लॉगआउट मूवी रिव्यू: इंटरनेट का जुनून और शोहरत की भूख कैसे खतरों में डाल रही, बाबिल खान ने दिया दमदार मैसेज
ZEE5 पर रिलीज हुई फिलम लॉगआउट इंटरनेट मीडिया के जुनून और ऑनलाइन पहचान पाने के खतरों को दिखाती है। कहानी इंफ्लुएंसर प्रत्युष (बाबिल खान) के मोबाइल खोने और एक रहस्यमय प्रशंसक से जुड़ने पर केंद्रित है। फिल्म डिजिटल दुनिया की प्रतिस्पर्धा और नकली पहचान के पहलुओं को उजागर करती है। बाबिल खान ने प्रभावी अभिनय किया है। हालांकि कहानी में कुछ कमियां हैं लेकिन यह महत्वपूर्ण मुद्दे उठाती है।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। इंटरनेट मीडिया के प्रति लोगों का बढ़ता जुनून उनकी जिंदगी पर किस प्रकार प्रभाव डाल रहा है, यह बीते दिनों रिलीज 'कंट्रोल', 'खो गए हम कहां' जैसी फिल्मों में दर्शाया गया। वहीं फिल्म 'लवयापा' प्रेमी और प्रेमिका के बीच एक दिन के लिए अपना मोबाइल फोन बदलने पर आपसी विश्वास की पड़ताल पर आधारित थी।
कहां देख सकते हैं फिल्म?
अब 'लागआउट' स्मार्टफोन के प्रति जुनून और इंटरनेट मीडिया पर मान्यता पाने को लेकर आने वाले खतरों की पड़ताल करती है। कुछ खामियों के बावजूद शुक्रवार को जी5 पर रिलीज होने वाली यह फिल्म अहम मुद्दे उठाती है।
क्या स्टोरी है?
कहानी इंटरनेट मीडिया इन्फ्लुएंसर प्रत्युष दुआ (बाबिल खान उर्फ प्रैटी) की है। माता-पिता से अलग रह रहा प्रत्युष वर्चुअल दुनिया में विख्यात है। उसका लक्ष्य अपने फॉलोवर्स की संख्या दस मिलियन (एक करोड़) तक पहुंचाना है, ताकि उसे विज्ञापन की बड़ी डील मिल सके। इसमें एक बाधा उसकी प्रतिस्पर्धी इंफ्लुएंसर भी है, जो इस आंकड़े से ज्यादा दूर नहीं है।
प्रत्युष अपना वीडियो लोकप्रिय यूट्यूबर भुवन बाम के साथ बनाता है ताकि उसके फॉलोवर्स तेजी से बढ़ें, लेकिन वीडियो अपलोड करने से पहले उसका मोबाइल खो जाता है। कंप्यूटर पर लॉगइन करने पर उसकी प्रशंसक साक्षी (निमिषा नायर) बताती है कि वह मोबाइल कैब में भूल गया है।
मोबाइल वापसी को लेकर चैट पर साक्षी उससे अपनी बातें मनवाना शुरू करती है। प्रत्युष उसके बारे में इंटरनेट पर खोजना आरंभ करता है। यहां से ऑनलाइन लोकप्रियता और निजी जिंदगी के बीच का अंतर दिखना शुरू होता है।
फिल्म की कहानी में कितना दम है?
बिस्वपति सरकार द्वारा लिखी कहानी ज्यादातर प्रत्युष के कमरे में सिमटी है, जिसमें कंप्यूटर स्क्रीन घटनाओं को उजागर करने का अहम जरिया बनता है। प्रत्युष के जरिए निर्देशक अमित गोलानी यूट्यूबर्स के बीच प्रतिस्पर्धा और वीडियो के बहुप्रसारित होने को लेकर मानसिक दबाव को दिखाते हैं वह नकली पहचान के साथ हैं।
वह नकली पहचान के साथ टिप्पणी करने और उसका फायदा उठाने के पहलू को भी दिखाते हैं। हालांकि इस प्रतिस्पर्धा को और दिलचस्प बनाया जा सकता था।
एक दृश्य में प्रत्युष ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर करने जाता है, लेकिन ओटीपी मोबाइल पर आता है। साक्षी फोन का पासवर्ड मांगती है। थोड़ा सोचने के बाद वह दे देता है, जबकि वह रुपयों को जीपे के जरिए अपने मैनेजर से ऑनलाइन दिलवा सकता था।
हरदम ऑनलाइन रहने वाला प्रत्युष यहां पर इतना पिछड़ा कैसे हो सकता है? यह खटकता है। मोबाइल पाने को लेकर प्रत्युष की बेचैनी दिखती है, लेकिन साक्षी की मनोवैज्ञानिक हालत पता चलने के बाद निर्देशक तनावपूर्ण माहौल नहीं बना पाते । घटनाओं की गति बनाए रखने में संगीत की मदद ली गई है।
यह भी पढ़ें- Jaat Review: सनकी 'जाट' का हाई वोल्टेज एक्शन ड्रामा, गदर 2 के बाद Sunny Deol की अगली ब्लॉकबस्टर की हुई लोडिंग
एक्टिंग कैसी है?
फिल्म का भार बाबिल खान के कंधों पर है। अधिकतम समय कैमरा उन पर रहता है। दिवंगत अभिनेता इरफान के बेटे साबित करते हैं कि वह गहन भूमिकाओं को निभाने में सक्षम हैं। वह प्रत्युष के तनाव, लाचारी और हताशा को संयमित तरीके से व्यक्त करते हैं।
यह भी पढ़ें- Chhorii 2 Review: भूतनी नहीं सामाजिक कुरीतियों से डराती है छोरी 2, गहराई में ले जाते-जाते यहां चूक गई फिल्म
जेड़ी की भूमिका में गंधर्व दीवान और साक्षी की भूमिका में निमिषा नायर ज्यादातर आवाज देने की भूमिका तक सीमित हैं। बहन बनीं रसिका दुग्गल संक्षिप्त भूमिका में अच्छी लगी हैं।
फिल्म के जरिए बढ़ते स्क्रीन टाइम और उसके प्रभाव को दिखाया गया है। लगातार मोबाइल फोन से चिपके रहने की लत को आम माना जाता है, यह फिल्म इस दिशा में आत्मनिरीक्षण करने को कहती है।
यह भी पढ़ें- Kesari Chapter 2 Review: इतिहास को कुरेदती पर संवेदनाओं में कमजोर, वीकेंड प्लान से पहले पढ़ लें रिव्यू
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।