Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review: मनोज बाजपेयी ने दमदार तरीके से दिखाया सोलंकी का सफर, झकझोरती है कहानी
Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review फिल्म एक सत्य घटना से प्रेरित है जिसमें एक आध्यात्मिक गुरु पर एक बच्ची संग दुष्कर्म का गंभीर आरोप लगा था। मनोज बाजपेयी इस बच्ची का केस लड़ने वाले वकील के किरदार में हैं।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review: फिल्म के क्लाइमैक्स में अदालत में आखिरी जिरह के समापन के समय पीसी सोलंकी (मनोज बाजपेयी) रामायण के प्रसंग को वर्णन करते हुए कहते हैं:
शिवजी माता पार्वती से कहते हैं कि इस संसार में कुकर्म को तीन भागों में बांटा गया है। पहला पाप, जो आदमी जाने या अनजाने में करता है। उसका निवारण प्रायश्चित या माफी मांग कर हो सकता है।
दूसरा कुकर्म अति पाप के रूप में जाना जाता है जैसे हत्या, अपहरण और जघन्य अपराध। उनकी माफी कुछ हद तक संभव है। मगर तीसरा कुकर्म महापाप के रूप में जाना जाता है, जिसकी कोई माफी नहीं। इस पर पावर्ती जी ने अंचभे से शिव जी से पूछा, प्रभु रावण ने सीता जी का अपहरण किया था। वह तो अति पाप के रूप में जाना जाना चाहिए।
आपने महापाप क्यों माना? शिव जी मंद-मंद मुस्काए और कहा कि जिस पाप का प्रभाव पूरे संसार की मानवता और प्रभुता पर सदियों तक रहता है, वह महापाप के अंतर्गत आता है। मैं रावण को माफ कर देता, अगर उसने रावण बनकर सीता का अपहरण किया होता, लेकिन उसने साधु का वेष धारण किया हुआ था, जिसका प्रभाव पूरे संसार के साधुत्व और सनातन पर सदियों तक रहेगा, जिसकी कोई माफी नहीं है।
सालंकी आगे कहते हैं। इसने (तथाकथित धर्मगुरु) गुरुभक्ति के साथ विश्वासघात किया है। मासूम बच्चों साथ विश्वासघात किया है। इसने मेरे और हम सबके महादेव के साथ विश्वासघात किया है। उनके नाम का इस्तेमाल करके जघन्य अपराध किया है। उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए।
दरअसल, मनोज बाजपेयी की यह फिल्म एक सत्य घटना से प्रेरित है, जिसमें उनका किरदार प्रख्यात वकील पीसी सोलंकी से प्रेरित है। सोलंकी ने यह मुकदमा एक धर्मगुरु के खिलाफ लड़ा था, जिस पर नाबालिग ने यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। करीब पांच साल चले इस मुकदमे में धर्मगुरु को उम्रकैद हुई।
तथाकथित ‘भक्तों के भगवान’ और ‘कानून के मुजरिम’ की पैरवी कई दिग्गज वकीलों ने की थी। बाबा पर पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) लगाया गया था। यह बच्चों को यौन-अपराधों के प्रति संरक्षण देने हेतु भारत सरकार द्वारा पारित किया गया अधिनियम है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर उम्रकैद की सजा मिलती है।
सिर्फ एक बंदा काफी है- क्या है फिल्म की कहानी?
मामला साल 2013 का था। कहानी का आरंभ भी वहीं से होती है। माता-पिता अपनी नाबालिग बेटी नू (अद्रिजा सिन्हा) को लेकर दिल्ली के कमलानगर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने जाते हैं। वह अपनी आपबीती बताते हुए रो पड़ती है। दरअसल, यह शिकायत नामी गिरामी बाबा (सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ) के खिलाफ दुष्कर्म को लेकर होती है। पुलिस कई धाराओं में मुकदमा दर्ज करती है।
Photo- screenshot trailer/YouTube
यह सभी धाराएं संगीन अपराध की श्रेणी में आती हैं। घटना जोधपुर में घटित थी तो आगे की जांच जोधपुर पुलिस के हवाले कर दी जाती है। मामले के सुर्खियों में आते ही बाबा के समर्थक हर वो कोशिश करते हैं, जिससे उनके पूज्य बाबा की छवि पर कोई दाग ना लगे।
मामले की पैरवी के लिए पुलिस ईमानदार वकील सोलंकी का नाम सुझाती है। माता-पिता की खस्ता आर्थिक हालत को देखते हुए सोलंकी फीस के जवाब में बहुत सादगी से कहते हैं ‘गुड़िया की स्माइल’। वह बिटिया को न्याय दिलाने का बीड़ा उठा लेते हैं। साथ ही नू से कहते हैं कि हिम्मत रखनी पड़ेगी, बेटे। अदालत में तो पता नहीं क्या-क्या पूछेंगे।
सिर्फ एक बंदा काफी है- कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?
इस फिल्म को बनाने के लिए निर्माता विनोद भानुशाली के साहस की प्रशंसा करनी होगी। उन्होंने बहुत साहिसक विषय को चुना है। यह अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत्र बनेगी। लेखक दीपक किंगरानी की चुस्त पटकथा और अपूर्व सिंह कार्की के निर्देशन की वजह से कहानी में कसाव है।
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उन्होंने कोर्टरूम ड्रामा को मेलोड्रामा नहीं बनने दिया है। यहां पर बहस के दौरान कोई चीखना, चिल्लाना नहीं है। अपूर्व ने फिल्म को रियलिस्टिक लोकेशन में शूट करके इसे विश्वसनीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिल्म की खास बात यह है कि इसे सोलंकी के नजरिए से बनाया गया है। पोक्सो एक्ट के जानकार सोलंकी की मुस्तैदी और हाजिरजवाबी आपको आकर्षित करेगी।
यहां पर दिग्गज वकीलों के नाम नहीं लिए गए हैं, लेकिन उनकी वेषभूषा, चालढाल और उनके आभामंडल से उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। फिल्म में कई ऐसे दृश्य आते हैं जो आपको द्रवित कर जाते हैं।
सिर्फ एक बंदा काफी है- कैसा है कलाकारों का अभिनय?
फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' में सोलंकी के रूप में मनोज बाजपेयी फिर से अपनी प्रतिभा के नए पहलू से परिचित करवाते हैं। हिंदी सिनेमा की इस अनोखी प्रतिभा की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वे अपने हर किरदार में गहराई से रच-बस जाते हैं और उसे विश्वसनीय बना देते है। संबंधित किरदार में किसी और की कल्पना नहीं की जा सकती।
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मनोज बाजपेयी ने सोलंकी के सफर को प्रभावशाली तरीके से पेश किया है। एक दृश्य में बड़े-बड़े वकीलों के मुरीद सोलंकी जब उन्हें सामने पाते हैं तो उनके प्रति उनका अनुराग स्क्रीन पर देखते ही बनता है। उन्होंने राजस्थानी उच्चारण को पूरी फिल्म में कायम रखा है। वहीं, बचाव पक्ष के वकील के रूप में विपिन शर्मा का शातिराना अंदाज तारीफे काबिल है।
बाबा की भूमिका में सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ के पास संवाद कम है, लेकिन भाव-भंगिमाएं ज्यादा हैं। उसे उन्होंने बखूबी उकेरा है। नाबालिग लड़की की पीड़ा, भावनाओं और न्याय पाने की ललक को अद्रिजा सिन्हा ने बहुत खूबसूरती से चित्रित किया है। यह फिल्म जरूरी संदेश के साथ यह बताती है कि अगर इंसान ठान ले तो बड़े-बड़े सूरमाओं को आईना दिखाने के लिए सिर्फ एक बंदा काफी है।
कलाकार: मनोज बाजपेयी, विपिन शर्मा, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, अद्रिजा सिन्हा आदि।
निर्देशक: अपूर्व सिंह कार्की
अवधि: दो घंटा 12 मिनट
रिलीज प्लेटफार्म: जी5
रेटिंग: चार