैं, उनके ऊपर ध्यान नहीं दिया जाता है। नतीजा अधिकतर पौधे मर जाते हैं। पौधों की देखभाल के प्रति कितनी लापरवाही बरती जाती है, इसका सबसे बड़ा प्रमाण है अरावली ग्रीन वाल प्रोजेक्ट के तहत गांव टीकली में लगाए गए लगभग 50 पौधों में से केवल दो का ही बचना। दोनों पौधे भी मरने की कगार पर हैं। जब तक अरावली में हर तरफ हरियाली थी तब तक पूरे अरावली पहाड़ी क्षेत्र में वन्यजीव दिखाई देते थे।
वन्यजीवों की अधिकता है इन क्षेत्रों में
अब जिन इलाकों में घनी हरियाली है उन्हीं इलाकों में अधिकतर वन्यजीव हैं। इन इलाकों में वजीराबाद, घाटा, बंधवाड़ी, मांगर, ग्वालपहाड़ी, मानेसर घाटी, कासन, शिकोहपुर, सांप की नगली, मंडावर, भोंडसी, दमदमा, धुनेला के साथ ही फिरोजपुर झिरका शामिल हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि गैर वानिकी कार्यों को खत्म किए जाने से वन्यजीवों की संख्या तेजी से बढ़ेगी।
"अरावली पहाड़ी क्षेत्र में स्थानीय वनस्पतियां विकसित करने पर जोर दिया जाएगा। चरणवद्ध तरीके से काम जाएगा। 100 से 500 एकड़ भूमि से विलायती बबूल को हटाकर स्थानीय वनस्पतियां लगाई जाएंगी। विलायती बबूल को इस तरह हटाया जाएगा कि दोबारा न उगे। अरावली जंगल सफारी पार्क के दायरे में आने वाले विलायती बबूल को भी हटाया जाएगा। उसकी जगह स्थानीय पौधे लगाए जाएंगे।"
-डाॅ. सुभाष यादव, वन संरक्षक
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