Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गुरुग्राम में सोए सिस्टम की भेंट चढ़ी मातृ वन योजना, अरावली में पानी की कमी से सूख रहे पौधे

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 07:37 AM (IST)

    Jagran Investigation गुरुग्राम में मातृ वन योजना सिस्टम की लापरवाही के कारण विफल हो रही है। अरावली में पानी की कमी के चलते पौधे सूख रहे हैं, जिससे योज ...और पढ़ें

    Hero Image

    योजना के तहत लगाए गए पौधे पानी की कमी से सूख रहे। जागरण

    जागरण संवाददाता, गुरुग्राम। अरावली पहाड़ी क्षेत्र में हरियाली बढ़ाने के नाम पर खानापूर्ति चल रही है। पौधे जीवित रहें इसे लेकर न ही वन विभाग और न ही पर्यावरण को बढ़ावा देने की दुहाई देने वाले गैर सरकारी संगठन गंभीर हैं। यदि गंभीर होते तो मातृ वन के नाम पर लगाए गए पौधे नहीं सूखते।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    योजना के शुभारंभ अवसर पर लगाए गए अधिकतर पौधे सूख चुके हैं। यदि पानी नहीं मिला तो बचे पौधे भी कुछ महीनों में सूख जाएंगे। पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि पौधे लगाने वाले संगठनों की गतिविधियों की भी जांच होनी चाहिए।

    सीएसआर के तहत विभिन्न कंपनियों से पैसे लेकर संगठनों ने पौधे कहां लगाए, कितने पानी पौधों को दिए गए, ट्री गार्ड कितने लगाए आदि सवालों को ध्यान में रखकर जांच होनी चाहिए। इसी तरह वन विभाग द्वारा जो पौधे लगाए जाते हैं, उनकी जांच होनी चाहिए। जब तक जांच नहीं होगी तब तक पौधारोपण के नाम पर खेल चलता रहेगा। हर साल लाखों पौधे लगाने के दावे किए जाते हैं, फिर हरियाली क्यों नहीं बढ़ रही।

     मतृ वन विकसित करने की योजना

    प्रदेश सरकार ने साइबर सिटी के नजदीक अरावली पहाड़ी क्षेत्र की 750 एकड़ में मातृ वन विकसित करने की योजना बनाई है। 750 एकड़ में जहां भी विलायती बबूल है, उसे हटाकर बरगद, पीपल, गुल्लर, बेस पत्र, इमली, पिलखन, नीम, बांस, फूल सहित कई प्रकार के पौधे लगाए जाने हैं।

    इलाके में नक्षत्र वाटिका, राशि वाटिका, कैक्टस गार्डन एवं बटरफ्लाई पार्क भी विकसित किए जाने हैं लेकिन शुभारंभ अवसर पर लगाए गए पौधों के प्रति उदासीनता से लग रहा है कि यह योजना भी साकार नहीं होगी। वजीराबाद व हैदरपुर के अंतर्गत अरावली पहाड़ी क्षेत्र में लगाए गए पौधों को देखने से लगता है कि लगाने के बाद एक बार भी पानी नहीं मिला।

    ट्री गार्ड तक नहीं लगाए गए। पानी न मिलने से जहां काफी पौधे मर चुके हैं वहीं ट्री गार्ड न होने की वजह से काफी पौधे जड़ से टूट चुके हैं। नजदीक छोटे-छोटे तालाबों को देखकर ऐसा लगता है जैसे उसमें मानसून के जाने के बाद एक बार भी पानी तक नहीं डाला गया।

    केंद्रीय मंत्रियों ने किया था योजना का शुभारंभ

    योजना का शुभारंभ पांच महीने पहले दो अगस्त को केंद्रीय ऊर्जा एवं शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल तथा केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पौधे लगाकर किया था। शुभारंभ के दिन लगभग एक हजार पौधे लगाए गए थे। शुभारंभ अवसर पर यह कहा गया था कि मातृ वन योजना के तहत लगाए जाने वाले पौधों की पांच से छह साल तक देखभाल की जाएगी।

    यह भी कहा गया था कि मातृ वन आने वाले समय में दिल्ली-एनसीआर के लिए ग्रीन हार्ट की भूमिका निभाएगा लेकिन जिस तरीके से पौधों की देखभाल में लापरवाही बरती जा रही है, उससे एक भी पौधे का जीवित बचना मुश्किल है।



    पिछले कुछ सालों के दौरान किस संगठन ने कितने पौधे लगाए, कितने जीवित बचे, पौधे लगाने के लिए पैसे कहां से लाए आदि सवालों को ध्यान में रखकर आडिट कराने पर जोर दिया जाए। इसी तरह वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधों के बारे में किसी स्वतंत्र एजेंसी से आडिट कराने पर दिया जाए। इतना करने से ही पौधारोपण के नाम पर चल रहा खेल खत्म हो जाएगा। सबसे अधिक खेल पौधारोपण के नाम पर चल रहा है।

    -

    शरद गोयल, पर्यावरण कार्यकर्ता व अध्यक्ष, नेचर इंटरनेशनल

    पौधारोपण अभियान के नाम पर भारी गड़बड़झाला चल रहा है। कोई संगठन दावा करता है कि हजारों पौधे लगा दिए, कोई दावा करता है कि लाखों पौधे लगा दिए, वन विभाग भी दावा करता है कि वह हर साल लाखों पौधे बांटता भी है और लगाता भी है फिर उस हिसाब से हरियाली क्यों नहीं बढ़ रही। स्पष्ट है पौधारोपण अभियान के नाम पर खेल चल रहा है।

    -

    वैशाली राणा, पर्यावरण कार्यकर्ता

    मातृ वन योजना के तहत अरावली पहाड़ी क्षेत्र में लगाए गए पौधों के सूखने के मामले की जांच कराई जाएगी। योजना के तहत केवल विभाग ही नहीं बल्कि कई गैर सरकारी संगठन व कारपोरेट सेक्टर काम कर रहे हैं। किस संगठन या कंपनी द्वारा लगाए गए पौधे मरे या मर रहे हैं, पता किया जाएगा। लगाए गए पौधे जीवित रहें, इसका हरसंभव प्रयास किया जाएगा। जांच के बाद खानापूर्ति करने वाले संगठनों को आगे से वन क्षेत्र में पौधे लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

    -

    डॉ. सुभाष यादव, वन संरक्षक