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The Archies Review: नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई 'द आर्चीज', कैसा रहा सुहाना खान, अगस्त्य नंदा और खुशी कपूर का डेब्यू?

The Archies Review द आर्चीज पीरियड फिल्म है जिसकी कहानी 1960 के दौर में दिखाई गई है। जोया अख्तर निर्देशित फिल्म से शाह रुख खान की बेटी सुहाना खान बोनी कपूर-श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर और अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा ने अभिनय की पारी शुरू की है। आर्चीज कॉमिक्स से प्रेरित फिल्म नेटफ्लिक्स पर गुरुवार से स्ट्रीम हो चुकी है।

By Jagran NewsEdited By: Manoj VashisthPublished: Thu, 07 Dec 2023 03:26 PM (IST)Updated: Thu, 07 Dec 2023 03:51 PM (IST)
द आर्चीज नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गयी है। फोटो- इंस्टाग्राम

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्‍म द आर्चीज अपनी घोषणा के बाद ही सुर्खियों में बनी रही। वजह रही इस फिल्‍म की स्‍टार कास्‍ट। तीन स्‍टार किड के एक साथ फिल्‍म में आने से इसके लिए कौतूहल होना स्‍वाभाविक है।

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बालीवुड के बादशाह खान शाह रुख खान की बेटी सुहाना खान, हिंदी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्‍चन के नाती अगस्‍त्‍य नंदा, निर्माता बोनी कपूर और उनकी दूसरी दिवंगत पत्‍नी और सुपरस्‍टार श्रीदेवी की छोटी बेटी खुशी कपूर ने द आर्चीज से अभिनय में पदार्पण किया है। यह फिल्‍म प्रख्‍यात अमेरिकी कामिक्‍स आर्चीज के पात्रों पर आधारित है।

क्या है द आर्चीज की कहानी?

कहानी पिछली सदी के छठे दशक में सेट है। आरंभ आर्ची एंड्रयूज (अगस्त्य नंदा) द्वारा काल्‍पनिक श‍हर रिवरडेल का इतिहास बताने से होता है।

उत्‍तर भारत में स्थित इस शहर में एंग्‍लो इंडियंस की तादाद ज्‍यादा है। यहीं पर आर्चीस समेत सात दोस्‍तों बेट्टी (खुशी कपूर), वेरोनिका (सुहाना खान), जुगहेड (मिहिर आहूजा), रेगी (वेदांग रैना), एथेल (डॉट) और डिल्टन (युवराज मेंडा) का समूह है, जो मस्‍ती मजाक के साथ अपने भविष्‍य के सपने बुन रहे हैं।

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वेरोनिका लंदन से वापस आई है, जबकि आर्ची लंदन जाने की योजना बना रहा है। बेट्टी और वेरोनिका बेस्‍ट फ्रेंड हैं। दोनों ही आर्ची को पसंद करती हैं। इस शहर में स्थित ग्रीन पार्क सिर्फ शहर का दिल नहीं है, बल्कि रिवरडेल का इतिहास भी है।

ग्रीन पार्क के अस्तित्‍व पर खतरा मंडराने लगता है। कारण वेरोनिका के अमीर व्‍यवसायी पिता वहां पर होटल बनाना चाहते हैं। यह बात इन सात दोस्‍तों को रास नहीं आती। वह पार्क को बचाने की मुहिम में जुट जाते हैं। इसमें उनके साथ वेरोनिका भी आती है।

कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?

आयशा देवित्रे ढिल्‍लन, रीमा कागती और जोया अख्‍तर द्वारा लिखी कहानी साधारण है। इससे उन लोगों का काफी जुड़ाव हो सकता है, जो पिछली सदी के छठे दशक में किशोरावस्‍था में रहे होंगे। उस समय ना तो मोबाइल फोन थे, ना इंटरनेट मीडिया। ऐसे में दोस्‍तों साथ पिकनिक पर जाना, कैफे में बैठकर गप्‍पें मारना और पार्क में समय बिताना, जैसी चीजें पुरानी यादों को ताजा करेंगी।

उस दौर के परिवेश, रहन-सहन, खान पान और तहजीब पर जोया ने बहुत बारीकी से काम किया है। मुद्दा भी पर्यावरण चुना है, जो प्रांसगिक है। हालांकि, इस मुद्दे की गहराई में लेखक नहीं गए हैं। इसी तरह आर्ची कहता है कि उसे वेरोनिका और बेट्टी दोनों पसंद हैं। उस प्रसंग को थोड़ा विस्‍तार दिया जा सकता था, लेकिन लेखकों ने उसे हल्‍के-फुल्‍के अंदाज में ही निपटा दिया। अंग्रेजी में कई जगह संवाद हैं।

चूंकि यह म्‍यूजिकल फिल्‍म है, लिहाजा गीत-संगीत कहानी का अहम हिस्‍सा है। शंकर-एहसान-लॉय, अंकुर तिवारी, द आइलैंडर्स और डॉट (अदिति सहगल) के ट्रैक थिरकाने वाले हैं, खासकर 'ढिशूम ढिशूम,' 'सुनोह,' और 'वा वा वूम।' गानों में बास्‍को सीजर और गणेश हेगड़े की कोरियोग्राफी मुख्य आकर्षण है, जो दृश्‍य संरचना को मोहक बनाती है।

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कैसा है नये कलाकारों का अभिनय?

फिल्‍म का खास आकर्षण है कलाकारों के बीच की केमिस्‍ट्री। वेरोनिका के तौर पर सुहाना खान काफी चुलबुली, भोली और मासूम लगी हैं। खुशी कपूर ने बेट्टी की सादगी और विनम्रता को बहुत सहजता से जीया है। आर्ची बने अगस्‍त्‍य नंदा का अभिनय सराहनीय है।

अपने नाना अमिताभ की तरह वह भी अभिनय के साथ डांस में लुभाते हैं। मिहिर आहूजा का अभिनय प्रशंसनीय है। वेदांग अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। हालांकि, डॉट और युवराज की भूमिकाएं सीमित हैं, फिर भी वे अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं।

आधुनिकता की दौड़ में अब लोगों के पास समय की कमी का रोना है, पर जीवन में खुशी तब थी, जब यह आधुनिक सुख सुविधाएं नहीं थी। उसे फिल्‍म में बहुत खूबसूरती से रेखांकित किया गया है। किताबों को हमारी सच्‍ची दोस्‍त कहा जाता है। फिल्म में डिल्‍टन का किरदार कई प्रख्‍यात लोगों के कोड बोलता है।

यह मार्गदर्शन करने के साथ किताबों की अहमियत को भी रेखांकित करती है, जो कहीं ना कहीं आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट रही हैं। लोग अब इंटरनेट पर संक्षिप्‍त जानकारी पढ़कर ही तृप्‍त हो रहे हैं। यह फिल्‍म इस दृष्टिकोण से भी देखी जानी चाहिए कि इस दौड़ में हम किन चीजों को खो रहे हैं।


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