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Lost Movie Review: लापता की तलाश में निकलीं यामी गौतम, कमजोर स्क्रीनप्ले से मुद्दे हुए 'लॉस्ट'

Lost Movie Review लॉस्ट जी5 पर स्ट्रीम हो चुकी है। फिल्म में यामी गौतम इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के रोल में हैं जो एक थिएटर आर्टिस्ट की तलाश में निकली है। इस खोज के दौरान उसके सामने कई चौंकाने वाले पहलू आते हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthPublished: Thu, 16 Feb 2023 03:12 PM (IST)Updated: Thu, 16 Feb 2023 03:12 PM (IST)
Lost Movie Review Yami Staring Gautam. Photo- Screenshot

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्‍म पिंक के प्रदर्शन के करीब सात साल बाद अनिरूद्ध राय चौधरी ने अब फिल्‍म लॉस्‍ट का निर्देशन किया है। लॉस्‍ट यानी खोया हुआ। कोलकाता की पृष्ठिभूमि में गढ़ी इसकी कहानी नुक्‍कड़ नाटक करने वाले दलित लड़के ईशान भारती (तुषार पांडेय) की है।

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वह डूब रहे न्‍यूज चैनल की एंकर अंकिता चौधरी (पिया बाजपेयी) से बेइंतहा मुहब्‍बत करता है। अंकिता मुख्‍यमंत्री के खास मंत्री वर्मन (राहुल खन्‍ना) का इंटरव्‍यू लेती है। उसके बाद वर्मन उस पर मेहबान हो जाता है। उसे बेहतरीन नौकरी और आलीशान घर देता है।

ईशान एक रात अंकिता से मिलने आता है और उसके बाद से लापता हो जाता है। उसकी बहन और जीजा पुलिस में उसके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं। मीडिया में ईशान के माओवादी से संपर्क होने की खबर आती है। पुलिस को अंकिता से पूछताछ से दूरी बनाकर रखने के आदेश होते हैं।

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वहीं, अखबार में कार्यरत ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ क्राइम रिपोर्टर विधि साहनी (यामी गौतम) मामले की तह में जाने की कोशिश करती है। उसे कई बार धमकी भी मिलती है, माता-पिता भी उससे इस पेशे से दूर रहने को कहते हैं, लेकिन वह सच खोजने में जुटी रहती है। आखिर में क्‍या वह ईशान को ढूंढ़ पाती है? क्‍या ईशान को गायब करने में अंकिता और वर्मन का हाथ है? लॉस्‍ट की कहानी इसी पहलू पर केंद्रित है।

मुद्दे उठाये बहुत, लेकिन गहराई नहीं

श्‍यामल सेनगुप्‍ता की कहानी और रितेश शाह के संवादों में माओवादियों, व्‍यवस्‍था में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार, लालच, कार्यस्‍थल पर लिंगभेद, लड़की की शादी, सत्‍तासीन और प्रभावशाली लोगों द्वारा आम लोगों पर थोपी जाने वाली विचारधाराओं जैसे मुद्दों को पिरोया गया है, लेकिन वह किसी भी मुद्दे के साथ समुचित न्‍याय नहीं कर पाई है।

Photo- screenshot, youtube

फिल्‍म में विधि की जीत (नील भूपलम) के साथ प्रेम कहानी भी है, जो अधूरी सी और जबरन ठूंसी हुई लगती है। विधि की अपने माता-पिता के साथ अनबन की वजहें भी स्‍पष्‍ट नहीं हैं। फिल्‍म खोजी पत्रकार पर है, लेकिन उसमें थ्रिल की कमी महसूस होती है। एक दृश्‍य में वर्मन से विधि जैसे सवाल पूछती है, लगता है, वह पत्रकार नहीं वकील है।

श्‍यामल सेनगुप्‍ता लिखित स्‍क्रीनप्‍ले कई जगह मुद्दों से भटकता हुआ नजर आया है। फिल्‍म में माओवादियों की बात हो रही है, लेकिन उसकी गहराई में लेखक और निर्देशक नहीं जा पाए हैं। कई किरदारों का हृदय परिवर्तन अचानक से हो जाता है, पर उसके पीछे की वजह स्‍पष्‍ट नहीं हैं।

क्राइम रिपोर्टर किस तरह पुलिसकर्मियों से खबर से जुड़े अहम पहलू की जानकारी निकालता है, वह सब एंगल कहानी से गायब हैं। फिल्‍म जब चरम पर होती है, लगता है कि कुछ चौंकाने वाली चीजें सामने आएंगी, लेकिन खोदा पहाड़ निकली चूहिया जैसी स्थिति होती है।

Photo- screenshot, youtube

नक्‍सल नेता साथ विधि की वीडियो काल पर बातचीत का दृश्‍य बहुत सतही तरीके से दर्शाया है। यह फिल्‍म का अहम सीन हैं, लेकिन रोमांचक नहीं बन पाया है। इस फिल्‍म को बनाने के पीछे उनका इरादा तो नेक है, लेकिन उसे समुचित तरीके से पर्दे पर साकार नहीं कर पाए हैं।

यामी गौतम की अदाकारी असरदार

बहरहाल, पत्रकार की भूमिका में यामी गौतम प्रभावी लगी हैं। उन्‍होंने पत्रकार के तौर पर कहानी की परत में जाने को लेकर तमाम जतन करने और पीड़ितों के साथ सहानुभूति जैसे भावों को बहुत सहजता से निभाया है। विधि के नानू की भूमिका में पंकज कपूर प्रभावित करते हैं।

यामी और पंकज के बीच कई दृश्‍य रोचक हैं। उनके बीच वार्तालाप भी दिलचस्‍प है। वह फिल्‍म का खास आकर्षण है। एक दृश्‍य में पंकज कहते हैं कि वह सबसे बेहतरीन उपमा और सांभर बनाते हैं, उसी दौरान हिंसा और माओवादियों की बात करते हुए वापस उपमा की तारीफ पर आ जाते हैं।

इस दृश्‍य को भले ही वह सहजता से वह निभा ले जाते हैं, लेकिन ऐसे दृश्‍यों को उनके जैसे मंझे कलाकार ही कर सकते हैं। राजनेता की भूमिका में राहुल खन्‍ना जंचे हैं। नील भूपलम कहानी में कुछ खास नहीं जोड़ पाते। पिया ने अंकिता की महत्‍वाकांक्षाओं को सटीक तरीके से निभाया है। हालांकि, उनके किरदार को लेखन स्तर पर बेहतर बनाने की जरूरत थी। सिनेमैटोग्राफर अविक मुखोपाध्‍याय ने कोलकाता की नई जगहों से परिचय कराया है।

कलाकार: यामी गौतम, राहुल खन्‍ना, तुषार पांडेय, पिया बाजपेयी, पंकज कपूर, नील भूपलम

निर्देशक: अनिरुद्ध राय चौधरी

अवधि: दो घंटे पांच मिनट

प्‍लेटफार्म: जी5

रेटिंग: ढाई

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