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    Nishaanchi Review: गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसी फिल्म बनाने में चूक गए Anurag Kashyap, कर दिया निशांची का बेड़ा गर्क

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 02:00 PM (IST)

    अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित मच अवेटेड गैंगस्टर ड्रामा फिल्म निशांची (Nishaanchi Review) 19 सितंबर 2025 को सिल्वर स्क्रीन पर आ गई है। इस फिल्म से शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के पोते ऐश्वर्या ठाकरे अपने करियर की शुरुआत कर रहे हैं। फिल्म में मोनिका पंवार वेदिका पिंटो कुमुद मिश्रा और मोहम्मद जीशान अय्यूब भी मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म कैसी है जानने के लिए पढ़े रिव्यू।

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    कहानी में कहां मात खा गई निशांची (फोटो-जागरण ऑनलाइन)

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्‍ममेकर अनुराग कश्‍यप की सर्वाधिक चर्चित फिल्‍म 'गैंग्‍स आफ वासेपुर' की तरह निशांची में भी देसी भाषा, गाली-ग्लौज, प्यार, रोमांस, लड़ाई-झगड़ा, पालिटिक्स और बदला जैसे सभी मसाले हैं, लेकिन यहां पर पात्रों को गढ़ने और कहानी को चटक बनाने में इस बार उनका निशाना चूक गया है।

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    क्या है निशांची की कहानी?

    कहानी का आरंभ एक बैंक की डकैती से होता है। बबलू (ऐश्‍वर्य ठाकरे) अपने जुड़वा भाई डबलू (ऐश्‍वर्य ठाकरे की दोहरी भूमिका) और रिंकू (वेदिका पिंटो) की मदद से डकैती डालने जाता है, लेकिन पुलिस पहुंच जाती है। रिंकू और डबलू वहां से भागने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन बबलू पुलिस के हत्‍थे चढ़ जाता है। थाना अध्‍यक्ष कमाल (मोहम्मद जीशान अय्यूब) यह जानना चाहता है कि उसका साथी कौन था। कमाल उसकी मां मंजरी (मोनिका पंवार) से साथी के बारे में बताने को कहता है।

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    बबलू अपने मुंहबोले चाचा अंबिका प्रसाद (कुमुद मिश्रा) के लिए काम करता है। आखिरकार उसे सात साल जेल की सजा होती है। वहां से बबलू और डबलू की जिंदगी की परतें खुलती हैं। बबलू के पिता जबरदस्त (विनीत कुमार सिंह) अखाड़े में पहलवानी करते हैं। भाई भतीजावाद के चलते उनका सपना राज्‍य स्‍तर पर खेलने का अधूरा रह जाता है। प्रतिशोध में वह हत्‍या कर देता है। वह जेल भेज दिया जाता है।

    रिंकू को पता चल जाएगी सच्चाई?

    इस बीच अंबिका का दिल मंजरी पर आता है, लेकिन वह उसे हाथ नहीं रखने देती। अंबिका के इशारे पर जबरदस्‍त की जेल में हत्‍या हो जाती है। वहां से कहानी बबलू के जेल से वापस आने, रिंकू के साथ पहली नजर का प्‍यार होने और वापस जेल जाने और सजा बढ़ने जैसे कई पहलुओं को समेटती है। इस बीच रिंकू को पता चलता है कि जिस बबलू को प्‍यार करती है, वही उसके पिता का हत्‍यारा होता है। अब बबलू जब जेल से आएगा उसे सच पता चलेगा तो क्‍या होगा उसके लिए निशांची के अगले पार्ट की प्रतीक्षा करनी होगी।

    कहानी में खटकती हैं कुछ चीजें

    अनुराग ने अपने साक्षात्‍कार में क‍हा था कि पिछले नौ साल से यह कहानी उनके पास थी, उसके बावजूद पात्रों को समुचित तरीके से स्‍थापित नहीं किया गया है। मंजरी जिला और राज्‍य स्‍तर पर खेल चुकी है, लेकिन करियर को आगे बढ़ाने में उसकी कहीं दिलचस्‍पी नहीं दिखी न ही नौकरी करने में। पहलवान जबरदस्‍त मौका न मिलने पर अखाड़ा बदलने की क्‍यों नहीं सोचता? वह हत्‍या के लिए कैसे तैयार हो जाता है। अखाड़े के मुखिया भोला पहलवान (राजेश कुमार) में अपने दामाद की हत्‍या के बाद जबरदस्‍त के प्रति कोई आक्रोश या प्रतिशोध नहीं दिखता। वह उसके बेटे को लेकर बहुत सहज नजर आते हैं।

    बबलू का बचपन में हत्‍या कर देना चर्चा का विषय नहीं बनता। यह खटकता है। मंजरी अपने बच्‍चों को खेल से जोड़ने की कोई कोशिश क्‍यों नहीं करती? कहानी 2006 में स्‍थापित है, लेकिन परदे पर देखते हुए लगता है कि पिछली सदी के सातवें दशक की फिल्‍म देख रहे हैं। अंबिका को भले ही दबंग बताया है, लेकिन परदे पर दबदबा कमजोर लगता है। लगता है कि बबलू के स्‍तर का गुर्गा वह आठ साल में तैयार ही नहीं कर पाए।

    फिल्म के नामों से कॉमेडी दिखाने की कोशिश

    फिल्‍मों के नामों से कामेडी पैदा करने की कोशिश हुई जो कहीं-कहीं हंसी के पल लाती है। सबसे बड़ी दिक्‍कत फिल्‍म की अवधि दो घंटे 56 मिनट बहुत ज्‍यादा है। आरती बजाज चुस्‍त एडीटिंग से उसे कम कर सकती थीं। मनन भारद्वाज, ध्रुव घाणेकर, अनुराग सैकिया, ऐश्‍वर्य ठाकरे, निशिकर छिब्‍बर के अलावा पीयूष मिश्रा ने फिल्‍म का संगीत दिया है। फिल्म देखो...गाना बेहतरीन बना है। हालांकि अंग्रेजी गाने डियर कंट्री... का औचित्‍य समझ में नहीं आया। एक्‍शन डायरेक्‍टर अमृत सिंह का एक्‍शन भी पुरानी दौर की फिल्‍मों जैसा है।

    अपने रोल में खूब जमे ऐश्वर्य ठाकरे

    शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे के पोते ऐश्वर्य ठाकरे की बालीवुड में पहली फिल्म है। स्मिता ठाकरे के बेटे ऐश्‍वर्य अपनी दक्षता को साबित करते हैं, उनका अभिनय शानदार है। वेदिका पिंटो पात्र के अनुरुप मासूम और चकड़ हैं। वह अपनी भूमिका में प्रभाव छोड़ती हैं।

    विनीत कुमार सिंह को मेहमान भूमिका में बताया है, लेकिन स्‍क्रीन पर अच्‍छा स्‍पेस मिला है। उनके पात्र को पहलवानी के अलावा कई और शेड्स दिखाने का मौका मिला है। उसमें वह रंग जमाते हैं। मां की भूमिका में मोनिका पंवार चौंकाती हैं। कुमुद मिश्रा बेहतरीन अभिनेता है, लेकिन पात्र की ताकत स्‍क्रीन पर उतनी दमदार नहीं बनी है।

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