Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Superboys of Malegaon Review: आउटसाइडर के एहसास को दर्शाती फिल्म,आम ब्‍वॉयज के सुपर बनने की कहानी

    फिल्म इंडस्ट्री में कुछ कर बड़ा करने का सपना लेकर लाखों लोग मायानगरी मुंबई में आते हैं लेकिन उनमें से कुछ ही सफल हो पाते हैं। ऐसी ही एक फिल्म लेकर हाजिर हुई हैं निर्देशक रीमा कागती जो आम लोगों के सपनों के बारे में बताती है। इस फिल्म में एक्टर्स ने ये भी बताया है कि जिनका कोई गुरु नहीं होता वह इंडस्ट्री में कैसा महसूस करते हैं।

    By Smita Srivastava Edited By: Tanya Arora Updated: Thu, 27 Feb 2025 09:49 PM (IST)
    Hero Image
    सुपरब्वॉयज ऑफ मालेगांव रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्‍तव, मुंबई।  संसाधनों की कमी, इंडस्‍ट्री में जान पहचान न होना, रोल पाने के लिए संघर्ष, मुंबई न पहुंच पाने की जैसी कई वजहों से बहुत सारे लोगों की सिनेमा बनाने या उसमें काम करने की ख्‍वाहिश अधूरी रह जाती है। वहीं कुछ लोग तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह फिल्‍म नाशिक जिले के छोटे से शहर मालेगांव में रहने वाले नासिर शेख और उनके दोस्‍तों की कहानी हैं, जिन्‍होंने पिछली सदी के आखिरी दशक में अपने दोस्‍तों के साथ मिलकर सीमित संसाधनों में ही मालेगांव के शोले, मालेगांव का सुपरमैन जैसी फिल्‍में बनाकर सुर्खिंयां बटोरी। इन पर साल 2012 में आई फायजा अहमद खान की डॉक्यूमेंट्री ‘सुपरमैन आफ मालेगांव’ को आधार बनाकर रीमा कागती ने फिल्म ‘सुपरब्‍वायज आफ मालेगांव’ बनाई है।

    छोटे से गांव के दोस्तों के सपनों के कहानी

    कहानी साल 1997 से आरंभ होती है। शुरुआत में हम नासिर शेख (आदर्श गौरव) और उनके दोस्‍तों से परिचित होते हैं। इनमें शफीक (शशांक अरोड़ा) की नासिर से गहरी दोस्‍ती है। फरोग (विनीत कुमार सिंह) लेखक हैं। उसका मानना है कि लेखक फिल्‍म का बाप होता है। बाकी दोस्‍त छोटे मोटे काम करते हैं। नासिर का कुछ बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्‍मों के सीन जोड़कर फिल्‍म बनाने का प्रयोग कामयाब रहता है।

    यह भी पढ़ें: Kaushaljis VS Kaushal Review: माता-पिता के दर्द को न समझने का होगा पछतावा, झकझोर देगी कहानी, पढ़ें रिव्यू

    पुलिस उसे पायरेसी बताती है और उनका छोटे से वीडियो से पार्लर बंद हो जाता है। फिर वह अपनी फिल्‍म बनाने का निर्णय लेता है। उसमें उसके सारे दोस्‍त साथ देते हैं। रिलीज होने पर फिल्‍म सफल होती है। नासिर के हौंसले बुलंद होते हैं। कामयाबी मिलने के बाद नासिर और उनके दोस्‍तों के बीच दरार और गलतफहमियां पैदा होती हैं। फिर शफीक की बीमारी और उसका सपना पूरा करने की चाहत उन्‍हें एकजुट करती है। इस बीच नासिर की प्रेम कहानी भी आती है।

    superboys of malegaon

    Photo Credit- Youtube

    रीमा कागती ने दिल में दबी हर ख्वाहिश को दिखाया

    यह फिल्‍म नासिर शेख के सफर के साथ सिनेमा में करियर बनाने को लेकर संघर्ष, अधूरी मुहब्‍बत, दोस्‍ती के साथ कामयाबी के बाद होने वाले टकराव, गलतफहमियां और एकजुट होने जैसे सभी मसाले मौजूद हैं जो अच्‍छी कहानी के लिए जरूरी हैं। साइकिल को ट्रॉली बनाकर शूट करने का सीन फिल्‍ममेकिंग के प्रति नासिर के प्‍यार को खूबसूरती से दिखाता है। फिल्‍ममेकिंग की प्रक्रिया के बीच लेखक वरूण ग्रोवर लेखक की अहमियत और दर्द को लेखक बाप होता है, ओरिजनल का मायने भी जानता है तू, वाहियात काम का टाइम नहीं है मेरे पास ... जैसे संवादों से संवेदनशील तरीके से रेखांकित करते हैं। उनके लिखे कई संवाद चुटकीले हैं।

    फिल्‍म गोल्‍ड का निर्देशन करने के करीब सात साल बाद रीमा कागती ने बड़े परदे के लिए सुपरब्‍वॉयज आफ मालेगांव का निर्देशन किया है। वह फिल्‍ममेकिंग की कठिनाइयों, अभिनय को लेकर दिल में दबी ख्‍वाहिशों, सिनेमा से लगाव और फिल्‍मी असफलता के दर्द को किरदारों के जरिए दर्शाती हैं। इस उतार चढ़ाव भरे सफर में जीवन में आई तमाम कठिनाइयां दिखती हैं, लेकिन गहराई से झकझोरती नहीं हैं।

    आउटसाइडर की फीलिंग को भी दर्शाया 

    फिल्‍म द व्‍हाइट टाइगर से सुर्खियों में आए आदर्श गौरव ने नासिर शेख की जिद, जुनून और समर्पण को शिद्दत से आत्‍मसात किया है। शफीक की भूमिका में शशांक अरोड़ा के हिस्‍से में शुरुआत में कुछ खास नजर नहीं आता है। बाद में उनका पात्र ही कहानी का टर्निंग प्‍वाइंट बनता है। सच्‍चे दोस्‍त से लेकर दिल में दबे अभिनेता को दर्शाने की इस भूमिका में उनसे बेहतर कोई नहीं हो सकता था। लेखक की भूमिका में विनीत कुमार सिंह का अभिनय शानदार है। मंजरी पुपाला का काम उल्‍लेखनीय है।

    उनके अलावा मुस्‍कान जाफरी, ऋद्धि कुमार, अनुज सिंह दुहन, साकिब अयूब जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों साथ न्‍याय किया है। वास्‍तव में सुपरब्‍वायज आफ मालेगांव उन लोगों की कहानी है जो सिस्टम से बाहर महसूस करते हैं और कुछ करने की चाहत रखते हैं इसलिए अपना खुद का सिस्टम बनाते हैं। उनकी कहानी प्रेरक है यही वजह है कि मेनस्ट्रीम सिनेमा ने उन पर ही फिल्म बना डाली।

    यह भी पढ़ें: Mere Husband Ki Biwi Review: कॉमेडी पर कितनी खरी उतरी मेरे हसबैंड की बीवी? रिव्यू पढ़ने से पहले न बुक करें टिकट