Ek Chatur Naar Review: 'ओह माय गॉड' निर्देशक ने ये क्यों किया, चतुराई से बनाया ऑडियंस को बेवकूफ, पढ़ें रिव्यू
Ek Chatur Naar Review दिव्या खोसला कुमार और नील नितिन मुकेश की डार्क कॉमेडी फिल्म एक चतुर नार सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म का निर्देशक ओह माय गॉड के निर्देशक उमेश शुक्ला ने किया हैं। हालांकि न तो इस फिल्म का हाथ है और न पैर। कैसे उन्होंने ऑडियंस को बेवकूफ बनाया पढ़ें रिव्यू

प्रियंका सिंह, मुंबई। साल 1968 में सुनील दत्त, किशोर कुमार और महमूद अभिनीत फिल्म पड़ोसन का गाना एक चतुर नार… आज भी लोगों को याद है। लेकिन इसी गाने की लाइनों पर बनी दिव्या खोसला अभिनीत फिल्म एक चतुर नार में चतुराई कम, दर्शकों को बेवकूफ बनाने वाली चीजें ज्यादा हैं।
क्या है 'एक चतुर नार' की कहानी?
कहानी है ममता (दिव्या खोसला) की, जो अपने बेटे और सास राधा (छाया कदम) के साथ लखनऊ की एक चॉल में रहती है। ममता के पति ने बाहुबली ठाकुर (यशपाल शर्मा) से बीस लाख का कर्ज लिया है। वह न चुका पाने के कारण ममता, ठाकुर से छुप रही है। एक दिन मेट्रो में बिजनेसमैन अभिषेक (नील नितिन मुकेश) का फोन गिर जाता है, जो ममता के हाथ लगता है। उसमें नेता कुरैशी (जाकिर हुसैन) का मैसेज है, जिसमें सरकारी योजना के नाम पर बड़ा घोटाला करने का मैसेज है। ममता, अभिषेक को ब्लैकमेल करती है।
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ओह माय गॉड के निर्देशक ने की फिल्म डायरेक्ट
हिमांशु त्रिपाठी की लिखी यह कहानी यूं तो आज के जमाने में रची गई है, जिसमें महंगे फोन जरूर हैं, लेकिन कहानी के प्रसंग बेवकूफाना हैं। ओह माय गॉड जैसी फिल्म बना चुके निर्देशक उमेश शुक्ला का इस कमजोर निर्देशन करना आश्चर्यजनक है। आज किसी प्रभावशाली व्यक्ति के लिए फोन को ट्रैक करने, उससे डेटा डिलीट करवाने के कई तरीके हैं। फोन का पासवर्ड गैरकानूनी तरीके से बदलते ही फोन रीसेट हो जाता है यानी उसमें मौजूद सारा डेटा अपने आप डिलीट हो जाता है। लेकिन इसमें ऐसा नहीं होता है।
खैर सिनेमाई स्वतंत्रता के बीच अगर इसे भी पचा लिया जाए, तो बाकी प्रसंग, जैसे एक ही पुलिस अफसर का हर जगह मौजूद रहना, गृहणी रही ममता का एक बड़ी साजिश रचना, बेकार के कॉमेडी सीन ठूंसना, बाहुबली ठाकुर का हवा में बंदूक चलाना हास्यास्पद है। पुराने गाने ना जाने कहां से आई है..., मैं तेरी दुश्मन..., तू प्यार है किसी और का... कहानी में कुछ नहीं जोड़ते।
किसानों की आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे को सतही तौर पर दिखाने का औचित्य समझ नहीं आता है। जय प्रवीणचंद्र मास्टर और उमेश शुक्ला का स्क्रीनप्ले ढीला है। वहीं फिल्म को 134 मिनट झेलने लायक बनाता है, अमर मोहिले का बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमैटोग्राफर समीर आर्य का कैमरा और मयूर हरदास की एडिटिंग। कैलाश खेर का गाया टाइटल गाना एक चतुर नार भी याद रह जाता है।
ममता के रोल में कमजोर लगीं दिव्या खोसला
अभिनय की बात करें, तो दिव्या खोसला चालाक ममता के रोल में कमजोर लगी हैं। हालांकि वह भावुक सीन बेहतर कर लेती हैं। छाया कदम अच्छी अभिनेत्री हैं, उन्हें ऐसे रोल लेने से पहले सोचना चाहिए। नील नितिन मुकेश खलनायक की भूमिका में प्रभावित नहीं कर पाते हैं। सुशांत सिंह, यशपाल शर्मा, जाकिर हुसैन अपने आधे-अधूरे से लिखे रोल को जैसे-तैसे परफार्म कर लेते हैं।
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