Maharani Season 4 Review: बिहार चुनाव छोड़ PM बनने की रेस में रानी भारती, इस बार कहानी दमदार या बेकार?
हुमा कुरैशी एक बार फिर से रानी भारती बनकर ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर 'महारानी सीजन 4' के साथ लौट चुकी हैं। इस बार बिहार की मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर उनकी नजर 'प्रधानमंत्री' की कुर्सी पर है। तीन सीजन की तरह 'महारानी-4' की कहानी पावरफुल है या वीक, नीचे पढ़ें पूरा रिव्यू:
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महारानी सीजन 4 रिव्यू/ फोटो- Youtube
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स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। साल 2021 में बिहार के मुख्यमंत्री भीमा (सोहम शाह) की चौथी पास अनपढ़ पत्नी रानी भारती (हुमा कुरैशी) परिस्थितिवश अनिच्छा से राजनीति में कदम रखती है। फिर वह अपने ही पति की इच्छा के खिलाफ निर्णय लेने लगती है। दोनों के रिश्ते में दरार आती है। घटनाक्रम मोड लेते हैं भीमा की हत्या होती है। रानी उसकी हत्या का बदला लेती है।
यह सारा घटनाक्रम पिछले तीन सीजन में घटित हो चुका है। शक्ति, विश्वासघात और अस्तित्व को लेकर गढ़ा गया राजनीतिक ड्रामा चौथे सीजन में कहानी को आगे बढ़ता है। इस बार दांव ज्यादा ऊंचे और विश्वासघात भी काफी ज्यादा है। हालांकि, राजनीति की बिसात में रानी अब खेलना सीखने के साथ नियमों को फिर से लिखना भी सीख गई है।
कहां से शुरू होती है 'महारानी सीजन-4' की कहानी
कहानी की शुरुआत दिल्ली के भव्य गलियारों से होती है। गठबंधन सरकार चला रहे प्रधानमंत्री सुधाकर श्रीनिवास जोशी (विपिन शर्मा) का एक प्रमुख सहयोगी उसकी सरकार से समर्थन वापस ले लेता है, जिससे उसका शासन डगमगा जाता है। अपनी सत्ता बचाने के लिए बेताब, वह क्षेत्रीय नेताओं की ओर रुख करता है, जिनमें बिहार की मुख्यमंत्री रानी भारती भी शामिल हैं। हालांकि, वह सार्वजनिक रूप से मना कर देती है। टकराव बढ़ने पर रानी उससे मिलने उसके घर जाती है। वहां सत्ते के नशे में चूर जोशी का व्यवहार रानी को आहत करता है।
रानी अगली प्रधानमंत्री बनने की कसम खाती है, गौरव के लिए नहीं, बल्कि न्याय और सम्मान के लिए। हालांकि, केंद्र की राहें आसान नहीं हैं। राजनीतिक गतिरोधों के बीच रानी बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देती है और अपनी बेटी रोशनी (श्वेता प्रसाद बासु) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देती है। यह बात उसके बेटे जयप्रकाश भारती (शार्दुल भारद्वाज) और पार्टी के एक धड़े को रास नहीं आती। वहीं रानी का दूसरा बेटा सूर्या (दर्शील सफारी) राजनीति की दुनिया से दूर लंदन में पढ़ाई कर रहा है। परिवार में बढ़ते गतिरोध के बीच जयप्रकाश को रानी दिल्ली का प्रबंधन संभालने की जिम्मेदारी देती है। इससे पार्टी के पुराने सहयोगियों में असंतोष पैदा होता है।
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पार्टी में परिवारवाद को लेकर पहले ही मनमुटाव बढ़ रहा होता है। रानी क्षेत्रीय दलों के साथ नया मोर्चा बनाती है। राजनीति के शातिर खिलाड़ी जोशी को यह रास नहीं आता। वह ताकत का इस्तेमाल बिहार सरकार के कार्यों में रोड़ा अटकाने के साथ रानी भारती के परिवार पर कानूनी शिंकजा कसता है। रानी का प्रधानमंत्री बनने का सपना साकार होगा या राजनीतिक रंजिश उसे नए प्रतिशोध की ओर ले जाएगी कहानी इस संबंध में है।
हर पहलू को बढ़ी बारीकी से गढ़ा
इस बार सीरीज के निर्देशन की बागडोर पुनीत प्रकाश ने संभाली है। सुभाष कपूर और नंदन सिंह की लिखी कहानी और स्क्रीनप्ले में उन्होंने क्षेत्रीय दलों की मौकापरस्ती, सत्ता को लेकर लालच, मोलभाव करना के साथ सीबीआई और आयकर विभाग जैसी एजेंसियों का डराने-धमकाने के औजारों के रूप में दुरुपयोग, जैसे पहलुओं को कहानी में बारीकी से गढ़ा है। सुभाष कपूर द्वारा क्रिएट किए गई महारानी की दुनिया में राजनीतिक उठापठक के साथ रानी की पारिवारिक कहानी को बारीकी से गूंथा गया है।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्वता के साथ यह एक प्रकार से प्रतिशोध की कहानी भी बन गई है। भले ही यह काल्पनिक सीरीज है लेकिन कुछ प्रसंग भारतीय राजनीति के घटनाक्रमों की याद दिलाएंगे। सीरीज के कई संवाद भी दमदार और चुटकीले हैं। संगीत भी कथ्य को गाढ़ा करने में अहम भूमिका निभाता है। आनंद एस. बाजपेयी का बिहार की लोक परंपराओं से निकले "हमार भैया" और "सुगनवा" बिहार का स्थानीय रस देते हैं।
हुमा ने फिर मनवाया अभिनय का लोहा
एक दृश्य में रानी का संवाद है का होता है मेरिट और एक्सपीरियंस? बिना मौका दिए ना मेरिट पता चलता है और ना एक्सपीरियंस। हुमा कुरैशी पर यह संवाद सटीक बैठता है, जिनके कंधों पर महारानी की सीरीज का भार है। महारानी पहली भारतीय महिला प्रधान सीरीज बन गई है जिसका चौथा सीजन आया है। अंत में पांचवें सीजन का मंच तैयार कर दिया गया है।
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हुमा यहां पर उम्रदराज दिखी है लेकिन रानी भारती की आक्रामकता, चपलता और मां के द्वंद्व को उन्होंने खूबसूरती से दर्शाया है। एक बार फिर वह अपने अभिनय का लोहा मनवाती हैं। इस बार सीरीज का आकर्षण श्वेता प्रसाद बासु और शार्दुल भारद्वाज भी हैं। दोनों का अभिनय विशेष रूप से प्रशंसनीय है। कुटिल प्रधानमंत्री की भूमिका में विपिन शर्मा याद रह जाते हैं। सहयोगी भूमिका में आए विनीत कुमार, कनि कुश्रुति, प्रमोद पाठक, राजेश्वरी सचदेव को अपनी भूमिका में प्रभावी हैं।

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