पत्नी के लगाए आरोपों से बरी पति को है क्षतिपूर्ति का अधिकार, कोर्ट ने खारिज की पत्नी की केस हटाने की याचिका
सिविल जज मनीष कुमार की अदालत ने गुरसरण लाल अवस्थी मामले में अहम आदेश दिया। अदालत ने प्रतिवादी की याचिका खारिज की जिसमें मुकदमा खारिज करने की मांग की गई थी। गुरसरण लाल अवस्थी ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए झूठे मामले में 1.8 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति का दावा किया है। अदालत ने कहा कि क्षतिपूर्ति का दावा दुर्भावनापूर्ण अभियोजन पर आधारित है।

जागरण संवाददाता, बादशाहपुर। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) मनीष कुमार की अदालत ने गुरसरण लाल अवस्थी बनाम सचिव गृह विभाग एवं अन्य मामले में अहम आदेश सुनाया है। अदालत ने प्रतिवादी की उस अर्जी को खारिज कर दिया है, जिसमें वाद को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज करने की मांग की गई थी।
केस में हो चुके हैं बरी
मामला यूके के रहने वाले गुरसरण लाल अवस्थी से जुड़ा है। वादी गुरसरणलाल अवस्थी ने अपनी पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए 498ए, 406 और 506 आइपीसी के मामले में झूठी शिकायत से हुए मानसिक, सामाजिक और आर्थिक नुकसान का हवाला देते हुए 1.8 करोड़ रुपये क्षतिपूर्ति का दावा दायर किया है। वह इस केस में बरी हो चुके हैं।
मामले में बरी होने पर गुरसरण लाल अवस्थी की पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील दायर की है। अब मामला हाईकोर्ट में लंबित है।
वाद दायर करने का आधार
प्रतिवादी की ओर से दलील दी गई थी कि वादी ने तथ्य छुपाए हैं। झूठी जानकारी दी है और पूरी अदालती फीस भी जमा नहीं करवाई।
इसके चलते मामले को खारिज करने या वादी को कोर्ट फीस जमा कराने का आदेश दिया जाए। अदालत ने कहा कि क्षतिपूर्ति का दावा दुर्भावनापूर्ण अभियोजन पर आधारित है और वादी की ओर से वाद दायर करने का आधार है।
अगली सुनवाई 20 नवंबर को
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामलों में प्रारंभिक स्तर पर कोर्ट फीस जमा कराना अनिवार्य नहीं है। यदि भविष्य में क्षतिपूर्ति का डिक्री पारित होता है तो वादी को शेष फीस जमा करनी होगी। अदालत ने प्रतिवादी की दलीलों को ट्रायल के दौरान सबूतों से परखा जाने योग्य बताते हुए अर्जी को निराधार करार दिया और मामला आगे सुनवाई के लिए तय किया। अब मामले की 20 नवंबर 2025 को अगली सुनवाई होगी।
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