Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    The Bengal Files Review: झकझोर देंगे हिंसक दृश्य, क्या 1946 की कोलकाता घटना के साथ न्याय कर पाई फिल्म?

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 04:48 PM (IST)

    विवेक अग्निहोत्री की राजनीतिक ड्रामा फिल्म द बंगाल फाइल्स (The Bengal Files Review ) 5 सितंबर 2025 को बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है। आई। द बंगाल फाइल्स विवेक अग्निहोत्री की द फाइल्स ट्रायोलॉजी की तीसरी फिल्म है। इससे पहले उनकी दो मूवीज द ताशकंद फाइल्स और द कश्मीर फाइल्स आ चुकी है।

    Hero Image
    द बंगाल फाइल्स मूवी का रिव्यू (फोटो- इंस्टाग्राम)

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। देश विभाजन से पहले 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा भारत के विभाजन और स्वतंत्र मुस्लिम देश पाकिस्तान के निर्माण के आह्वान के लिए शुरू किए गए 'डायरेक्‍ट एक्‍शन डे' के बाद, कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुई सांप्रदायिक हिंसा के परिणामस्वरूप हजारों लोग मारे गए थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ब्रिटिश राज में हिंदुओं पर हुए थे हमले

    इसी तरह की हिंसा ब्रिटिश बंगाल के नोआखली जिले (अब बांग्लादेश में) में हुई थी, जिसमें हिंदुओं पर व्यवस्थित रूप से हमले किए, जिसमें हत्याएं, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, घरों की लूट और आगजनी शामिल थी। इतिहास की इन घटनाओं को विवेक अग्निहोत्री ने इस बार अपनी ट्रायोलॉजी की आखिरी फिल्‍म द बंगाल फाइल्‍स में खोला है। हालांकि इतिहास के इस पन्‍ने को दर्शाने के साथ उन्‍होंने यह बताने की कोशिश की है कि विभाजन के 78 साल बाद भी बंगाल के हालात कमोवेश वैसे ही हैं। तथ्‍य भले ही सुगठित रहे, लेकिन प्रभाव के मामले में यह उनकी पिछली दो फाइल्‍स द ताशकंद फाइल्‍स और द कश्‍मीर फाइल्‍स में सबसे कमजोर नजर आती है।

    यह भी पढ़ें- The Bengal Files Prediction: बागी 4 के लिए खतरा बनेगी 'द बंगाल फाइल्स', फ्राइडे को इतने करोड़ से करेगी ओपनिंग?

    क्या है फिल्म की कहानी?

    शुरुआत देश विभाजन को लेकर लार्ड माउंटबेटन, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना के बीच देश के बीच चर्चा और बहस से होती है, जहां अंग्रेज़, मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने की मांग करते हैं। जबकि महात्मा गांधी इसका कड़ा विरोध करते हैं। फिर कहानी वर्तमान में आती है। बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक दलित लड़की गायब होने का आरोप स्‍थानीय विधायक सरदार हुसैन (शाश्‍वत चटर्जी) पर लगता है, जो बांग्लादेशी प्रवासियों को अवैध रूप से पश्चिम बंगाल में आने में मदद करने के लिए कुख्यात हैं, जिसका मुर्शिदाबाद में वोट बैंक बनाने पर भी प्रभाव पड़ता है। हाई कोर्ट ने सीबीआइ जांच की संस्तुति की है।

    दिल्‍ली से सीबीआई अधिकारी शिवा पंडित (दर्शन कुमार) को मामले की जांच के लिए भेजा जाता है। मामले में संदिग्‍ध करीब सौ साल की बूढ़ी मां भारती (पल्‍लवी जोशी) को बताया जाता है। कश्‍मीरी पंडित शिवा का अतीत भी है, जो उसे सालता है। वहां पहुंचने पर उसे पता चलता है बंगाल में दो संविधान चलते हैं। मां भारती के अतीत के साथ बंगाल के इतिहास से उसका परिचय होता है। साथ ही सरदार हुसैनी की दबंगई के आगे वह खुद को लाचार पाता है। उसे लगता है कि आजादी के पहले और बाद के हालात कमोबेश एकसमान हैं।

    काफी शोध करके बनाई गई है फिल्म

    द ताशकंद फाइल्‍स में लाल बहादुर शास्‍त्री की रहस्‍यमयी मौत को लेकर विवेक को काफी सरहाना मिली थी। उसके बाद आई द कश्‍मीर फाइल्‍स ने कश्‍मीरी पंडितों के पलायन के मुद्दे को उठाया। अब बंगाल के इतिहास की परतों को मां भारती के जरिए खोला है। इसमें दोराय नहीं कि उन्‍होंने गहन शोध किया है, लेकिन लेखन के स्‍तर पर यह चुस्‍त फिल्‍म नहीं बन पाई है। इस फिल्‍म को समझने के लिए इतिहास से परिचित होना बहुत जरूरी है। दूसरा फिल्‍म की अवधि 204 मिनट बहुत ज्‍यादा है। इसे चुस्‍त संपादन से छोटा करने की पूरी गुंजाइश थी। डायरेक्‍ट एक्‍शन डे भारतीय इतिहास का काला अध्‍याय है फिल्‍म वहां तक आने में काफी समय लेती है। य‍ह बेहद संवेदनशील और झकरोने वाली घटना रही है। परदे पर इस त्रासदी को कुछ हद तक प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है, लेकिन फिर तेजी से आगे बढ़ जाती है।

    मूवी में कहां नजर आईं कमियां

    फिल्म में बहुत सारी विसंगतियां भी हैं। उदाहरण के लिए दंगा भड़कने पर भारती जिस आसानी से भागते हुए अपने घर पहुंचती है और कार में माता पिता इंतजार कर रहे हैं यह चौंकाता है। उन्‍हें कैसे पता कि भारती सुरक्षित ही आएगी? गांधी के अहिंसा के सिद्धांत का विरोधी गोपाल पाठा प्रतिशोध में हिंदू भीड़ को लामबंद करता है, लेकिन फिर उसका जिक्र ही नहीं आता। सुहरावर्दी (मोहन कपूर) जिन्‍हें हिन्दुओं के नरसंहार के लिए 'बंगाल का कसाई' कहा गया उनके पात्र को पूरी तरह उकेरा नहीं गया है। बंगाल जमीन का टुकड़ा नहीं, भारत का लाइट हाउस है आधारित यह कहानी पूरी तरह बांध नहीं पाती है। वहीं बंगाल की महानता को बताने वाले सूचना प्रधान संवाद अत्यधिक साहित्यिक लगते हैं।

    मां भारती के किरदार में छा गईं पल्लवी जोशी

    कलाकारों में बुजुर्ग मां भारती की भूमिका में पल्‍लवी जोशी का अभिनय सराहनीय है। उनकी युवा भूमिका में सिमरत कौर ने कड़ी मेहनत की है। पूर्व पुलिस अधिकारी बने मिथुन चक्रवर्ती भी अपनी भूमिका साथ न्‍याय करते हैं। वहीं दर्शन कुमार और मोहन कपूर के पात्र लेखन स्‍तर पर कमजोर होने की वजह से बहुत प्रभावी नहीं बन पाए है। महात्‍मा गांधी की भूमिका में अनुपम खेर का अभिनय उनके सर्वश्रेष्ठ अभिनय में शुमार नहीं होता। बर्बर गुलाम का किरदार निभाने वाले नमाशी चक्रवर्ती अपनी काबिलियत साबित करते हैं। उनका खतरनाक अंदाज घृणा पैदा करता है। खास आकर्षण सरदार हुसैनी की भूमिका में शाश्‍वत चटर्जी रहे।

    द बंगाल फाइल्स निश्चित रूप से इतिहास की त्रासदी को दर्शाती है लेकिन उस प्रभाव को पूरी तरह उकेर नहीं पाती है।

    यह भी पढ़ें- 'जिस तरह से वहां पर हिंदुओं को...',Mithun Chakraborty ने द बंगाल फाइल्स के विवाद पर दिया बड़ा बयान

    comedy show banner
    comedy show banner