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    LSD 2 Review: लाइक, शेयर और डाउनलोड की दुनिया में इंटरनेट का स्याह पक्ष दिखाती है 'एलएसडी 2'

    Updated: Fri, 19 Apr 2024 04:25 PM (IST)

    LSD 2 इसी नाम से आई फिल्म का सीक्वल है। 2010 में आई एलएसडी उस दौर में प्रयोगधर्मी फिल्म करार दी गई थी जिसके चलते इसे काफी तारीफें मिलीं। राजकुमार राव ने एलएसडी ने डेब्यू किया था। अब दिबाकर और एकता कपूर इसका सीक्वल लेकर आये हैं। हालांकि फिल्म पहले के मुकाबले काफी कमजोर है और उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी।

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    LSD 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। फोटो- इंस्टाग्राम

    प्रियंका सिंह, मुंबई। सीक्वल के इस दौर में निर्माता एकता कपूर और निर्देशक दिबाकर बनर्जी भी अपनी साल 2010 में रिलीज हुई फिल्म लव से** और धोखा (Love S** Dhokha) की सीक्वल ले आए हैं। जैसा कि पिछली कई सीक्वल फिल्मों के साथ होता आया है, हिट शीर्षक का प्रयोग करके बेहद ही कमजोर कहानी परोसी गई है।

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    14 साल पहले रिलीज हुई लव से** और धोखा (LSD) फिल्म का कान्सेप्ट नया था, वह एमएमएस और स्टिंग आपरेशन का जमाना था। जब हैंडी कैमरा से फिल्म को शूट किया गया तो लोग उससे जुड़ पाए। इस बार दिबाकर आज के इंटरनेट मीडिया के दौर को दिखा रहे हैं, जहां युवा वास्तविकता से ज्यादा वर्चुअल दुनिया में जी रहे हैं।

    हालांकि, इसमें उन्होंने कई और मुद्दे भी ठूंस दिए हैं। पिछली फिल्म की तरह यह भी तीन कहानियों की एंथोलाजी फिल्म है। यहां लव से** और धोखा को इंटरनेट मीडिया के दौर से जोड़ने के लिए लाइक, शेयर और डाउनलोड में बांट दिया गया है।

    लाइक, शेयर और डाउनलोड में सिमटी कहानी

    लाइक की कहानी शुरू होती है नूर (परितोष तिवारी) से, जो ट्रुथ या नाच रियलिटी शो का हिस्सा है। वह पैदा तो लड़का हुआ है, लेकिन अब अपनी असली पहचान ढूंढते हुए महिला बनने के रास्ते पर है। दूसरी कहानी शेयर, कुल्लू (बोनिता राजपुरोहित) की है, जो किन्नर है।

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    आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से कुछ किन्नरों को मेट्रो स्टेशन पर काम दिया गया है, उनमें से वह भी एक है। इंटरनेट मीडिया पर काफी सक्रिय भी है। तीसरी कहानी डाउनलोड शुभम उर्फ गेम पप्पी (अभिनव सिंह) के नाम से मशहूर स्ट्रीमर की है, जो खेल की इस दुनिया में खुद फंस जाता है।

    कमजोर लेखन और औसत अभिनय

    इस फिल्म को देखते वक्त फिल्म के लेखकों, दिबाकर, प्रतीक वत्स और शुभम से एक सवाल पूछने का मन करता है कि आखिर इस फिल्म को बनाने का औचित्य क्या है? क्या वह इंटरनेट मीडिया की दुनिया दिखाना चाहते हैं, जिससे युवा पहले से ही वाकिफ हैं या वह इस दुनिया से बचने की सलाह दे रहे हैं।

    इन दोनों का जवाब इस फिल्म में तो मिलने से रहा। दिबाकर खुद इंटरनेट मीडिया से दूर रहना पसंद करते हैं, शायद यही वजह है कि वह केवल इसका स्याह पक्ष ही दिखा पाए हैं। गेमिंग की दुनिया को दिखाना फिल्मों के लिए नया है, लेकिन निराशा होती है, जब युवाओं के लिए बड़ा करियर बनकर उभरे गेमिंग और स्ट्रीमिंग को नकारात्मक तौर पर पेश किया जाता है।

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    अभिनय की बात करें तो अभिनेता परितोष तिवारी, बोनिता राजपुरोहित और अभिनव सिंह अपने-अपने रोल में जंचे हैं। खासकर परितोष जो अपनी पहली ही फिल्म में प्रयोग करते हुए महिला की वेशभूषा में नजर आते हैं।

    मेट्रो स्टेशन की सीनियर कर्मचारी लविना सिंह के रोल में स्वास्तिका मुखर्जी प्रभावित करती हैं। रियलिटी शो की होस्ट बनी मौनी रॉय और जज के रोल में अनु मलिक, तुषार कपूर, सोफी चौधरी हास्यास्पद लगते हैं। अच्छा होता अगर दिबाकर ने मूल फिल्म का ओरिजनल टाइटल ट्रैक इस फिल्म में ले लिया होता। कम से कम लगता तो कि यह सीक्वल है।