Kaushaljis VS Kaushal Review: माता-पिता के दर्द को न समझने का होगा पछतावा, झकझोर देगी कहानी, पढ़ें रिव्यू
अक्सर बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो वह माता-पिता को ग्रांटेड लेने लगते हैं। कई पैरेंट बच्चों की आधुनिक सोच के हिसाब से चलने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने बच्चों की परवरिश के चक्कर में उनकी ख्वाहिशें दबकर रह जाती हैं। ऐसे ही माता-पिता की कहानी को दर्शाती है फिल्म कौशलजीस वर्सेज कौशल। क्यों इस फिल्म को देखकर आप रो देंगे यहां पर पढ़ें रिव्यू

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। पारिवारिक दायित्वों के बीच अक्सर माता पिता के शौक दब जाते हैं। बच्चे जब अपनी जिंदगी में मशगूल हो जाते हैं तो उनकी जिंदगी में एक खालीपन से आ जाता है। वहीं माता पिता की तमाम मिन्नतों के बाद होली दीवाली जैसे त्योहारों पर घर आने वाले बच्चे आसानी से कह देते हैं कि घर के क्लेश भरे माहौल की वजह से वह नहीं आते।
वह अपनी पीढ़ी का उदाहरण देते हैं कि अगर एकदूसरे के साथ खुश नहीं हैं तो मूव ऑन यानी उस रिश्ते को छोड़कर आगे बढ़ जाओ। कौशलीजीस वर्सेस कौशल दो अलग-अलग पीढ़ियों के जरिए रिश्तों में आई इसी दूरी को खंगालने का काम करती है।
क्या है कौशलीजीस वर्सेज कौशल की कहानी?
नोएडा में कार्यरत युग (पावेल गुलाटी) अपनी जिंदगी में मशगूल है। वह अपने बॉस (आशीष चौधरी) के स्टाइल से काफी प्रभावित रहता है। इत्र के लिए मशहूर शहर कन्नौज में रहने वाले उसके पिता साहिल (आशुतोष राणा) अकाउंटेंट हैं जो अमीर खुसरो को अपना गुरु मानते हैं। पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन में कव्वाल बनने का शौक उनका अधूरा रह जाता है। मां संगीता (शीबा चड्ढा) को इत्र बनाने का शौक है जो परिवार की प्राथमिकताओं की वजह से दब गया है।
युग की बहन रीत (दीक्षा जोशी ) एनजीओ में काम करती है। न्यूयॉर्क से आई और ऑनलाइन बिजनेस करने वाली कियारा (ईशा तलवार) से युग प्यार करता है। टूटे परिवार से आई ईशा ऐसे परिवार में शादी करना चाहती है जो टूटा न हो। युग का परिवार उसे पसंद आता है, लेकिन उसके माता-पिता आधुनिक सोच को अपनाते हुए शादी के 26 साल बाद तलाक लेने का फैसला करते हैं। युग और रीत इस रिश्ते को बचा पाएंगे कहानी इस संबंध में है।
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अलग दो पीढ़ियों के नजरिए को दर्शाती है कहानी
फिल्म में एक संवाद है कि रिश्तों का मतलब खामियों को स्वीकार करना होता है। कौशलीजीस वर्सेस कौशल की लेखक और निर्देशक सीमा देसाई ने यही बात कहानी के जरिए कही है। उन्होंने दो अलग अलग पीढ़ी के जरिए रिश्तों में दूरी, सोच में अंतर और वक्त के साथ रिश्तों में आने वाले बदलावों के जरिए रिश्तों को बनाए रखने के कौशल के मुद्दे पर बारीकी से काम किया है।
उन्होंने संवेदनशीलता के साथ मुद्दे को उठाया है। युग और रीत के जरिए उन्होंने बताने की कोशिश की है कि अक्सर अपने करियर के लिए बच्चे दूसरे शहरों को पलायन कर जाते हैं पर वे यह भूल लाते हैं कि उनके माता पिता के सपने भी रहे होंगे। फिल्म के क्लाइमेक्स में अंततः युग को अहसास होता है कि माता पिता का झगड़ा वास्तव में इत्र या कव्वाली के बारे में नहीं था बल्कि बच्चों के बड़े होने और दूर चले जाने के कारण पीछे छूट गए खालीपन के बारे में था।
यह पहलू झकझोरता है। यह स्मरण कराता है कि काम और घर के बीच संतुलन कितना जरूरी है। बहरहाल, अगर संवादों पर थोड़ा ओर गहनता से काम होता यह काफी गहराई तक दिलों को स्पर्श करती। एक दृश्य में रीत कहती है कि उसने मल्टी नेशनल कंपनी का प्रस्ताव छोड़कर एनजीओ (गैरसरकारी संगठन) में काम करना मंजूर किया पर उसकी वजह स्पष्ट नहीं की। इसी तरह कोर्ट रूम में जब साहिल और संगीता तलाक लेने पहुंचते हैं तो उस दृश्य पर थोड़ा और काम की कमी महसूस होती है।
रीत और युग के बीच भाई बहन के रिश्ते में भावनात्मक गहराई का अभाव भी दिखता है। होली खेलने जैसे दृश्य अब लगभग फिल्मों से गायब हो रहे हैं यहां पर रंगों की उस दुनिया को देखना अच्छा लगता है। फिल्म में कव्वाली का लुत्फ भी है, पर बहुत प्रभावशाली नहीं बन पाई है।
स्टारकास्ट की परफॉर्मेंस जीत लेगी दिल
अभिनय में पारंगत आशुतोष राणा अदायगी के हर रंग में अपना प्रभाव छोड़ते हैं, चाहे वह पत्नी के साथ तकरार का दृश्य हो या बच्चों के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने का या कोई भावनात्मक दृश्य। वह साहिल के मनोभावों को बहुत सहजता से आत्मसात करते हैं। घरेलू जिम्मेदारियों में सिमटी मां की भूमिका में शीबा चड्ढा जंचती हैं। उनकी बाडी लैंग्वेज कई बार बिना संवाद के बहुत कुछ कह जाती है।
आशुतोष के साथ उनकी केमिस्ट्री जमती है। युग की भूमिका में पावेल गुलाटी के हिस्से में रोमांस से लेकर भावनात्मक पहलू दर्शाने के कई दृश्य आए हैं। हालांकि उन्हें भावनात्मक दृश्यों में गहराई लाने की आवश्यकता है। ईशा तलवार अपने किरदार में प्रभाव छोड़ती हैं। सहयोगी भूमिकाओं में आए कलाकार बृजेंद्र काला, ग्रुशा कपूर, दीक्षा जोशी सामान्य हैं। इनके पात्रों को थोड़ा सशक्त बनाने की जरूरत थी।
आधुनिक रिश्तों, वैवाहिक जटिलताओं और मुरझाते रिश्तों की वजहों को खंगालने के साथ यह रिश्तों को दूसरा मौका देने का संदेश बखूबी दे जाती है।
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