बंद पड़ चुका दिल, LAD आर्टरी में 100% ब्लॉकेज और बिजली के 23 झटके; गुरुग्राम के डॉक्टरों ने दी मौत को मात
गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने एक 41 वर्षीय मरीज को नया जीवन दिया। मरीज को गैस की शिकायत के साथ भर्ती किया गया था, ले ...और पढ़ें
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जागरण संवाददाता, गुरुग्राम। मेडिकल हब के रूप में पहचान बना रहे साइबर सिटी के डाॅक्टरों ने हाई-रिस्क कार्डियाक इमरजेंसी से जूझ रहे 41 वर्षीय मरीज को नया जीवन दिया। मरीज अस्पताल गैस की सामान्य शिकायत लेकर पहुंचे थे, लेकिन कुछ ही मिनटों में उनकी स्थिति गंभीर कार्डियक इमरजेंसी में बदल गई।
जांच के दौरान ईसीजी में गंभीर असामान्यता पाई गई। इसके बाद मरीज को दौरे पड़े और खतरनाक कार्डियाक एरिथमिया के बाद उन्हें कार्डियाक अरेस्ट हो गया।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के हेड–इमरजेंसी मेडिसिन डाॅ. मोहम्मद नदीम ने बताया कि इमरजेंसी टीम ने एडवांस कार्डियाक लाइफ सपोर्ट प्रोटोकाॅल लागू किए। ईसीजी में शार्क फिन पैटर्न सामने आया, जो हृदय की मुख्य धमनी में गंभीर रुकावट का संकेत होता है।
इमरजेंसी एंजियोग्राफी में प्राक्सिमल लेफ्ट एंटीरियर डिसेंडिंग (एलएडी) आर्टरी में 100 प्रतिशत ब्लाॅकेज की पुष्टि हुई। इसके मरीज को एडवांस सीक्वेंशियल डीफिब्रिलेशन के तहत 23 बार बिजली के झटके दिए गए
लंबे समय तक हाई क्वालिटी सीपीआर, एयरवे स्टेबलाइजेशन और आवश्यक दवाएं दी गईं। हालत स्थिर होने पर मरीज को कैथ लैब ले जाकर इमरजेंसी पीसीआई के जरिए बंद धमनी खोली गई। मरीज को चिकित्सीय निगरानी में छह दिन रहने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
23 बार डीफिब्रिलेशन (शॉक) का महत्व
जब किसी को कार्डियाक अरेस्ट होता है, और 3 से 5 शॉक के बाद अगर दिल रिदम में नहीं लौटता, तो उसे 'Refractory Ventricular Fibrillation' कहा जाता है। ऐसे मामलों में जीवित रहने की दर 5% से भी कम होती है। 23 बार शॉक देकर मरीज को वापस लाना डॉक्टरों का धैर्य दर्शाता है।
Shark Fin Pattern को समझिए
ईसीजी (ECG) पर दिखने वाला शॉक फिन पैटर्न 'Giant R-wave' या 'Tombstoning' का ही एक अत्यधिक गंभीर रूप है। यह पैटर्न तब दिखता है जब हृदय की LAD (Left Anterior Descending) धमनी, जिसे 'Widow Maker' भी कहा जाता है, पूरी तरह बंद हो जाती है।
क्या है Double Sequential Defibrillation?
जब एक मशीन से शॉक काम नहीं करता, तो कुछ एडवांस सेंटर्स में दो डीफिब्रिलेटर मशीनों का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक भारत के बहुत कम अस्पतालों में उपलब्ध है और इसे चलाने के लिए बहुत उच्च स्तर के तालमेल (Team Coordination) की आवश्यकता होती है।
गैस की शिकायत को गंभीरता से लेना और तुरंत ECG करना। शॉक के बीच में CPR जारी रखना ताकि मस्तिष्क तक खून पहुंचता रहे, वरना मरीज बच तो जाता पर 'ब्रेन डेड' हो जाता है।
कार्डियाक अरेस्ट या बार-बार गिरते ब्लड प्रेशर के बीच ब्लॉक धमनी को खोलना (Angioplasty) तकनीकी रूप से सबसे चुनौतीपूर्ण काम है। यह केस साबित करता है कि अगर सही समय पर "शार्क फिन" की पहचान हो जाए तो मरीज को मौत से मुंह से निकाला जा सकता है।

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