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    Save Aravalli: कुछ सालों में दिल्ली के निकट होगा मरुस्थल, वैध-अवैध खनन की आड़ में खत्म हो गए अरावली के 31 पहाड़

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 06:36 PM (IST)

    गुरुग्राम में अरावली के 31 पहाड़ खनन माफिया निगल चुके हैं, जिससे राजस्थान से दिल्ली तक धूल भरी हवाएं बढ़ रही हैं। पर्यावरणविदों के अनुसार, नई परिभाषा ...और पढ़ें

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    अरावली के 31 पहाड़ खनन माफिया अब तक निगल चुके हैं।

    आदित्य राज, गुरुग्राम। दिल्ली सहित पूरे एनसीआर के लिए जीवनदायिनी बनी अरावली के 31 पहाड़ खनन माफिया अब तक निगल चुके हैं। कई पहाड़ खत्म होने की कगार पर हैं। यही वजह है कि राजस्थान से चलने वाली धूल भरी हवाएं दिल्ली तक अधिक पहुंचने लगी हैं।

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    पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि नई परिभाषा लागू कर दी गई वैसे में 90 प्रतिशत से अधिक अरावली के पहाड़ खत्म हो जाएंगे। ऐसे में राजस्थान का मरुस्थल दिल्ली तक पहुंच जाएगा। हरियाली खत्म हो जाएगी। फिर एनसीआर में लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण अरावली का क्षरण है।

    अरावली पहाड़ी क्षेत्र में वर्ष 1970 तक बाघ भी दिखाई देते थे। धीरे-धीरे भूमाफिया एवं खनन माफिया इलाके में इस तरह कदर सक्रिय हुए कि न केवल पहाड़ बल्कि बाघ सहित कई वन्यजीव गायब हो गए। अब गिनती के तेंदुआ, लकड़बग्घा, हिरण, नील गाय एवं खरगोश सहित कुछ प्रकार के वन्यजीव बच गए हैं। होडल के नजदीक अरावली की वादियों का आनंद लेने के लिए लोग पहुंचते थे। वह पूरी तरह गायब हो चुकी है।

    नारनौल जिले के नांगल दरगु के नजदीक कई पहाड़ गायब हो चुके हैं। गुरुग्राम में सोहना से आगे तीन से चार पहाड़ों का नामोनिशान नहीं। इसी तरह महेंद्रगढ़ के ख्वासपुर में पहाड़ लगभग गायब हो चुके हैं। नूंह इलाके का तो सबसे बुरा हाल है। तावड़ू के आसपास कई पहाड़ खत्म हो चुके हैं। राजस्थान से सटे नूंह के इलाके के कई पहाड़ खत्म होने की कगार पर हैं।

    कुछ ही सालों में दिल्ली के नजदीक होगा मरुस्थल

    पर्यावरणविदों का मानना है कि जिस गति से पहाड़ खत्म होते जा रहे हैं, वैसे में कुछ ही सालों के भीतर राजस्थान का मरुस्थल दिल्ली के नजदीक होगा। इससे वायु प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाएगा कि लोगों का सांस लेना मुश्किल जो जाएगा। अरावली की हरियाली धूल मिट्टी को अवशोषित करती थी। इससे प्रदूषण का स्तर नहीं बढ़ता था। पहाड़ों का अस्तित्व खत्म होने से सबसे अधिक नुकसान हरियाली को हुआ है। हरियाली की वजह से ही धूल मिट्टी ऊपर नहीं जा पाती थी।

    गुरुगाम-फरीदाबाद में केवल एक जगह थी अनुमति

    पर्यावरणविद् व सेवानिवृत वन संरक्षक डॉ. आरपी बालवान का कहना है कि वह लंबे समय तक वन विभाग में रहे हैं। खनन की अनुमति गुरुग्राम एवं फरीदाबाद के इलाके में केवल खोड़ी जमालपुर के इलाके में थी। इसी आड़ में दोनों जिलों के अंतर्गत आने वाले अरावली के अधिकतर इलाकों में अवैध रूप से अंधाधुंध खनन किया गया। हजारों खाई बन गई। अधिकतर इलाकों में भूमिगत जल का नामोनिशान मिट गया।

    2000 से 2004 के बीच सबसे अधिक अवैध रूप से खनन किया गया। 18 मार्च 2004 से खनन के ऊपर पूरी तरह प्रतिबंध है। इसके बाद भी गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल एवं नूंह खासकर नूंह जिले में अवैध रूप से खनन हो रहा है। महेंद्रगढ़, भिवानी एवं चरखी दादरी में नियमों के विरुद्ध खनन की अनुमति है।

    खनन माफिया ने तरीका बदल दिया

    खनन पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद माफिया ने तरीका बदल दिया। अब इलाके में जब शादी समारोह या ऐसा फंक्शन रहता है जिसमें जमकर आतिशबाजी की जाती है, उस दौरान पहाड़ में ब्लास्ट किया जाता है। इससे लोगों को शक नहीं होता। बाद में मौका मिलते ही डंपर या ट्रैक्टर से पत्थर उठाकर ले माफिया के लाेग ले जाते हैं। एक तरीका और इजाद किया है। पहाड़ पर उस जगह चोट मारा जाता है जहां से पत्थर आसानी से गिर जाएं। पहाड़ों में चोट मारकर खनन करने के तरीके का गुरुग्राम एवं फरीदबाद के इलाके में अधिक प्रयोग किया जाता है।

    खनन माफिया के मुखबिर पहाड़ों की ऊंचाई पर ही नहीं बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों के रास्ते की शुरुआत में बैठे रहते हैं। जैसे ही वन या खनन विभाग की गाड़ी इलाके में पहुंचती है, सूचना दे दी जाती है। इससे खनन करने वाले लोग सक्रिय हो जाते हैं। खनन माफिया के लोग हथियारों से भी लैस रहते हैं। पकड़े जाने की नौबत आने पर वन, खनन या पुलिस विभाग की टीम पर हमला बोल देते हैं। तीन साल पहले तावड़ू इलाके में एक डीएसपी को सरेआम कुचलकर हत्या कर दी गई थी। कई बार पुलिस टीम पर हमला हो चुका है।

    मैं गुरुग्राम जिले के गांव खांडसा का रहने वाला हूं। मैंने अरावली की खूबसूरती भी देखी है और धीरे-धीरे बर्बाद होते देख रहा हूं। जगह-जगह झरने थे। खनन की वजह से सभी खत्म हो गए। कहा जा रहा है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले अरावली के पहाड़ नहीं माने जाएंगे, ऐसे में तो कुछ भी नहीं बचेगा। न अरावली बचेगी और न ही वन्यजीव। पहले से ही काफी कम वन्यजीव रह गए हैं। अरावली की वजह से दिल्ली सहित पूरे एनसीआर के लोग सांस लेते हैं। - राज चौहान, फिल्म अभिनेता

    केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जो परिभाषा अरावली की दी है, उससे साफ है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले पहाड़ अरावली के दायरे में नहीं आएंगे। यदि ऐसा नहीं है तो केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव पूरा दस्तावेज सार्वजनिक क्यों नहीं करते। हजारों फार्म हाउसों को बचाने एवं भूमाफिया एवं खनन माफिया को खुली छूट देने के लिए अरावली की नई परिभाषा बनाई गई है। अरावली नहीं बची तो जीवन भी नहीं बचेगा। जीवनदायिनी अरावली के साथ गलत हो रहा है। - वैशाली राणा, पर्यावरण कार्यकर्ता

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