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    Mrs Review: मिसेज देखकर कई शादीशुदा महिलाओं को होगा ये एहसास, खड़े होकर बजाएंगे सान्या मल्होत्रा के लिए ताली

    Updated: Thu, 06 Feb 2025 05:33 PM (IST)

    सान्या मल्होत्रा की फिल्म मिसेज कल ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दस्तक देगी। इस फिल्म में दंगल एक्ट्रेस एक ऐसी बहू के किरदार में दिखाई देंगी जिनके अरमान तो बहुत कुछ करने के हैं लेकिन अपने ससुराल के दबाव में उन्हें उनका गला घोटना पड़ता है। शादीशुदा महिला की इस आम सी कहानी को कैसे सान्या मल्होत्रा ने पावरफुल बनाया है यहां पर पढ़ें फिल्म का पूरा रिव्यू

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    सान्या मल्होत्रा की मिसेज का पढ़ें रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्‍तव, मुंबई। शादी के बाद नवविवाहित लड़की ढेरों सपने लेकर ससुराल आती है। मगर कई बार पति ही उसके सपने, आकांक्षाओं को तवज्जो नहीं देता। धीरे-धीरे उसकी जिंदगी किचन में नाश्‍ते से लेकर डिनर बनाने और घर गृहस्‍थी संभालने में ही उलझ कर रह जाती है। ऐसे में उसके सपने दब कर रह जाते हैं।

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    इसी विषय को छूती है फिल्‍म मिसेज। यह फिल्‍म साल 2021 में आई मलयालम फिल्‍म 'द ग्रेट इंडियन किचन' का रीमेक है, जिसे काफी सराहना मिली थी। मिसेज को हिंदी दर्शकों को ध्‍यान में रखते हुए बनाया गया है तो कहानी की पृष्ठभूमि उत्तर भारत में सेट की गई है। इसमें करवा चौथ जैसे कुछ सांस्कृतिक रीति रिवाजों को जोड़ा गया है ताकि संदेश बेहतर तरीके से स्‍पष्‍ट हो।

    दिल को छू जाएगी मिसेज की कहानी

    कहानी डांसर बनने की इच्‍छुक रिचा (सान्‍या मल्‍होत्रा) की है। उसकी डॉ. दिवाकर (निशांत दहिया) के साथ अरेंज मैरिज होती है। शादी के दिन उसके ससुर (कंवलजीत) बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि अब आप हमारी बेटी हो। शादी के बाद उसकी सास को अपनी गर्भवती बेटी की देखभाल के लिए अमेरिका जाना पड़ता है। घर की सारी जिम्मेदारी रिचा के कंधों पर आती है। खाने बनाने से लेकर घर की साफ सफाई, बर्तन धोने जैसे सारे काम उसे ही करने पड़ते हैं।

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    परिवार को खुश रखने के लिए वह अथक परिश्रम करती है, लेकिन उसे प्रशंसा का एक भी शब्द नहीं मिलता। उसके बजाए उसे आलोचना या तानों का सामना करना पड़ता है। ससुर उसे पारंपरिक तरीके से खाना बनाने पर जोर देते हैं। उन्‍हें खाने के समय गर्म फुल्‍के, सील बट्टे की पिसी चटनी ही चाहिए होती है। जैसे-जैसे दिन गुजरते हैं रिचा को एहसास होता है कि परिवार एक बहू से अपेक्षित कर्तव्यों के नाम पर उसका शोषण करता है। उसकी शादीशुदा जिंदगी में रोमांस का अभाव है। पति उसे शारीरिक सुख का जरिया मात्र मानता है।

    Photo Credit- Youtube

    रिचा जब नौकरी की बात करती है तो ससुर और पति एकसिरे से उसे खारिज कर देते हैं। पढ़ी लिखी रिचा इससे आहत हो जाती है।

    समाज की कठोर सच्चाई को आईना दिखाती है फिल्म

    आरती कदव निर्देशित मिसेज समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक व्यवस्था को आईना दिखाती हैं। यह पुरुष की इस दमनकारी सोच के साथ महिलाओं की भूमिका को भी रेखांकित करती है। रिचा की पीएचडी सास सुबह से लेकर रात तक बिना शिकायत किचन में खटती है। अपने पति के सुबह उठने के बाद अजवाइन पानी से लेकर, जूते साफ करने से लेकर उनकी पसंद का खाना बनाने तक के सारे काम चुपचाप करती है।

    ऐसे में बेटा भी अपनी पत्‍नी से यही अपेक्षा रखता है कि बीवी उसके कपड़े निकालने से लेकर, समय पर टिफिन भेजने से लेकर रात तक एक पांव पर उसकी और परिवार की सेवा में तत्‍पर रहे। इस पितृसत्तामक माहौल के भंवर में तैर रही रिचा अपनी दोस्‍त के घर पर जब कहती है कि पति को मुफ्त की नौकरानी और कुक मिली है तो दिवाकर तिलमिला जाता है। यह उसे अपना अपमान लगता है।

    Photo Credit- Jagran 

    समाज की इस कठोर सच्‍चाई को दिखाने के साथ यह फिल्‍म महिलाओं को भी कटघरे में खड़ा करती है, जो सब कुछ जानने समझने के बावजूद बदलाव के लिए तैयार नहीं है। एक दृश्‍य में रिचा की मां अपनी ही बेटी को सीखने और एडजस्ट होने की सलाह देती है। तब रिचा झुंझला जाती है। दरअसल, रिचा उन लड़कियों का प्रतिनिधित्व करती है जो समाज में बराबरी का हक चाहती है। अपनी जिम्‍मेदारी निभाने के साथ अपने सपनों को पंख देना चाहती है लेकिन पितृसत्तामक सोच उसमें रोड़ा बन जाती है।

    यह फिल्‍म समाज की उन्‍हीं कड़वी सच्‍चाई को बहुत सूक्ष्‍मता के साथ दिखाती है। यह किचन में अपनी पूरी जिंदगी बिता देने वाली महिलाओं की चुप्‍पी की वजह से पनपी व्यवस्था को भी कटघरे में लाती है। साथ ही लड़के लड़कों की परवरिश में भेदभाव के मुद्दे को भी छूती है। हालांकि उसकी गहराई में नहीं जाती। फिल्‍म का एक अहम भाग तमाम तरह के लजीज व्यंजन भी हैं, जिनके शॉट्स बहुत खूबसूरती से लिए गए हैं।

    Photo Credit- Imdb

    सान्या मल्होत्रा ने एक बार फिर जीता फैंस का दिल 

    फिल्‍म का भार मुख्‍य रूप से सान्या मल्होत्रा के कंधों पर है। उन्‍होंने डांसर बनने की इच्‍छा रखने वाले रिचा के वैवाहिक जीवन में प्रवेश के बाद परिवार के बदलते समीकरण, पितृसत्‍ता दबाव के बाद उपजी हताशा को बहुत ही सहजता से दर्शाया है। उनका अभिनय प्रशंसनीय है। उनके दकियानूसी पति की भूमिका में निशांत दहिया का अभिनय भी उल्‍लेखनीय है। मीन मेख निकालने वाले ससुर की भूमिका के साथ कंवलजीत भी न्‍याय करते हैं।

    यह फिल्‍म महिलाओं की जिंदगी के उस अध्याय को खोलती है जिससे वाकिफ सब हैं, लेकिन ध्‍यान नहीं देते। सही मायने में यह पितृसत्तामक सोच का रोंगटे खड़े कर देने वाला चित्रण प्रस्तुत करती है। साथ ही आत्मनिरीक्षण करने का भी संदेश दे जाती है।

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