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    श्रीराम की कहानी लिखकर रावण क्यों बने Ashutosh Rana? लवयापा एक्टर की कही ये बात छू लेगी दिल

    आशुतोष राणा के दमदार डायलॉग्स हो या फिर उनकी लिखी हुई किताब उनका हर शब्द सीधा दिलों को छू जाता है। नेगेटिव हो या पॉजिटिव उनके किरदार को देख तालियां न बजे ऐसा हो ही नहीं सकता। हाल ही में फिल्म लवयापा में नजर आए अभिनेता ने बताया कि उन्होंने राम राज्य जैसी किताब लिखकर पर्दे पर जब रावण का किरदार निभाया तो उन्हें क्या एहसास हुआ।

    By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Fri, 07 Feb 2025 08:34 PM (IST)
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    आशुतोष राणा ने भगवान राम न बनकर रावण प्ले करने के पीछे की बताई वजह/ फोटो- Instagram

    दीपेश पांडे, मुंबई। तीन दशकों से हिंदी सिनेमा में सक्रिय अभिनेता आशुतोष राणा इन दिनों अपने अभिनय के साथ-साथ पौराणिक कविताओं और श्लोकों के पाठ को लेकर भी खूब चर्चा में रहते हैं। आज प्रदर्शित हो रही फिल्म लवयापा में उन्होंने अभिनेत्री खुशी कपूर के पिता की भूमिका निभाई है। इसके अलावा इन दिनों अलग-अलग शहरों में नाटक हमारे राम भी कर रहे हैं, जिसमें वह रावण की भूमिका निभाते हैं। आशुतोष से उनकी फिल्म, नाटक और आध्यात्मिक सफर पर बातचीत:

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    प्रश्न: फिल्म के एक संवाद में आपका पात्र कहता है कि मेरे घर में मैं जो चाहता हूं वही होता है, क्या यह बात निजी जीवन में भी लागू होती है ?

    उत्तर: शादी स्त्री और पुरुष दो लोगों के बीच होती है। श्रीमान का मतलब होता है कि वह व्यक्ति जितना मान स्वयं का कर रहा है, उतना ही मान अपनी धर्मपत्नी का भी करे। मैं इसी फलसफे में विश्वास रखता हूं और जितना सम्मान अपना करता हूं उतना ही रेणुका (पत्नी रेणुका शहाणे) जी का भी करता हूं। गृहस्थी का मतलब ही होता है, जहां पहुंचकर आपकी हस्ती समाप्त हो जाए।

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    प्रश्न: शुरुआती दौर में उपलब्धियां अर्जित करने संग आप में भी अहंकार आया होगा, उसे कैसे नियंत्रित किया?

    उत्तर: अहंकार को कोई समाप्त नहीं कर सकता है, बस समझ सकते हैं। इसको समझ के ही साधा जा सकता है। शुरुआती दौर में इच्छाएं बहुत बड़ी होती हैं। बतौर कलाकार आप पूरी फिल्म करना चाहते हैं और फिल्मकार आपको सिर्फ एक सीन देता है तो वहां आपका अहंकार टूटता है।

    ashutosh rana

    Photo Credit: Instagram 

    प्रश्न: फिल्म के विषय को देखें तो वर्तमान में तकनीकी और आधुनिकता का रिश्तों पर क्या प्रभाव देखते हैं?

    उत्तर: पहले हम व्यक्तियों से प्रेम करते थे, अब वस्तुओं से प्रेम करते हैं। अब लोग कहते हैं कि मुझे फलां व्यक्ति पसंद है, लेकिन मुझे आईफोन बहुत प्रिय है। लोग अपनी वर्चुअल रियलिटी को ही वास्तविकता समझने लगे हैं। आज का पूरा दौर ही गैजेट्स पर निर्भर हो गया है।

    प्रश्न: इतनी फिल्मों व अनुभव के बाद भी आपने कहा था कि आपको आडिशन देने में कोई झिझक नहीं होती है?

    उत्तर: मैं जिन फिल्मकारों के काम को जानता हूं, उनकी फिल्म के बारे में ऐसा है। लेकिन जिस फिल्मकार ने एक भी फिल्म नहीं बनाई है, मेरी एक भी फिल्म नहीं देखी, वो आकर कहे कि आप आडिशन दे दो, तो मैं ऑडिशन क्यों दूं फिर?

    Photo Credit: Instagram

    प्रश्न: सिनेमा में काम करते हुए आध्यात्म से भी प्रगाढ़ जुड़ाव बनाए रखना क्या आसान है?

    उत्तर: आध्यात्म व्यक्ति का मूल होता है और पेशा व्यवसाय होता है। मेरी शिक्षा, पेशा, शौक और जुनून सब एक्टिंग है, लेकिन मेरा अस्तित्व सिर्फ एक्टिंग से ही तो नहीं है न ? आध्यात्म इंसान की जड़ होती है, बाकी पेशा, शौक और जुनून उसके पत्ते, फूल और फल हैं।

    प्रश्न: छात्र राजनीति से आपका लंबा जुड़ाव रहा, राजनीति में आने के प्रस्ताव तो अब भी आते होंगे? 

    उत्तर: खूब आते हैं, लेकिन अभी सिनेमा से मेरा मन नहीं भरा। जिस पल मुझे लगेगा कि अब फिल्म करना बंद करो, उस पल किसी और चीज के बारे में विचार करेंगे। अभिनय और राजनीति दोनों एक साथ नहीं हो सकते हैं, क्योंकि दोनों ही पूरा समय मांगते हैं।

    प्रश्न: आप कथा राम की बताते हैं और नाटक में भूमिका रावण की निभाते हैं, कभी मन में दो व्यक्तित्व के बीच अंर्तद्वंद नहीं होता ?

    उत्तर: रावण की भूमिका अच्छी तरह से वही व्यक्ति निभा सकता है, जो राम को जानता हो मैंने रामराज्य किताब लिखी, क्योंकि मैं उनका प्रेमी हूं।

    Photo Credit: Instagram

    लोग दोस्तों के गुण तो कम ही देखते हैं, लेकिन जब शत्रु को देखते हैं तो उनके अवगुण भी गुण ही दिखते हैं। रावण की भूमिका निभाने के पीछे यही है कि जब रावण की दृष्टि से राम को देखेंगे, तो आप राम के परम प्रेम में पड़ जाएंगे।

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